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विभाजन का दर्दः कब लिखी गई थी बंटवारे की कहानी
विभाजन का दर्दः 'विभाजन भयावह स्मरण दिवस' श्रृंखला के अंतर्गत हम आपको बताने जा रहे हैं कि देश की आजादी की कीमत थी देश का विभाजन और इस की कहानी 3 जून 1947 को लिखी गई थी।
Partition Horrors Remembrance Day: 'विभाजन भयावह स्मरण दिवस' श्रृंखला (Partition Horrible Remembrance Day series) के अंतर्गत हम आपको बताने जा रहे हैं कि देश की आजादी की कीमत थी देश का विभाजन और इस की कहानी 3 जून 1947 को लिखी गई थी। जिसे माउंटबेटेन (Mountbatten) योजना या तीन जून योजना के नाम से जाना जाता है।
यह सही है कि ब्रिटिश सरकार (British Government) को यह लग गया था कि वह इस देश पर ज्यादा दिन हुकूमत नहीं कर पाएंगे और इसी लिए फरवरी 1947 में भारत का आजाद करने पर सिद्धांततः सहमति दे दी गई थी। इसके बाद सवाल ये आया कि भारत को आजाद करने की योजना को बनाने की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए तो इसके लिए ब्रिटिश ताज के वफादार तत्कालीन वायसराय लार्ड माउंटबेटेन का नाम सामने आया लॉर्ड माउंटबेटन (lord mountbatten) ने भारतीय राजनीतिक नेताओं के साथ चर्चा शुरू की।
भारत का विभाजन अपरिहार्य था
माउंटबेटन ने अपनी समझ, पूर्वानुमान और एक आम आदमी के रूप में भारत की राजनीतिक स्थिति की जटिलता का विश्लेषण किया। उन्होंने समस्या का राजनीतिक समाधान निकालने की कोशिश की। लेकिन कहा यह जाता है कि माउंटबेटन इस निष्कर्ष पर बहुत जल्द पहुंच गए कि भारत का विभाजन अपरिहार्य था। उच्च कल्पना, तेज बुद्धि के साथ उन्होंने फिर इसी दिशा में अपनी ड्राइव शुरू की।
ब्रिटिश शाही परिवार का माउंटबेटन को विश्वास हासिल था। उन्हें यह अहसास था कि माउंटबेटन को भारत के राजनीतिक नेताओं के साथ सम्मानजनक तरीके से निपटने की कला आती है। इसी कूटनीतिक तरीके से उन्होंने खुद को भारतीयों के बीच लोकप्रिय बनाने की कोशिश की। और इस आखिरी ब्रिटिश वायसराय माउंटबेटन ने इस टास्क के निपटान के लिए कम समय का अहसास करते हुए बिना समय बर्बाद किए सत्ता हस्तांतरण की रूपरेखा बनानी शुरू की।
सरदार पटेल माउंटबेटन के प्रस्ताव पर सहमत हो गए
माउंटबेटन की नजर में देश का बंटवारा अपरिहार्य था लेकिन सबको इसके लिए राजी करना कठिन चुनौती थी। उन्होंने सरदार पटेल, मौलाना आजाद, जवाहरलाल नेहरू, गांधीजी और अन्य प्रमुख नेताओं के साथ विचार-विमर्श किया। इस परिस्थिति में सरदार पटेल माउंटबेटन के प्रस्ताव पर सहमत हो गए क्योंकि उन्हें यकीन था कि मुस्लिम लीग के साथ काम करना संभव नहीं है। पटेल के तर्क ने जवाहरलाल को प्रभावित किया।
गांधीजी विभाजन के प्रस्ताव का घोर विरोध करते रहे
जवाहरलाल भी तैयार हो गए लेकिन गांधीजी विभाजन के प्रस्ताव का घोर विरोध करते रहे। उन्होंने कहा कि "अगर कांग्रेस विभाजन स्वीकार करना चाहती है तो यह मेरे शव पर होगा। जब तक मैं जीवित हूं मैं भारत के विभाजन के लिए कभी सहमत नहीं होऊंगा। और न ही मैं कांग्रेस को इसे स्वीकार करने की अनुमति देने में मदद कर सकता हूं। लेकिन अंततः उन्होंने अपनी राय बदल दी और दुःख की गहरी भावना के साथ माउंटबेटन के सुझाव को स्वीकार कर लिया। मुस्लिम लीग के साथ काम करने का कड़वा अनुभव, विभाजन के मुद्दे पर प्रशासन और जिन्ना के अड़ियल रवैये के कुल टूटने ने ज्यादातर कांग्रेस को विभाजन को स्वीकार करने के लिए प्रभावित किया।
विभाजन की योजना की घोषणा
कांग्रेस और लीग के सदस्यों के साथ चर्चा करने के बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून, 1947 को योजना की घोषणा की। उसी दिन ब्रिटिश प्रधान मंत्री ने हाउस ऑफ कॉमन्स में भारत के दो हिस्सों में विभाजन की योजना की घोषणा कर दी।