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विरल आचार्य के विराट फैसले के पीछे क्या हैं कारण जानिये यहां

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने सेवानिवृत्ति से करीब छह माह पहले इस्तीफा दे दिया है। विरल आचार्य का यह कदम तमाम सवाल खड़े कर गया है। ऐसे में विरल आचार्य का 2018 का यह कथन काफी सटीक बैठता है कि सरकार के फैसले टी20 मैच की तरह होते हैं। शायद इसी बात से व्यथित हो विरल ने यह विराट कदम उठाया।

राम केवी
Published on: 24 Jun 2019 2:22 PM IST
विरल आचार्य के विराट फैसले के पीछे क्या हैं कारण जानिये यहां
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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने सेवानिवृत्ति से करीब छह माह पहले इस्तीफा दे दिया है। विरल आचार्य का यह कदम तमाम सवाल खड़े कर गया है। ऐसे में विरल आचार्य का 2018 का यह कथन काफी सटीक बैठता है कि सरकार के फैसले टी20 मैच की तरह होते हैं। शायद इसी बात से व्यथित हो विरल ने यह विराट कदम उठाया।

विरल आचार्य केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को सरकारी दखल से मुक्त रखने और संस्था को सरकारी बैंकों पर नियंत्रण के लिए ज्यादा अधिकार देने के हिमायतियों में रहे हैं।

विरल आचार्य ने कहा था कि केंद्रीय बैंक सरकार का विभाग नहीं है और इसकी स्वायत्तता बरकरार रखी जानी चाहिए। उनका यह भी कहना था कि संस्था में सरकार का दखल विनाशकारी हो सकता है।

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर की यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आई थी जब सरकार भुगतान प्रणाली को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक से अलग एक नियामक तंत्र स्थापित करने पर विचार कर रही थी।

केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच मतभेद किसी देश के लिए कितना नुकसानदायक हो सकता है इसे समझाने के लिए विरल आचार्य ने अर्जेंटीना के संकट का उदाहरण भी दिया था।

उन्होंने बताया कि अर्जेंटीना में भी संकट केंद्रीय बैंक में सरकारी नियंत्रण के कारण शुरू हुआ था।

भरोसे का संकट

विरल आचार्य के अनुसार केंद्रीय बैंक को स्वायत्तता देने वाले देशों के प्रति विदेशी निवेशक भी आकर्षित रहते हैं और जहां ऐसा नहीं होता वहां के पूंजी बाजार के लिए भरोसे का संकट खड़ा हो जाता है।

आचार्य के मत में सरकार के फैसले टी-20 मैच की तरह होते हैं जो शायद लगातार चुनाव होते रहने की वजह से किया जाता है। उन्होंने कहा कि आरबीआई खेल टेस्ट मैच की तरह खेलता है और लंबे समय के लिए नीतियां तय करता है।

पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली पूर्व भी में कह चुके हैं कि सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होती है, जबकि नियामक संस्थाएं जनता के बीच में चुनाव लड़ने नहीं जातीं।



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राम केवी

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