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Dangerous Cough Syrup: डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल वाले सिरप ने पहले भी ली हैं बहुत जानें

Dangerous Toxic Cough Syrup: दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक भारतीय कंपनी द्वारा बनाये गए कफ सिरप और गाम्बिया में दर्जनों बच्चों की मौत के बीच संबंध का जिक्र किया है। डब्लूएचओ ने कहा है कि इस दवा से किडनी खराब हो सकती है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 6 Oct 2022 5:36 PM IST
Toxic Cough Syrup
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Toxic Cough Syrup(photo: social media )

Dangerous Toxic Cough Syrup: शिशुओं के लिए बहुत सी दवाएं सिरप के रूप में दी जाती हैं। खांसी, बुखार, एंटीबायोटिक वगैरह दवाओं को पीडियाट्रिक सिरप के तौर पर बनाया और बेचा जाता है। ऐसे सिरप कहने को तो मामूली सी चीज हैं लेकिन यही दवा जानलेवा भी साबित हो सकती है। क्योंकि इन सिरप को बनाने में बेस के रूप में आमतौर पर जो केमिकल इस्तेमाल किया जाता है वह खतरनाक होता है। 2007 में पनामा में एक कफ सिरप में डीईजी से संबंधित विषाक्तता का एक प्रकरण सामने आया था, जिसके परिणामस्वरूप 365 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी। 2020 में जम्मू कश्मीर में कई बच्चों की मौत विषाक्त कफ सिरपसे हो गयी थी।

दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक भारतीय कंपनी द्वारा बनाये गए कफ सिरप और गाम्बिया में दर्जनों बच्चों की मौत के बीच संबंध का जिक्र किया है। डब्लूएचओ ने कहा है कि इस दवा से किडनी खराब हो सकती है। भारत ने इस मामले में तत्काल जांच शुरू कर दी है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि कि 'मेडेन' नामक कंपनी द्वारा उत्पादित कफ सिरप के प्रयोगशाला विश्लेषण में डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल की "अस्वीकार्य" मात्रा की पुष्टि की है। ये दोनों केमिकल विषाक्त साबित हो सकते हैं और गुर्दे की खराबी का कारण बन सकते हैं।

डायथिलीन ग्लाइकोल

दवाओं के साइड इफ़ेक्ट के इतिहास में डायथिलीन ग्लाइकोल काफी महत्वपूर्ण रहा है। 20वीं सदी के इतिहास में दवा से हुई पहली बड़ी तबाही 1937 में अमेरिका में हुई थी और इसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल शामिल था। हुआ ये था कि एक फार्मासिस्ट ने 'एलिक्सिर सल्फ़ानिलमाइड' दवा पेश की, जिसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल में घुलने वाले सल्फ़ानिलमाइड शामिल थे। स्वाद, रूप और सुगंध के लिए इसका परीक्षण किया गया था, लेकिन सुरक्षा के लिए कोई परीक्षण नहीं किया गया। अंजाम ये हुआ कि दवा लेने के बाद 100 से अधिक रोगियों की तड़प तड़प कर मृत्यु हो गई। इनमें कई बच्चे शामिल थे, जिन्हें गले में खराश और खांसी के लिए रामबाण मानी जानी वाली दवा 'सल्फ़ानिलमाइड' दी गयी थी। इस घटना के बाद फैले सार्वजनिक आक्रोश के चलते यूएस 1938 फ़ूड, ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट अस्तित्व में आया, और अभी भी यही कानून अमेरिका में उन सभी दवाओं और उपकरणों के सार्वजनिक नियंत्रण का कानूनी आधार है, जिनका उपयोग इंसानों तथा जानवरों के निदान, इलाज, शमन, उपचार, या बीमारी की रोकथाम में उपयोग के लिए किया जाता है। यह कई अन्य देशों में इसी तरह के कानून के लिए एक मॉडल रहा है।

एथिलीन ग्लाइकोल विषाक्तता

डायथिलीन और पॉलीइथाइलीन ग्लाइकॉल्स को प्रोपलीन ग्लाइकॉल के सस्ते विकल्प के रूप में बच्चों के सिरप तैयार करने में बेस के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भारत और बांग्लादेश में डायथिलीन ग्लाइकोल-प्रेरित एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) की घटनाओं की सूचना पहले भी मिली है। 1992-94 एक बड़े अध्ययन में, बांग्लादेश के ढाका के एक बच्चों के अस्पताल में अस्पष्टीकृत एकेआई वाले 339 बच्चों में 236 मौतें दर्ज की गईं। कुल 51 बच्चों ने एसिटामिनोफेन (पैरासिटामोल) का एक ब्रांड जिसमें डायथिलीन ग्लाइकोल होता है, लिया था जबकि शेष रोगियों में से 85 फीसदी ने बुखार के लिए एक अज्ञात सिरप का सेवन किया था। हेपेटोमेगाली, एडिमा, उच्च रक्तचाप, गंभीर एसिडोसिस, उच्च सीरम क्रिएटिनिन स्तर और अस्पताल में भर्ती रोगियों में मृत्यु दर अधिक पाई गयी थी। एक अन्य रिपोर्ट में, इंट्राकैनायल या इंट्रा ओकुलर दबाव को कम करने के लिए 'ग्लिसरॉल' देने के बाद एकेआई से 14 रोगियों की मृत्यु हो गई। इस सिरप के विश्लेषण से पता चला कि इसमें 70 फीसदी एथिलीन ग्लाइकॉल था।

डायथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला एजेंट है। इसके मिश्रण से बनी दवाओं के चलते हैती (1995-1996), बांग्लादेश (1990), और पनामा (2006) में बड़े पैमाने पर प्रकोप हुए थे। डीईजी एक शक्तिशाली 'रीनल विष' है जो मेटाबोलिक एसिडोसिस का कारण बन सकता है।

क्या है ये केमिकल

डायथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) एक मीठा स्वाद वाला, रंगहीन, गंधहीन, हाईड्रोस्कोपिक लिक्विड है जो आमतौर पर एंटीफ्रीज़, ब्रेक फ्लूइड, सिगरेट और कुछ डाई के निर्माण में उपयोग किया जाता है। यह कई अपेक्षाकृत अघुलनशील पदार्थों के लिए एक बढ़िया साल्वेंट होता है। डीईजी का उपयोग आमतौर पर मानव दवाओं में भी किया जाता है, जैसे कि एसिटामिनोफेन और सल्फ़ानिलमाइड। लेकिन कभी गलती से या जानबूझ कर इस केमिकल की मात्रा ज्यादा कर दिए जाने से बेहद घातक नतीजे होते हैं। ग्लिसिरीन में भी ये केमिकल मिलाया जाता है। शराब में अवैध मिलावट के तौर पर भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। डीईजी सीएनएस, हृदय, श्वसन प्रणाली, यकृत, अग्न्याशय और गुर्दे को प्रभावित करता है। विषाक्तता से जुड़े जैव रासायनिक परिवर्तनों में ऊंचा यकृत एंजाइम स्तर, साथ ही सीरम बन और क्रिएटिनिन के स्तर में वृद्धि शामिल है। इसी कारण खाद्य पदार्थों और दवाओं में डीईजी मिलाने की अनुमति नहीं है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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