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23 सालों से शरणार्थी बनकर त्रिपुरा में रह रहा ब्रू समुदाय, जानिए इनके बारे में

केंद्र की मोदी सरकार ने लंबे समय से चली आ रही ब्रू समुदाय की समस्या को दूर करने की घोषणा की है। ब्रू समुदाय के लोग अब स्थायी रूप से त्रिपुरा में बसाए जाएंगे। ब्रू समुदाय 1997 में मिजोरम से विस्थापित हुआ था जिसके बाद से हजारों लोग त्रिपुरा में बनाए गए शरणार्थी कैंपों में रह रहे थे।

Dharmendra kumar
Published on: 16 Jan 2020 4:20 PM GMT
23 सालों से शरणार्थी बनकर त्रिपुरा में रह रहा ब्रू समुदाय, जानिए इनके बारे में
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नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार ने लंबे समय से चली आ रही ब्रू समुदाय की समस्या को दूर करने की घोषणा की है। ब्रू समुदाय के लोग अब स्थायी रूप से त्रिपुरा में बसाए जाएंगे। ब्रू समुदाय 1997 में मिजोरम से विस्थापित हुआ था जिसके बाद से हजारों लोग त्रिपुरा में बनाए गए शरणार्थी कैंपों में रह रहे थे।

जुलाई 2018 में उन्हें वापस भेजने के लिए एक समझौता हुआ, लेकिन यह लागू नहीं हो पाया। दरअसल, ब्रू समुदाय के लोगों ने फिर से हिंसा के डर से मिजोरम जाने से इंकार कर दिया।

जानिए ब्रू आदिवासियों के बारे में?

ब्रू समुदाय मिजोरम का सबसे बड़ा अल्‍पसंख्‍यक आदिवासी समूह है। करीब 33,000 ब्रू पिछले 23 सालों से उत्‍तरी त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में गुजर बसर कर रहे थे। बता दें कि 1990 के दशक में ब्रू समुदाय का बहुसंख्‍यक मिजो लोगों से स्‍वायत्‍त डिस्ट्रिक्‍ट काउंसिल के मुद्दे पर खूनी संघर्ष हुआ था। इसके बाद ही लगभग 5000 से ज्यादा परिवार मिजोरम से पलायन कर गया था।

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मिजो जनजाति ब्रू को 'बाहरी' कहती है। यह आदिवासी समूह अपना मूल म्‍यांमार के शान प्रांत में मानता है, ये लोग कुछ सदियों पहले वहां से मिजोरम में आकर बसे थे।

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लेकिन कुछ ब्रू शरणार्थी मिजोरम वापस लौटे गए और इन लोगों को सरकार की ओर से मदद दी गई। अक्टूबर 2019 में लगभग 51 परिवार एक साथ मिजोरम लौटे थे। अधिकारियों के मुताबिक बीते 10 सालों में दो हजार से अधिक परिवार मिजोरम लौट गए हैं और वहां बिना किसी मुश्किल के रह रहे हैं। इसी क्रम में सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे थे कि ब्रू समुदाय के लोग मिजोरम लौट जाएं।

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इससे पहले 2018 में त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों खाने-पीने की सप्लाई रोक दी थी। सरकार ने ब्रू समुदाय के लोगों से अपील की थी कि वे अपने मूल निवास को लौट जाएं। ज्यादातर लोगों ने हिंसा के डर से वापस जाने से इंकार कर दिया था। जो लोग जाने को तैयार भी थे, उन्होंने भी सरकार से मांग की थी कि पुनर्वास के लिए उन्हें और ज्यादा पैसे दिए जाएं।

Dharmendra kumar

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