×

कम्बख्तों! सैनेटरी नैपकिन पर भी जीएसटी ठोक दिया, आखिर इरादा क्या है आपका ?

Rishi
Published on: 7 July 2017 10:19 AM GMT
कम्बख्तों! सैनेटरी नैपकिन पर भी जीएसटी ठोक दिया, आखिर इरादा क्या है आपका ?
X

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के व्यापारियों द्वारा विरोध के बावजूद इसे ऐतिहासिक बताकर लागू कर दिया, लेकिन विरोध अभी थमा नहीं है। महिलाएं भी जीएसटी को लेकर एक अलग तरह की लड़ाई लड़ रही हैं। उनकी लड़ाई मगर अधिकार और स्वच्छता से जुड़ी है।

देश का दुर्भाग्य है कि बिंदी, सिंदूर, सूरमा और यहां तक कि कंडोम को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन सैनेटरी नैपकिन पर 12 फीसदी कर लगाया गया है। महिला संगठनों से लेकर विभिन्न दलों ने सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है कि क्या बिंदी और सिंदूर, सैनेटरी नैपकिन से ज्यादा जरूरी हैं? या फिर सरकार के दृष्टिकोण में महिला स्वच्छता की तुलना में श्रृंगार का अधिक महत्व है?

मगर सरकार का कहना है कि जीएसटी की दरें स्थायी नहीं हैं, इसमें संशोधन होता रहेगा और भविष्य में सैनेटरी नैपकिन को जीएसटी के दायरे से बाहर भी रखा जा सकता है, लेकिन अभी तो टैक्स देना ही होगा।

सरकार पिछले तीन वर्षो से 'बेटी बचाओ', बेटी पढ़ाओ' और 'स्वस्थ भारत' जैसे अभियानों का जोर-शोर से डंका बजा रही है, लेकिन महिलाओं के मुद्दे पर वह इतनी 'असंवेदनशील' कैसे हो गई?

यह जानकर अचरज होगा कि देश में 35.5 करोड़ महिलाओं में से सिर्फ 12 फीसदी आबादी ही सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। वजह है इनकी ऊंची कीमतें। इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाली संस्था 'शी सेज' ने हैशटैग 'लहू का लगान' नाम से सोशल मीडिया पर एक मुहिम शुरू की थी।

संस्था से जुड़ी सदस्या नेहा बताती हैं, "हमने अप्रैल में इस मुहिम की शुरुआत की थी, मकसद था कि हम अपने ही लहू का लगान क्यों दें? माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिससे हर महिला को जूझना पड़ता है। सैनेटरी नैपकिन की कीमत ज्यादा होने से यह एक बड़ी आबादी की पहुंच से बाहर भी है। सरकार को इसे कर मुक्त करना चाहिए, और ग्रामीण स्तरों पर तो इसका निशुल्क वितरण करना चाहिए।"

दिल्ली के झंडेवालान स्थित एनजीओ 'दास फाउंडेशन' की संस्थापक एवं महिला कार्यकर्ता योगिता ने बताया, "यह सरकार का बेवकूफी भरा कदम है। इस फैसले से महिलाओं के प्रति सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया झलकता है। इन्होंने महिलाओं को सिर्फ साजो-श्रृंगार तक ही सीमित रखा है और यह फैसला उसका प्रमाण है।"

उन्होंने कहा, "सैनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करने से महिलाओं में तरह-तरह की बीमारियां घर कर लेती हैं। सरकार को चाहिए कि गांवों से लेकर दूर-दराज के इलाकों तक सैनेटरी पैड को निशुल्क बांटा जाए, क्योंकि गरीब तबके की महिलाएं इन्हें नहीं खरीद सकतीं। लेकिन इसके विपरीत सरकार उस पर टैक्स लगा रही है। इससे बड़ा असंवेदनशीलता का उदाहरण और कहां देखने को मिलेगा!"

कांग्रेस प्रवक्ता एवं महिलाओं के मुद्दों को जोर-शोर से उठाने वाली प्रियंका चतुर्वेदी ने आईएएनएस से कहा, "सरकार एक तरफ तो महिला सशक्तीकरण की बात करती है, तो दूसरी तरफ इस तरह के कदम उठाकर महिलाओं को लेकर अपनी असंवेदनशीलता का परिचय भी देती है। यह सीधे तौर पर महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है। सरकार को बिंदी, सिंदूर महंगा होने की चिंता है, मगर उन्हें महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है। 85 फीसदी से अधिक महिलाओं की सैनेटरी पैड तक पहुंच नहीं है। इसे लेकर सरकार ने अब तक क्या किया?"

इस मुद्दे पर महिलाओं के रोष और सरकार की नीयत पर उठे सवालों को खारिज करते हुए दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा नेता बरखा शुल्का सिंह कहती हैं, "जीएसटी की दरें हमेशा के लिए निर्धारित नहीं की गई हैं। इसमें समय-समय पर संशोधन होता रहेगा और हो सकता है कि जीएसटी परिषद की अगली बैठक में सैनेटरी नैपकिन को करमुक्त भी कर दिया जाए। बिंदी और सिंदूर को सैनेटरी नैपकिन से जोड़कर बेवजह ही इसे तूल दिया जा रहा है।"

बरखा ने आईएएनएस को बताया, "जीएसटी से पहले सैनेटरी पैड पर 14 फीसदी का टैक्स लगा था, जिसे जीएसटी के तहत 12 फीसदी के दायरे में लाया गया। इस तरह सैनेटरी पैड की खरीद में दो फीसदी की गिरावट आई है।"

तो क्या इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है? इसके जवाब में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल कहती हैं, "सवाल यह नहीं है कि पहले 14 फीसदी था और अब इसे 12 फीसदी किया गया। सवाल यह है कि जब लंबे समय से महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए, उन तक सैनेटरी पैड की पहुंच बनाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है कि इसे निशुल्क किया जाए, तो क्यों सरकार उस पर भारी-भरकम कर लगाती है और सिंदूर और बिंदी को करमुक्त कर देती है? हमें इसका जवाब चाहिए। हमने इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली को पत्र भी लिखा है।"

महिला कार्यकर्ता योगिता कहती हैं कि महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। सरकार अलग से बजट का प्रावधान कर घर-घर शौचालय बनवा सकती है तो ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में निशुल्क सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराना कौन सा मुश्किल काम है।

Rishi

Rishi

आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

Next Story