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नेविगेशन प्रणाली नाविक के लिए बाधा बन सकते हैं वाई-फाई सिग्नल

Rishi
Published on: 29 Jun 2018 7:05 PM IST
नेविगेशन प्रणाली नाविक के लिए बाधा बन सकते हैं वाई-फाई सिग्नल
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नई दिल्ली : मोबाइल फोन में उपयोग होने वाले जीपीएस की तर्ज पर भारत में इसरो द्वारा विकसित की गई नेविगेशन प्रणाली (नाविक) से भविष्य में नेविगेशन और पोजिशनिंग सेवाएं उपलब्ध हो सकती हैं। लेकिन, एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि नाविक उपग्रह से प्राप्त होने वाले सिग्नल रिसीवर्स में वाई-फाई के सिग्नल से बाधित हो सकते हैं।

नाविक प्रणाली के अंतर्गत इसरो ने सात उपग्रह लॉन्च किए हैं और उम्मीद है कि इससे भविष्य में स्मार्टफोन और कार नेविगेशन सिस्टम उपलब्ध हो सकते हैं। वर्तमान में प्रचलित जीपीएस प्रणाली अमेरिकी उपग्रहों पर निर्भर है।

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इस अध्ययन के दौरान जब वाई-फाई के फ्रीक्वेंसी चैनल को नाविक रिसीवर के एस-बैंड सिग्नल के साथ रिसीव किया गया तो नाविक रिसीवर के सिग्नल में अवरोध दर्ज किया गया। शोधकर्ताओं के अनुसार, उपयोगकर्ता के रिसीवर में कमजोर सिग्नल के कारण ऐसा होता है।

नाविक उपग्रह फ्रीक्वेंसी बैंड एल-5 (1176.45 मेगाहर्ट्ज) और एस-बैंड (2492.08 मेगाहर्ट्ज) पर के जरिये सिग्नल भेजते हैं। एस-बैंड का उपयोग नाविक द्वारा नेविगेशन सिस्टम के संचालन के लिए किया जाता है और इसी बैंड का उपयोग लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (एलटीई), ब्लूटुथ और वायरलेस फाइडेलिटी (वाई-फाई) जैसी अन्य संचार प्रणालियों के लिए भी किया जाता है।

फ्रीक्वेंसी की इस निकटता के कारण नाविक से मिलने वाले संकेतों की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, “एस-बैंड पर नाविक-रिसेप्शन की फ्रीक्वेंसी वाईफाई ट्रांसमिशन के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।” यह अध्ययन सूरत स्थित सरदार वल्लभभाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग विभाग की शोधकर्ता डॉ श्वेता एन. शाह और दर्शना डी. जागीवाला ने मिलकर किया है। इसरो के अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (एसएसी) ने अध्ययन के लिए आवश्यक उपकरण प्रदान किए हैं।

शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि “इस तरह के अवरोध नाविक के रिसीवर के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकते हैं। भविष्य में मोबाइल फोन में अगर नाविक और वाई-फाई का उपयोग एक साथ किया जाता है तो रेडियो फ्रीक्वेंसी से जुड़ी बाधाओं से निजात पाना चुनौती बनकर उभर सकती है।”

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डॉ शाह ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “फिलहाल लगभग हर फोन में वाई-फाई रिसीवर्स होते हैं। ऐसे में वाई-फाई के कारण नाविक सिग्नल के प्रभावित होने के खतरों से बचाव के लिए अधिक अध्ययन किये जाने की जरूरत है क्योंकि इस तरह के अवरोधी सिग्नल नाविक रिसीवर्स के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकते है।”

वायरलेस विशेषज्ञों का मानना है कि नाविक और अन्य बैंड्स के बीच फ्रीक्वेंसी संबंधी अवरोधों के कारण गुणवत्तापूर्ण सेवाओं के अलावा नियमन से जुड़ी चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। भारत में 2400-2483.5 मेगाहर्ट्ज आवृत्ति के वाई-फाई सिग्नल को लाइसेंसिंग से छूट मिली है। इसका मतलब है कि किसी भी वाई-फाई सिस्टम या चैनल का उपयोग करने योग्य हिस्सा 2483.5 मेगाहर्ट्ज के भीतर होना चाहिए।

भारत सरकार के पूर्व वायरलस सलाहकार पवन कुमार गर्ग ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “डिजिटल उत्सर्जन की मूल विशेषता के कारण अवशिष्ट या अनापेक्षित सिग्नल आमतौर पर इस सीमा से बाहर जाते हैं। नाविक सिग्नल ± 8.25 की बैंडविथ के साथ 2492.08 मेगाहर्ट्ज पर आधारित है। इसका मतलब है कि नाविक सिग्नल का निचला हिस्सा वाई-फाई सिस्टम के अवशिष्ट / अनापेक्षित सिग्नल के साथ हस्तक्षेप कर सकता है। इसी तरह, नाविक सिग्नल का ऊपरी हिस्सा 2500 मेगाहर्ट्ज को पार कर जाता है, जबकि इतनी फ्रींक्वेंसी अन्य उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उपयोग होती है। नाविक रिसीवर्स 2500 मेगाहर्ट्ज से अधिक वाली अन्य प्रणालियों से सिग्नल पकड़ सकता है, जिससे गुणवत्ता प्रभावित होती है।”

गर्ग के अनुसार, “2483.5 मेगाहर्ट्ज से कम और 2500 मेगाहर्ट्ज से अधिक आवृत्ति वाले वाई-फाई के कारण होने वाली इस समस्या को कम करने के लिए नाविक रिसीवर्स को ±7.5 मेगाहर्ट्ज की कम बैंडविथ का उपयोग करना चाहिए।”

इंडिया साइंस वायर



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Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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