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विश्‍व अस्थमा दिवस: Stop for Asthma के थीम पर मनाया गया, जानें कैसे होता है अस्थमा?

विश्‍व अस्थमा दिवस सम्पूर्ण विश्व में अस्थमा के विषय में जागरूकता बढाने के लिये प्रतिवर्ष मई माह के प्रथम मंगलवार को मनाया जाता है।

Aditya Mishra
Published on: 7 May 2019 5:44 PM GMT
विश्‍व अस्थमा दिवस: Stop for Asthma के थीम पर मनाया गया, जानें कैसे होता है अस्थमा?
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लखनऊ: विश्‍व अस्थमा दिवस सम्पूर्ण विश्व में अस्थमा के विषय में जागरूकता बढाने के लिये प्रतिवर्ष मई माह के प्रथम मंगलवार को मनाया जाता है। इस वर्ष विश्‍व अस्थमा दिवस 07 मई को मनाया जा रहा है इस बार का विषय है “Stop for Asthma.”

इस विषय का मतलब निम्न है-

S=Symptom Evaluation

T= Test Response

O= Observe and Assess

P= Proceed to Adjust Treatment

अस्थमा या दमा फेफड़ों की एलर्जी से होने वाली बीमारी है। प्रदूषण की वजह से विश्व भर में दमा के मरीजों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।WHO के अनुसार दुनिया भर में 235 मिलियन लोग दमा से प्रभावित है। विश्व के 10 प्रतिशत (लगभग 15-20 मिलियन) और भारत की कुल आबादी का लगभग 2 प्रतिशत आबादी दमे से पीड़ित है। 5 से 11 वर्ष की आयु के लगभग 10-15 : बच्चो में अस्थमा पाया जा रहा है ।

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प्रमुख लक्षण-

1. रोगी की श्वास फूलना।

2. खांसी आना।

3. मरीज के सीने में कसाव व दर्द महसूस होना।

4. बच्चो में अस्थमा का महत्वपूर्ण लक्षण सुबह या रात में खांसी/श्वांस फूलना/पसली चलना है।

इलाज के बाद भी यदि खांसी/श्वांस फूलना लगातार बना रहे तो यह भी अस्थमा का लक्षण हो सकता है।

अस्थमा होने के कारण -

अस्थमा की बिमारी मे फेफड़ो की श्वांस की नलियों मे सूजन आ जाती है। सूजन के कारण श्वास की नलियॉ सिकुड जाती है। अस्थमा के रोगियो के फेफड़े अतिसंवेदनशील होते है।

अस्थमा के अटैक के लिये जिम्मेदार कारक -

-घरो मे बिछाये जाने वालो गद्दो, सोफा, कार्पेट मे पाये जाने वाले किटाणु“ Dust Mites”

- पालतू जानवरों के स्पर्श ( जानवरों के फर)

- सिगरेट का धुंआ

- बचपन में बार-बार होने वाले श्वांस के संक्रमण

- विभिन्न खाद्य पदार्थ

-हवा का प्रदूषण

- रसायनिक तत्वो/दवाईयों से सम्पर्क

-भावनात्मक तनाव

-कभी कभी कुछ मरीजो में अत्याधिक व्यायाम अस्थमा के अटैक के कारण हो सकते है।

-परागकण

-फंफूदी

-धूल कण

-ठंड/ठंडी हवा

-तिलचटटे

-घर में साफ सफाई के समय उड़ने वाले कण

अतिसंवेदनशील फेफड़े उपरोक्त कारको के सर्म्पक में आने से अस्थमा का अटैक होता है। उपरोक्त में से कोई भी कारण एलर्जी का कारण बन सकता है और यही एलर्जी दमा का कारण बनती है। कम वजन के पैदा होने वालो बच्चो,आपरेसन से होने वाले बच्चो में अस्थामा होने का खतरा कई गुना होता है।

बड़ते हुए शहरीकरण एंव औधोगिकीकरण से अस्थमा रोगो की संख्या बड़ रही है

अस्थमा की पहचान -

01. अस्थमा की पहचान मरीज द्वारा बतायें गये लक्षणों के आधार पर।

02. चिकित्सक द्वारा छाती के परीक्षण द्वारा।

03. अस्थमा का सही पता लगाने के लिये कम्प्यूटराईज्ड पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट अत्यंत उपयोगी है।

04. एलर्जी टेस्ट (Skin Prick Test, Serological Tests) के द्वारा विभिन्न प्रकार के एर्लजेंस जो कि दमा के कारक है को पहचानने में मदद मिलती है।

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अस्थमा से बचाव एवं उपचार -

एलर्जन के सम्पर्क मे ना आने के लिये यथा सम्भव प्रयास किया जाना चाहिये। अस्थमा को पूरी तरह से ठीक नही किया जा सकता है। अस्थमा को पूर्ण रूप से नियंत्रित करके सक्रिय एंव सामान्य जिंदगी जी सकते है। अनुसंधानो से यह तथ्य सिद्व हो चुका है कि सूजन कम करने वाली दवाये एंव श्वांस नलियो से फैलाने वाली दवाओं अस्थमा पर नियंत्रण एंव अस्थता अटैक को रोका जा सकता है। (Anti-inflammatory) दवांये श्वांस की नली की सिकुड़न खत्म करने वाली दवाओं (Bronco-dilator)की तुलना मे अधिक कारगर है और इन्हे लम्बे समय तक इंहेलेशनल थिरेपी के रूप में लिया जा सकता है। आज के समय में इंहेलेशनल थिरेपी सबसे सुरक्षित एवं बेहतरीन तकनीकि है। इसमें दवाईयॉं सीधे फेफड़ों मे पहुंचती है और तुरंत असर करती है। इनहेलर के जरिये दवा लेने से शरीर के अन्य अंगों पर औषधियांं के दुषप्रभाव से बचा जा सकता है।

इनहेलर के प्रयोग के पश्चात् रोगी को अपने मुंह को पानी से अच्छी तरह से साफ करना चाहियें। जिससे मुंह मे रह गयी दवा रोगी को नुकसान ना पहुचा सके।

नेबुलाइजर मशीन का प्रयोग केवल छोटे बच्चों अथवा गम्भीर रोगियों मे किया जाना चाहिये क्योकि नेबुलाइजर के नियमित प्रयोग से उसकी ट्यूब को साफ ना किया जाये तो इस स्थिति में संक्रमण का खतरा बना रहता है। विषेशज्ञो द्वारा प्रारम्भ की गयी दवाईयो को अपने आप कम ना करे तथा निर्देशो का पूर्ण रुप से पालन करे।

Bronchil Thermoplasty:-

इस युग मे यह एक उन्नत विधा है जिसमे अस्थमा के गम्भीर रोगियों में जिनमें श्वास की नली की सिकाई की जाती है। सिकाइ से अस्थमा रोगियों की श्वांस नली की मोटी मासपेसियो की परत पतली हो जाती है। जिससे गम्भीर दमा से पीड़ित मरीजों को फायदा पहुंचता है।

Immunotherapy:-

इम्यूनोथैरेपी भी एलर्जी के मरीजों का इलाज करने की अन्य विधा है । इम्यूनोथैरेपी मे अस्थमा करने वाले एलर्जन को बढ़ती हुई मात्रा में देकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है। एलर्जी के मरीजों में इम्यूनोथेरिपी द्वारा ।Anti-inflammatory एवं Bronco-dilator दवाओं की मात्रा को घटाने मे मदद मिलती है।

आम जनमानस की गलत धारणा :-

रोगी एवं आम जनमानस की यह गलत धारणा है कि इनहेलर का उपयोग इस बीमारी का अंतिम इलाज है, इसे इस्तेमाल नही करना चाहियें और इसकी आदत पड़ जाती है। सच यह है कि इनहेलर का उपयोग श्यह एक अच्छी आदत है और इसका प्रयोग प्रारम्भिक अवस्था से ही किया जाना चाहिये।

पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग, के0जी0एम0यू0, यू0पी0, लखनऊ द्वारा सप्ताह के हर सोमवार को अस्थमा एंव एलर्जी क्लीनिक का संचालन किया जा रहा है। इस क्लीनिक में अस्थमा के सामान्य एंव गम्भीर रोगियो का इलाज किया जाता है । अति गम्भीर रोगियो के लिये भर्ती, आई0सी0यू0, आक्सीजन, (Non-Invasive Ventilation) वेंण्टीलेटर इत्यादि की सुविधाये अत्यंत कम दरों पर प्रदान की जा रही है।

डा0 वेद प्रकाश

विभागाध्यक्ष

पल्मोनरी एण्ड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग

के0जी0एम0यू0, यू0पी0, लखनऊ

Aditya Mishra

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