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EARTH DAY: धरती को हरा-भरा रखने के संकल्प का दिन, इन्होंने ऐसे की शुरुआत

suman
Published on: 22 April 2019 9:15 AM IST
EARTH DAY: धरती को हरा-भरा रखने के संकल्प का दिन, इन्होंने ऐसे की शुरुआत
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जयपुर: पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को बचाने व दुनिया भर में पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ 22 अप्रैल के दिन 'पृथ्वी दिवस यानि' अर्थ डे की शुरूआत की गई थी। 22 अप्रैल 1970 में शुरू की गई इस परंपरा को 192 देशों ने अपनाया और आज के दिन लगभग पूरी दुनिया में धरती पर हरियाली बनाए रखने और हर तरह के जीव-जंतुओं को पृथ्वी पर उनके हिस्से का स्थान और अधिकार देने का संकल्प लिया जाता है।पूरी दुनिया 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाती है, लेकिन अमेरिका में इसे वृक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पहले पूरी दुनिया में साल में दो दिन (21 मार्च और 22 अप्रैल) पृथ्वी दिवस मनाया जाता था। लेकिन 1970 से 22 अप्रैल को मनाया जाना तय किया गया। 21 मार्च को मनाए जाने वाले 'इंटरनेशनल अर्थ डे' को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन है, पर इसका महत्व वैज्ञानिक तथा पर्यावरणीय ज्यादा है। इसे उत्तरी गोलार्ध के वसंत तथा दक्षिणी गोलार्ध के पतझ़ड़ के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। 22 अप्रैल को ही विश्व पृथ्वी दिवस मनाए जाने के पीछे अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन रहे हैं। वे पर्यावरण को लेकर चिंतित रहते थे और लोगों में जागरूकता जगाने के लिए कोई राह बनाने के प्रयास करते रहते थे।

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इसकी शुरुआत एक अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने की थी। साल 1969 में कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में तेल रिसाव के कारण भारी बर्बादी हुई थी, जिससे वह बहुत आहत हुए और पर्यावरण संरक्षण को लेकर कुछ करने का फैसला किया। 22 जनवरी को समुद्र में तीन मिलियन गैलेन तेल रिसाव हुआ था, जिससे 10,000 सीबर्ड, डाल्फिन, सील और सी लायन्स मारे गए थे। इसके बाद नेल्सन के आह्वाहन पर 22 अप्रैल 1970 को लगभग दो करोड़ अमेरिकी लोगों ने पृथ्वी दिवस के पहले आयोजन में भाग लिया था। नेल्सन ने ऐसी तारीख को चुना जो इस दिवस में लोगों की भागीदारी को अधिकतम कर सके। उन्हें इसके लिए 19 से 25 अप्रैल तक का सप्ताह सबसे अच्छा लगा। जुलियन कोनिग ने साल 1969 में पृथ्वी दिवस व अर्थ डे का नाम दिया था। इस नए आंदोलन को मनाने के लिए 22 अप्रैल का दिन चुना था। इसी दिन केनिग का जन्मदिन भी होता है।धरती के तापमान का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग धरती का सबसे बड़ा खतरा है। औद्योगीकरण के बाद कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन पिछले पंद्रह सालों में कई गुना बढ़ा है। इसके अलावा विश्व में प्रतिवर्ष दस करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है।



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