पहली बार ‘गलत काम’ पर बंटती थी मिठाई

raghvendra
Published on: 3 Aug 2018 10:10 AM GMT
पहली बार ‘गलत काम’ पर बंटती थी मिठाई
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शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: बिहार सरकार का समाज कल्याण विभाग अगर सक्रिय होता तो मुजफ्फरपुर कांड तीन साल पहले ही सामने आ गया होता। असल में तीन साल पहले समाज कल्याण निदेशालय ने मुजफ्फरपुर स्थित शेल्टर होम में जांच के बाद कुछ असहज होने के संकेत दिए थे। लेकिन शेल्टर होम संचालक की ऊंची पहुंच ने मामला दबवा दिया था। बहरहाल, समाज कल्याण विभाग की सिफारिश पर ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस्स) की एजेंसी ‘कोशिश’ ने सोशल ऑडिट कर फरवरी 2018 में रिपोर्ट सौंपी थी। इस बार भी शेल्टर होम के संचालक ने विभाग में सब कुछ दबाए रखा। लेकिन 30 मई को विभाग हरकत में आया।

यह हरकत भी इतनी कमजोर थी कि लड़कियों ने जिन जिम्मेदारों पर आरोप लगाया था, उनमें से एक (सीपीओ रवि कुमार रौशन) की ‘देखरेख’ में मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम से 14 बच्चियों को मधुबनी और 16-16 लड़कियों को पटना जिला मुख्यालय व मोकामा के शेल्टर में शिफ्ट किया गया। इसी ‘देखरेख’ का नतीजा था कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद मधुबनी व पटना ले जाए जाने के दिन भी रवि रोशन ने एक बच्ची के साथ हैवानियत की थी। लड़कियों ने बताया कि कैसे उन्हें एक नेटवर्क थाने के रास्ते इस शेल्टर होम तक पहुंचाता था और कैसे पहली बार उनके साथ शारीरिक संबंध बनाए जाने के बाद पीडि़ता समेत सभी को मिठाई बांटी जाती थी।

सोशल ऑडिट रिपोर्ट को भी 90 दिनों तक दबाए रखा

विभाग खुद सोशल ऑडिट कराने की बात पर अपनी पीठ ठोकने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि फरवरी में आई रिपोर्ट के करीब 90 दिनों के बाद 31 मई को सहायक निदेशक ने मुजफ्फरपुर स्थित महिला थाने में एफआईआर दर्ज कराई। इस एफआईआर में बालिका गृह संचालक एनजीओ ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ को आरोपित किया गया। हालांकि, इसके बाद पुलिस की सक्रियता के कारण मामला तेजी से खुलने लगा। एफआईआर के अगले दिन 01 जून को खुद मुजफ्फरपुर एसएसपी ने शेल्टर होम का दौरा किया और अगले दिन बालिका गृह के संचालक व मुख्य कार्यकारी ब्रजेश ठाकुर, शेल्टर अधीक्षक इंदु समेत आठ को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। दो दिनों के बाद सीडब्ल्यूसी मेंबर विकास कुमार और सीपीओ रवि रोशन को भी गिरफ्तार किया गया।

मानसून सत्र में विपक्ष हमलावर, मंत्री व मंत्री पति का नाम आया

चूंकि ब्रजेश ठाकुर मुजफ्फरपुर से निकलने वाले पुराने अखबार ‘प्रात: कमल’, उर्दू अखबार ‘हालात-ए-बिहार’ और अंग्रेजी अखबार ‘न्यूज नेक्स्ट’ का मालिक है इसलिए यह खबर सुर्खियों में तब भी नहीं आ रही थी। जून और जुलाई में विधानमंडल के मानसून सत्र के पहले यह केस मुजफ्फरपुर तक ही दबा पड़ा रहा। लेकिन मानसून सत्र में विपक्ष ने सवाल उठाना शुरू किया, हंगामा होने लगा तो सरकार ने खुद सोशल ऑडिट कराने और जांच के आधार पर गिरफ्तारी की बात कही।

इसी क्रम में सामने आया कि टिस्स ने फरवरी में ही सोशल ऑडिट रिपोर्ट सौंपी थी। इसके बाद विपक्ष ने सीबीआई जांच की मांग तेज कर दी। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी मुजफ्फरपुर पहुंच गए। उनके मुजफ्फरपुर पहुंचते ही बवाल का रुख बदल गया। गिरफ्तार सीपीओ रवि कुमार रोशन की पत्नी शिवा कुमारी सिंह ने इस मामले मेंं बिहार सरकार की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के पति चंद्रशेखर वर्मा का नाम ला दिया। इसे विपक्ष ने ऐसा लपका कि सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। 25 जुलाई को दोपहर तक सीबीआई जांच की जरूरत नहीं बताने वाली राज्य सरकार ने 26 जुलाई की सुबह सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने हाईकोर्ट से इस केस में निगरानी के लिए आग्रह करने की बात भी कही।

सीबीआई के हाथ में अब तक मीडिया की ही बातें

29 जुलाई को पटना में सीबीआई ने अपनी ओर से एफआईआर की। 30 जुलाई को जब सीबीआई ने जांच शुरू की तो उसके पास मीडिया से सामने आई बातों के अलावा बिहार पुलिस की प्राथमिकी ही थी। मुजफ्फरपुर में शेल्टर होम भी सील था, जिसके कारण सीबीआई की टीम वहां पहुंचकर भी कुछ खास नहीं कर सकी। आठ सदस्यीय टीम बमुश्किल आधे घंटे में शेल्टर होम को बाहर-बाहर देखकर लौट गई। फिलहाल सीबीआई की चार सदस्यीय टीम मुजफ्फरपुर में ही है। केस के मुख्य आरोपियों में से फरार बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) अध्यक्ष दिलीप वर्मा के खिलाफ इश्तेहार जारी हो चुका है। अब सीबीआई की नजर विभाग में फाइल स्थिर करने वालों पर है। समाज कल्याण विभाग से पूरी जानकारी मांगी गई है ताकि मीडिया और थाने से अलग कुछ दस्तावेजों के आधार पर उन अफसरों-कर्मियों समेत कथित राजनेताओं को सामने लाया जा सके, जिनके कारण फरवरी की रिपोर्ट पर 30 मई तक एफआईआर का इंतजार किया गया।

यौन उत्पीडऩ के अलग-अलग केस, मगर एक ही एफआईआर

अलग-अलग समय में अलग लड़कियों से बलात्कार के इस केस में विभाग की ओर से एक ही एफआईआर दर्ज की गई है। विधि विशेषज्ञों के अनुसार हर लडक़ी ने अपनी अलग दास्तान सुनाई है। किसी ने बेहोशी में तो किसी ने पीटकर यौन-उत्पीडऩ की बात कही है। किसी ने वीआईपी के सामने परोसे जाने तो किसी ने शेल्टर होम के अंदर और बागीचे में बलात्कार की बात कही है। ऐसे में एक प्राथमिकी में सभी को समेटने से अलग-अलग पीडि़तों का अलग-अलग आरोपियों पर केस नहीं हो रहा है। देखना है कि अब सीबीआई इसमें क्या करती है।

पत्रकारिता के नाम पर पहुंच बनाई, फिर इससे पाई मेहरबानी

ब्रजेश ठाकुर मुजफ्फरपुर का ही मूल बाशिंदा है। ब्रजेश के पिता राधामोहन ठाकुर ने 1982 में मुजफ्फरपुर से हिंदी अखबार ‘प्रात: कमल’ शुरू किया और अपनी पहुंच के सहारे सरकारी विज्ञापन लेने शुरू कर दिए। अखबार का ज्यादा प्रसार दिखाकर विज्ञापन से पैसे हासिल हुए और फिर इसे रीयल एस्टेट में लगाया। पिता की मौत के बाद ब्रजेश ठाकुर ने रीयल एस्टेट में कमाई बढ़ाई और फिर राजनीति में भी कदम बढ़ाया। 1993 में आनंद मोहन ने जनता दल से अलग होकर बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई थी। ब्रजेश ठाकुर ने 1995 में बिहार पीपुल्स पार्टी के टिकट पर मुजफ्फरपुर के कुड़हानी से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गया। ब्रजेश ने इसके बाद भी आनंद मोहन से नजदीकी बनाए रखी, साथ ही राजद-जदयू के रसूखदार नेताओं को भी साधे रखा। उसने पीआईबी से दिल्ली में एक्रिडेशन हासिल कर वहां आवास हासिल किया।

मिलते-जुलते नाम से उसने बिहार सरकार से भी एक्रिडेशन ले रखा है। बाद में ब्रजेश ने अपने बेटे राहुल आनंद को औपचारिक तौर पर ‘प्रात: कमल’ का मालिक बनाते हुए पत्रकार के रूप में अपनी पहचान को मजबूत कर सरकारी सिस्टम का फायदा उठाना तेज कर दिया। 2005 में ब्रजेश ने मुजफ्फरपुर में अपने बेटे की बर्थडे पार्टी मनाई जिसमें कई बड़े नाम शरीक हुए थे। 2016 में उसने बेटे राहुल को जिला परिषद तक पहुंचा दिया। इसके बाद से ब्रजेश ठाकुर लगातार सेवा संकल्प एवं विकास समिति एनजीओ के जरिए अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करता गया।

सरगना की तरह काम करता था ब्रजेश, पूरा गैंग था इसके लिए

राज्य महिला आयोग की टीम ने मोकामा के नाजरेथ अस्पताल स्थित शेल्टर होम में पीडि़ताओं से बात कर रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि ज्यादातर लड़कियां 18 साल से कम उम्र की हैं। इन गुमशुदा लड़कियों को पहले थाने और फिर वहां से बालिका गृह तक लाने में एक गैंग काम करता था। बालिका गृह पहुंचने पर पहले ही दिन उन्हें वीआईपी के सामने पेश कर दिया जाता था। इस पूरे सिस्टम में ब्रजेश ठाकुर सरगना की तरह काम करता था। घर का पता मिलने के बाद भी उन्हें कैद में रखा जाता था। एक लडक़ी ने शेल्टर होम में एक हत्या की बात भी कही। किसी लडक़ी ने बताया कि बालिका गृह में एक लडक़ी ने एक रेडियो तोड़ दिया। ब्रजेश ने चार लड़कियों से कहा कि इसे मार दोगी तो बहुत पैसे देंगे। एक रात चारों लड़कियों ने उसे मारने का प्लान बनाया। मैं सोने का नाटक कर रही थी। कुछ बोलती तो मार देते। मैंने देखा कि एक लडक़ी ने उसका गला दबाया। दूसरे हाथ पकड़ाा। दो लड़कियां लगातार मारती रहीं। लडक़ी मर गई तो शव को आलू के बोरे में बद कर गुड्डू, विजय और आरती रिक्शे पर ले गए। मुजफ्फरपुर में पुल के नीचे जहां कचरा फेंका जाता है, वहां फेंक दिया।’

पार्टी करते, वीडियो बनाते, नानुकर पर जहां-तहां मारते

‘2013 के बाद छह लड़कियां कहां गईं, इसकी चर्चा शेल्टर होम में आते ही सुनने को मिली। शायद जान-बूझकर भी सुनाया जाता हो ताकि डर से हम सब कुछ करने को तैयार हो जाएं। एक लडक़ी की पीट-पीटकर हत्या तथा लाश को दफन कर दिए जाने की भी चर्चा सुनने को मिली। हम सभी को नशा खिलाकर, किसी को सुंघाकर तो किसी बेची गई को छुड़ाकर थाने के रास्ते इस शेल्टर तक पहुंचाया गया। किसी को इंजेक्शन देकर नशे की हालत में हवस का शिकार बनाया गया तो किसी को शरीर पर दाग-दाग कर इसके लिए मजबूर किया गया। कुछ को दिल्ली तक वीआईपी के पास भेजा गया।’

‘एक सर सुई लगाते थे। वह कुछ नहीं करते थे। गलत करने वाले बाहर से भी आते थे। संचालिका को कहते तो जवाब देतीं- जाया करो उनके साथ। बागीचा में भी गलत काम करते थे वो लोग। ब्रजेश सर ज्यादातर को डंडे से पीटते थे और कई को अपने कमरे में ले जाकर गंदा काम करते थे। जिनके साथ ऐसा होता था, रोने-भागने पर उन्हें रस्सी से बांध कर पीटा जाता था। खाने में नींद की गोली डाल देते थे। उठने पर बदन टूटता था। क्या हुआ, पता नहीं चलता था। कपड़े शरीर पर नहीं होते थे। नींद की दवा देकर ब्रजेश सर के कमरे में सोने की बारी अलग-अलग होती थी। कभी भी किसी को बुला लिया जाता था। जो पहली बार शिकार होतीं, उनके बारे में किरण, नीलम और चंदा आंटी हंसती हुई कहती थीं, इसका काम हो गया। ब्रजेश सर बाहर के लडक़ों को बुलाकर भी गंदा काम करने को मजबूर करते थे। एक भाग गई तो पकडऩे के बाद बहुत पीटा। ब्रजेश सर पेट के निचले हिस्से में मारते थे। एक लडक़ी के पेट में बच्चा था, उसे भी मारते थे। जब भी ऐसा कुछ करता, रोशन सर वीडिया बनाता था। कहता कि चिल्लाओगी तो ब्रजेश गोली मार देगा। पहली बार गलत काम किया तो दही-चूड़ा और मिठाइयों की पार्टी भी दी।’

एक होटल ले गए। वहां पीने के लिए पानी दिया। पानी शरीर पर गिर गया तो पोंछने के लिए रूमाल दिया। पोंछते-पोंछते बेहोश हो गई। आंखें खुलीं तो शरीर पर कपड़ा नहीं था। अपनी हालत देखकर पूछा तो कहा- आदत डाल लो। कपड़े क्यों नहीं हैं, पूछने पर हेल्पर किरण आंटी हंस देती थी। वो किसी-न-किसी को रात में दूसरे कमरे में ले जातीं थीं। बच्चियों से गलत काम करवाती थीं। आनाकानी पर पीटती थीं। खाना मांगने पर गृह माता गर्म पानी पीठ पर फेंक देती थी।

काउंसलर विकास सर मंगलवार को आते थे, जबरदस्ती करते थे। सीडब्ल्यूसी (दिलीप वर्मा) सर भी आते थे गलत करने के लिए। मीनू आंटी बाल खींचकर मारती थी। डॉक्टर भी कहती थीं, सब ठीक है। इंदु आंटी तो मार-मार कर घाव कर देती थी। पहनने के लिए कपड़े नहीं देती थी। किचन में खाना बनवाती थी। चंदा आंटी लोहे के रॉड से मारती थी। विकास सर भी गलत करते थे। चंदा आंटी बरतन धोने के लिए मारती थी। झाड़ू पोछा कराती थी। सभी कुछ करने के लिए मजबूर भी करते थे।’

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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