TRENDING TAGS :
Yasin Malik Bio: कौन है यासीन मलिक? जानें इस अलगाववादी की पूरी कहानी
Yasin Malik Bio: यासीन मलिक का जन्म 3 अप्रैल 1966 को श्रीनगर के मयसूमा इलाके में हुआ था। मलिक के पिता गुलाम कादिर मलिक एक सरकारी बस चालक थे।
Yasin Malik Bio In Hindi: जम्मू-कश्मीर के चर्चित अलगाववादी नेताओं में शुमार प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का सदर यासीन मलिक (Yasin Malik) को टेरर फंडिंग केस (Terror Funding Case) में अदालत ने उम्रकैद की सजा (Life Sentence) सुना दी है। मलिक कश्मीर के उन गिने चुने अलगाववादी नेताओं में शुमार है, जो किसी समय में इस्लामाबाद (Islamabad) के साथ-साथ नई दिल्ली (New Delhi) के भी बेहद करीब था। भारतीय गणराज्य के खिलाफ हथियार उठाने वाला मलिक एक दिन देश के प्रधानमंत्री आवास में बतौर अतिथि पहुंच जाता है और प्रधानमंत्री उनके साथ मुस्कुराते हुए तस्वीर खिंचवाते हैं। तो आइए एक नजर इस दिलचस्प अलगाववादी नेता (separatist leader) के अब तक के सफर पर डालते हैं।
कौन है यासीन मलिक (Yasin Malik Bio) ?
यासीन मलिक (Yasin Malik) का जन्म 3 अप्रैल 1966 को श्रीनगर के मयसूमा इलाके (Maisuma area of Srinagar) में हुआ था। मलिक के पिता गुलाम कादिर मलिक एक सरकारी बस चालक थे। यासीन ने अपनी पूरी शिक्षा श्रीनगर से ही प्राप्त की है। उसने श्री प्रताप कॉलेज से स्नातक किया है। उसका दावा है कि उसने 80 के दशक में जम्मू कश्मीर में सेना के अत्याचार को देखते हुए हथियार उठाने का फैसला लिया था। वो दावा करता है कि उसने उस समय टैक्सी चालकों पर सेना की हिंसा देखी थी।
'ताला पार्टी' का गठन
बकौल यासीन मलिक उसने इसका जवाब देने के लिए 'ताला पार्टी' नामक एक संगठन बनाया। जिसका काम था घाटी में भारत विरोध (India protest) को हिंसा (violence) के जरिए बढ़ावा देना। इस संगठन ने वहां का माहौल बिगाड़ने के लिए उस दौरान कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया था। 11 फरवरी 1984 को जब आतंकी मकबूल भट्ट (Terrorist Maqbool Bhatt) को फांसी पर चढ़ाया गया। तब उसके वो और उसके संगठन ने इसका काफी विरोध किया था। कश्मीर में प्रदर्शन के दौरान उसे गिरफ्तार कर लिया गया था और वो चार माह तक जेल में रहा। इस समय उसकी उम्र मात्र 17 साल थी।
जेल से निकलने के बाद नए संगठन का गठन
चार महीने बाद जेल से निकलने के बाद यासीन मलिक और अधिक कट्टर और खूंखार हो चुका था। उसने साल 1986 में अपनी पार्टी का नाम बदलकर इस्लामिक स्टूडेंट लीग (ISL) रख लिया। इस संगठन ने उस दौरान कश्मीर में जमकर रक्तपात मचाया। कश्मीरी युवाओं (Kashmiri youth) को धर्म के नाम पर गुमराह कर संगठन में शामिल करवाया। उसे भारत और वहां रह रहे अल्पसंख्यक हिंदू (minority hindu) और सिख समुदाय (Sikh community) के खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया। आईएसएल में आगे चलकर अशफाक मजीद वानी, जावेद मीर और अब्दुल हमीद शेख जैसे आतंकी शामिल हुए, जिन्होंने कश्मीर में कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया।
कश्मीर का विवादास्पद चुनाव
साल 1987 में हुए जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव (Jammu And Kashmir Assembly Elections) को कश्मीर के इतिहास का 'टर्निंग प्वाइंट' माना जाता रहा है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस चुनाव में हुई धांधली ने कश्मीर को हिंसा और अराजकता (violence and anarchy) के अंतहीन दलदल में धंसा दिया। दरअसल, घाटी में लगातार बढ़ती हिंसा को देखते हुए 7 मार्च, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने जम्मू-कश्मीर की गुलाम मोहम्मद शेख सरकार (Ghulam Mohammad Sheikh Sarkar) को बर्खास्त कर दिया। वहीं, राज्यपाल शासन लागू कर दिया।
बाद में कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah of National Conference) के साथ हाथ मिला लिया। इसके बाद 1987 में विधानसभा चुनाव हुए। इसमें घाटी में सक्रिय तमाम अलगाववादी नेताओं ने मिलकर एक गठबंधन बनाया, जिसका नाम मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (MUF) रखा गया। इस गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर मोहम्मद युसुफ शाह भी चुनाव लड़ रहा था, जो श्रीनगर की अमीराकदल सीट से उम्मीदवार था।
युसुफ शाह हार गए
यासीन मलिक इस चुनाव में शाह का पूरा मैनेजमेंट संभालता था। चुनाव प्रचार के दौरान एमयूएफ-कांग्रेस गठबंधन को अच्छी टक्कर देती नजर आ रही थी, लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए तब एमयूएफ बुरी तरह हारी। खुद मोहम्मद युसुफ शाह भी हार गए। इसके बाद कश्मीर में हिंसा का एक नया अध्याय शुरू हो गया। इसी मोहम्मद युसुफ शाह ने आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का गठन किया और बाद में सैयद सलाहुद्दीन के नाम से जाना जाने लगा। यासीन मलिक ने भी उस दौरान सीमा पार कर पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में जाकर आतंकवादी ट्रेनिंग हासिल की।
रूबिया सईद का अपहरण
साल 1987 के चुनाव में हुई धांधली के बाद एमयूएफ के नेताओं ने हथियार उठा लिया। बड़ी संख्या में कश्मीरी युवा सीमा पार कर जाते और ट्रेनिंग हासिल कर वापस जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम देते। पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर लौटा यासीन मलिक ने भी 1988 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी JKLF से जुड़ गया. यासीन मलिक के इशारे पर इस संगठन ने घाटी में जबरदस्त आतंक फैलाया। 8 दिसंबर, 1989 को देश के तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद (Mufti Mohammad Sayeed) की बेटी रूबिया सईद का अपहरण (Rubia Sayeed kidnapped) हो गया था। कहा जाता है कि ये यासीन मलिक के ही इशारे पर हुआ था। क्योंकि इसमें शामिल सभी आतंकवादी जेकेएलएफ (JKLF) से ही जुड़े थे।
यासीन की पाकिस्तानी पत्नी
यासीन मलिक (Yasin Malik) पाकिस्तान से कश्मीर मुद्दे पर समर्थन लेने के लिए लगातार वहां के दौरे करता था। उसे उस तरफ से अच्छा रिस्पांस भी मिलता था। साल 2005 में ऐसे ही एक दौरे के दौरान उसकी मुलाकात मुशाल हुसैन से हुई। मुशाल कराची की एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखती हैं। दोनों के मुलाकात के बारे में बताया जाता है कि एक दिन यासीन मलिक पाकिस्तान में कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को लेकर भाषण दे रहा था, उस दौरान मुशाल हुसैन भी मौजूद थी। भाषण से मुशाल इतनी प्रभावित हुईं की, उन्होंने यासीन से ऑटोग्राफ मांग लिया। बाद में दोनों एक दूसरे के करीब आए और फिर साल 2009 में दोनों का निकाह हुआ।
मशाल (Mushaal Hussein Mullick) उम्र में यासीन से 20 साल छोटी हैं। दोनों की एक बेटी भी है। उसका नाम रजिया सुल्तान है। यासीन मलिक की तरह उसकी पत्नी भी भारत के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर (proxy war) में एक्टिव रहती है। ट्वीटर समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अपने भारत विरोधी बयानों को लेकर चर्चा में रहती हैं।
पाकिस्तान से बातचीत का 'ब्रांड एम्बेसडर'
यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान अलगाववादी नेता यासीन मलिक का कद अचानक काफी बढ़ गया था। तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार (Manmohan Singh government) ने मलिक को पाकिस्तान के साथ बातचीत में भारत का 'ब्रांड एम्बेसडर' (Brand Ambassador) बना दिया था। साल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यासीन मलिक को पीएम आवास में बुलाकर उनसे चर्चा की थी। यासीन मलिक के साथ पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की मुस्कुराने वाली तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं। बीजेपी लगातार कांग्रेस को इसे लेकर घेरते रही हैं। अभी हाल ही में कश्मीर फाइल्स मूवी पर बोलने के दौरान लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इसका जिक्र करते हुए कांग्रेस पर हमला बोला था।