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हृदय रोगियों को दोबारा सामान्य जीवन जीने में मदद कर सकता है योग

Anoop Ojha
Published on: 16 Nov 2018 2:21 PM GMT
हृदय रोगियों को दोबारा सामान्य जीवन जीने में मदद कर सकता है योग
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उमाशंकर मिश्र

नई दिल्ली: योग हृदय रोगियों को दोबारा सामान्य जीवन जीने में मदद कर सकता है। लंबे समय तक किए गए क्लीनिकल ट्रायल के बाद

भारतीय शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस ट्रायल के दौरान हृदय रोगों से ग्रस्त मरीजों में योग आधारित पुनर्वास (योगा-केयर) की

तुलना देखभाल की उन्नत मानक प्रक्रियाओं से की गई है। हृदय रोगों से ग्रस्त मरीजों में योगा-केयर के प्रभाव का आकलन करने के लिए देशभर के 24 स्थानों पर यह अध्ययन किया गया है। लगातार 48 महीनों तक चले इस अध्ययन में अस्पताल में दाखिल अथवा डिस्चार्ज

हो चुके चार हजार हृदय रोगियों को शामिल किया गया है।

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ट्रायल के दौरान तीन महीने तक अस्पतालों और मरीजों के घर पर योगा-केयर से जुड़े प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए गए थे। दस या उससे अधिक योगा-केयर प्रशिक्षण सत्रों में उपस्थित रहने वाले मरीजों के स्वास्थ्य में अन्य मरीजों की अपेक्षा अधिक सुधार देखा गया।

अध्ययन के दौरान मरीजों के अस्पताल में दाखिल होने की दर और मृत्यु दर में कमी को इसके प्रभावों के रूप में देखा जा रहा है।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ दोरईराज प्रभाकरन के अनुसार, “योगा-केयर हृदय रोगियों के रिहेब्लिटेशन का एक सुरक्षित और कम खर्चीला विकल्प हो सकता है। इसमें प्रशिक्षक को छोड़कर किसी तरह के संसाधन की जरूरत भी नहीं

पड़ती।”

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योगा-केयर योग आधारित थेरेपी है, जिसे हृदय रोग विशेषज्ञों और अनुभवी योग प्रशिक्षकों की मदद से हृदय रोगियों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। ध्यान, श्वास अभ्यास, हृदय अनुकूल चुनिंदा योगासन और जीवन शैली से संबंधित सलाह इसमें शामिल हैं। इस

अध्ययन में शामिल नियंत्रित समूहों को सामान्य जीवन शैली अपनाये जाने की सलाह दी गई थी।

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संबंधित शोधपत्र रविवार को शिकागो में आयोजित अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के साइंटिफिक सेशन में पेश किया गया है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक योगा-केयर की मदद से मरीज फिर से उन्हीं गतिविधियों को कर सकते हैं, जो हार्टअटैक से पूर्व करने में वे सक्षम थे। यह अध्ययन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा दिए गए अनुदान पर आधारित है। भारत में हृदय रोगियों की संख्या में वर्ष 1990 में एक करोड़ थी। वर्ष 2016 के आंकड़ों के मुताबिक यह संख्या 2.4 करोड़ हो गई है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन से जुड़े इस अध्ययन से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता प्रोफेसर संजय किनरा के मुताबिक, “हृदय संबंधी रोगों से संबंधित चिकित्सा देखभाल में सुधार के कारण हार्टअटैक के मरीजों को समय रहते उपचार मिल जाए तो ज्यादातर लोग मरने से बच जाते हैं। इसीलिए, अब हार्टअटैक से उबर चुके मरीजों के गुणवत्तापूर्ण जीवन की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

(इंडिया साइंस वायर)

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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