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Zakir Hussain News: महज 37 वर्ष की उम्र में पद्मश्री पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के कलाकार हैं ज़ाकिर हुसैन
Zakir Hussain News: जाकिर हुसैन कुरैशी का जन्म 9 मार्च, 1951 को बॉम्बे, भारत में हुआ था। ये पंजाब घराने से हैं। वे प्रसिद्ध भारतीय तबला वादक उस्ताद अल्लाह रक्खा खान के पुत्र थे।
Zakir Hussain News: सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान जब मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन की संगत मंच पर बैठती तो दर्शक दीर्घा से वाह वाह के सुर के साथ तालियों की गड़गड़ाहट की जोरदार आवाज गूंजना तय होता था। धिरिरिकिटतक, तकिट धा, दिंग, दिंगदीनाघिड़नग, धात्रक-धिकिट, धिनगिन जैसी तानों के साथ जाकिर हुसैन अपनी हुनरबाज उंगलियों के जरिए तबले पर बंदिशें और जुगलबंदी पेश करते तो शास्त्रीय तबला वादन की शानदार प्रस्तुति से पंडाल में समां बांध देते। इनके तबले से निकली पेशकार कायदा रेला गतें टुकड़े परने तिहाईयें सुनने के बाद जब तबले पर ट्रेन की आवाज निकालती तो श्रोता मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रहते थे। आइए जानते हैं विश्वविख्यात
तबलावादक जाकिर हुसैन कुरैशी के जीवन से जुड़े किस्सों के बारे में...
जाकिर हुसैन का आरंभिक जीवन (Zakir Hussain Early life)
जाकिर हुसैन कुरैशी का जन्म 9 मार्च, 1951 को बॉम्बे, भारत में हुआ था। ये पंजाब घराने से हैं। वे प्रसिद्ध भारतीय तबला वादक उस्ताद अल्लाह रक्खा खान के पुत्र थे। परिवार से विरासत में मिली कला की खूबियों के चलते जाकिर हुसैन ने तबला बजाना तभी शुरू कर दिया था जब वे ड्रम तक पहुँच सकते थे। अपने पिता की शार्गिदगी में इन्होंने संगीत की शिक्षा आरंभ की। हुसैन ने सात साल की उम्र से ही संगीत कार्यक्रम में शिरकत करना शुरू कर दिया था और 12 साल की उम्र से देश विदेशों में म्यूजिकल कंसर्ट करना शुरू कर दिया था। हुसैन ने महज तीन साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता से पखावज बजाना सीखा था। इसी के साथ वे प्लैनेट ड्रम नाम के एक रिद्धम बैंड का हिस्सा रहे। इस बैंड में उनके साथी मिकी हार्ट, सिकिरू एडिपोजू, जियोवन्नी हिडाल्गो आदि शामिल थे। साल 1992 में इस ग्रुप को विश्व के श्रेष्ठ म्यूजिक एल्बम का ग्रैमी अवॉर्ड मिल गया था। इस बैंड ने साल 2007 में ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट नाम का एल्बम लेकर ये आए और एक बार फिर से इस बैंड को ग्रैमी अवॉर्ड हासिल हुआ।
हुसैन ने सिनेमा में भी दिया म्यूजिक (Hussain music in cinema)
हुसैन ने सिनेमा में भी म्यूजिक दिया है। उनकी सबसे पहली फिल्म थी हीट एंड डस्ट। जिसका निर्माण स्माइल मर्चेंट ने किया था। इस फिल्म में अभिनेता शशि कपूर भी अहम किरदार में थे। 1993 में आई इन कस्टडी और 2001 में The Mystic Masseur में जाकिर ने म्यूजिक दिया था।
जाकिर हुसैन तबला वादक और संगीत दोनों ही क्षेत्रो के अंतरराष्ट्रिय महारथी रहें हैं।
ज़ाकिर हुसैन का बचपन मुंबई में ही बीता। 12 साल की उम्र से ही ज़ाकिर हुसैन ने संगीत की दुनिया में अपने तबले की आवाज़ को बिखेरना शुरू कर दिया था। 1973 में उनका पहला एलबम लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड आया था। 1979 से लेकर 2007 तक ज़ाकिर हुसैन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में अपने तबले की बारीकियों से लोगों को अचंभित कर देते थे।
जाकिर हुसैन की शिक्षा (Zakir Hussain Education)
जाकिर हुसैन की पढ़ाई और संगीत साधना का सफर साथ साथ चलता रहा। इन्होंने सेंट माइकल्स हाई स्कूल, मुंबई से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। वहीं उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। वे पढ़ाई के साथ-साथ लगातार संगीत साधना करते रहे। पिता उस्ताद अल्ला रक्खा की छत्रछाया में उन्होंने तबले की बारीकियां सीखीं और अपने हुनर को निखारा।
फ्यूजन संगीत को दिया बढ़ावा (Zakir Hussain Promoted fusion music)
तबला वादन में अभूतपूर्व योगदान देने का श्रेय जाकिर हुसैन को जाता है।उन्होंने वेस्टर्न और इंडियन म्यूजिक के संगम को बेहतरीन तरीके के पेश किया। संगीत के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने नई विधाओं को बढ़ावा देने का भी काम किया जिसमें बॉलीवुड, फ्यूजन और इंटरनेशनल म्यूजिक में इन्होंने वेस्टर्न संगीत के साथ फ्यूजन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और पारंपरिक तबले की विधा को ऊंचाइयों तक ले जाने का काम किया। अपने तबला वादन की अनोखी कला से आपने बडी़-बड़ी संगीत की महफिलों में श्रोताओं का मन मोह लिया। सधे हुए हाथों से जब तबले पर थाप मारते थे तो श्रोता भाव विभोर हो जाते थे। दायें और बायें दोनों हाथों के सधे संतुलन से निकलने वाले मधुर बोल ही इनकी तबला वादन की खूबी थी।
इस तरह तय किया ग्लोबल आर्टिस्ट बनने का सफर (Zakir Hussain global artist Journey )
जाकिर हुसैन यूं ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार बन गए, इसके पीछे उनका कठोर परिश्रम और जुनून खास वजह था। इन्होंने अपनी एकेडमिक जर्नी को आगे बढ़ाते हुए अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन से पढ़ाई की। साथ ही यहां लगातार सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े रहे। जिससे वे संगीत और विश्व सांस्कृतिक धरोहर के आदान-प्रदान का एक अहम हिस्सा बन गए। उनका यह दौर उन्हें एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आर्टिस्ट के तौर पर नाम स्थापित करने में मददगार साबित हुआ।
मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन की तबला वादन की विशेषताएं
मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन की तबला वादन की कई विशेषताएं थीं जो इन्हें सबसे अलग उच्च कोटि का कलाकार बनातीं थीं। जाकिर हुसैन ने तबला बजाने की कला को अपने पिता उस्ताद अल्ला रक्खा खां से विरासत में हासिल की थी।
जाकिर हुसैन ने तबले की परंपरागत सीमाओं को तोड़ा और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी लोकप्रिय बनाया।
जाकिर हुसैन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने में अहम योगदान दिया। जाकिर हुसैन ने तबले पर डमरू के नाद की अनुभूति से साक्षात् होने का अनुभव दिया।
जाकिर हुसैन ने ताल वाद्य में पूर्व-पश्चिम के मेल के साथ अंतर्मन अनुभूतियों का अनूठा रूपांतरण किया।
जाकिर हुसैन ने तबले पर थिरकती उनकी उंगुलियों से दृश्यभाषा रची।
जाकिर हुसैन ने तबले पर होले-होले थाप गति पकड़कर औचक थम दिया। जाकिर हुसैन ने तबले पर काल के अंतरालों का विशेष विन्यास किया।
सम्मान और पुरस्कार (Zakir Hussain Honors and Awards)
तबला वादक जाकिर हुसैन को 1988 में जब उन्हें पद्म श्री का पुरस्कार मिला था तब वह महज 37 वर्ष के थे और इस उम्र में यह पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति भी थे। इन्हें 2002 में संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्म भूषण का पुरस्कार दिया गया। 1992 और 2009 में संगीत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवार्ड भी मिला है। 22 मार्च 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।USA में National Endowment for the Arts's National Heritage Fellowship से सम्मानित किया गया है. ट्रेडिशनल आर्ट और म्यूजिक की श्रेणी में अमेरिका द्वारा दिया गया ये सबसे बड़ा सम्मान है।