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Milk Politics: कर्नाटक में ‘दूध’ पर गरमाई राजनीति, जानें क्या है नंदिनी बनाम अमूल का मुद्दा
Milk Politics: कर्नाटक में अमित शाह के एक बयान से बवाल खड़ा हो गया। दरअसल, गुजरात का अमूल देश का सबसे बड़ा मिल्क सहकारी ब्रैंड है। वहीं, नंदिनी कर्नाटक का अपना मिल्क ब्रैंड है। कर्नाटक के विपक्षी दलों का कहना है कि राज्य में अमूल की एंट्री कराकर बीजेपी सरकार लोकल मिल्क ब्रैंड नंदिनी को खत्म करना चाहती है। इस मुद्दे पर राज्य के सभी विपक्षी दल एक साथ हैं।
Milk Politics: दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की मुनादी हो गई है। साल 2023 में यह पहला बड़ा विधानसभा चुनाव है, जहां देश की दो सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने है। इसलिए इस चुनाव को काफी अहम माना जा रहा है। कर्नाटक में यूं तो सत्तारूढ़ बीजेपी और मुख्य विपक्षी कांग्रेस के बीच कई मुद्दों पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चल रही है। लेकिन इन दिनों राज्य में दूध पर राजनीति गरमाई हुई है। कर्नाटक में अमूल मिल्क ब्रैंड की एंट्री ने सियासी भूचाल ला दिया है।
दरअसल, पिछले साल दिसंबर में कर्नाटक के मांड्या जिले में केंद्रीय गृह मंत्री सह सहकारिता मंत्री अमित शाह ने 260 करोड़ की लागत से बने एक डेयरी संयंत्र का उद्घाटन किया था। इसकी क्षमता हर दिन 10 लाख लीटर दूध प्रोसेस करनी की है जिसे बाद में बढ़ाकर 14 लाख लीटर कर दिया जाएगा। इस मौके पर उन्होंने कहा था कि अमूल और नंदिनी मिलकर कर्नाटक के हर गांव में प्राइमरी डेयरी स्थापित करने की दिशा में काम करेंगे।
अमित शाह के इसी बयान से कर्नाटक में बवाल खड़ा हो गया। दरअसल, गुजरात का अमूल देश का सबसे बड़ा मिल्क सहकारी ब्रैंड है। वहीं, नंदिनी कर्नाटक का अपना मिल्क ब्रैंड है। कर्नाटक के विपक्षी दलों का कहना है कि राज्य में अमूल की एंट्री कराकर बीजेपी सरकार लोकल मिल्क ब्रैंड नंदिनी को खत्म करना चाहती है। इस मुद्दे पर राज्य के सभी विपक्षी दल एक साथ हैं।
नंदिनी बना कर्नाटक प्राइड का मुद्दा
आसन्न विधानसभा चुनाव में सत्ता की प्रबल दावेदारी माने जाने वाली कांग्रेस ने इस मुद्दे को राज्य के स्वाभिमान का मुद्दा बना दिया। प्रदेश कांग्रेस चीफ डीके शिवकुमार ने कहा कि नंदिनी अमूल से बेहतर मिल्क ब्रैंड है। नंदिनी हमारी शान है, हमारे लोग नंदिनी से प्यार करते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे अधिकार, हमारी जमीन, हमारी मिट्टी, हमारा पानी और हमारा दूध सुरक्षित रहे। उन्होंने आगे कहा कि हमें गुजरात मॉडल नहीं चाहिए। हमारे पास कर्नाटक मॉडल है। हमें अपने किसानों की रक्षा करने की जरूरत है।
वहीं, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आरोप लगाते हुए कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह नंदिनी ब्रैंड को बंद कराना चाहते हैं। राज्य पर अमूल को थोपा जा रहा है। नंदिनी कर्नाटक के किसानों की जीवन रेखा है। सिद्धारमैया लोगों से अमूल प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करने तक की अपील कर चुके हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर इसका असर भी दिखा। ट्विटर पर #GoBackAmul और #SaveNandini ट्रेंड कर रहा था। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तो यहां तक कह दिया कि बीजेपी कर्नाटक दुग्ध संघ को अमूल के हाथों बेचने की साजिश रच रही है।
बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों को किया खारिज
कांग्रेस पार्टी द्वारा लगाए जा रहे आरोपों को सत्तारूढ़ बीजेपी ने खारिज किया है। राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि अमूल के आने से परेशान होने की जरूरत नहीं है। हम देश में नंदिनी को नंबर वन ब्रांड बनाएंगे। विपक्ष इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहा है।
वहीं, स्वास्थ्य मंत्री के. सुधाकर ने कहा कि कांग्रेस पूरे राज्य में अमूल के दूध और उसके उत्पादों की बिक्री के खिलाफ अभियान चला रही है। क्या अमूल बीजेपी का और नंदिनी कांग्रेस का ब्रांड है ? उन्होंने कहा कि राज्य में पहले से ही नंदिनी के अलावा मिल्क के 18 अन्य ब्रांड चल रहे हैं।
अमूल के बाद नंदिनी है बड़ी मार्केट प्लेयर
देश के तकरीबन हर राज्यों के पास अपना सहकारी मिल्ड ब्रांड है, उदाहरण के तौर पर बिहार में सुधा, एमपी में सांची, तमिलनाडु में आविन, गुजरात में अमूल और कर्नाटक में नंदिनी इत्यादि। इनमें गुजरात का अमूल मिल्क ब्रांड देश की सबसे बड़ी दुग्घ सहकारी संस्था है। जिसके उत्पादों की मौजूदगी देश के तमाम बड़े राज्यों में है।
अमूल के बाद जो देश की दूसरे सबसे बड़ी दुग्घ सहकारी संस्था है, वो है कर्नाटक की नंदिनी। कर्नाटक मिल्क फेडरेशन नंदिनी ब्रांड के नाम से दूध, दही, मक्खन, घी, आइस्क्रीम, चॉकलेट, मैसूर पाक, पेड़ा समेत अन्य दुग्ध उत्पाद बेचती है। नंदिनी का कारोबार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु से लेकर गोवा और महाराष्ट्र तक फैला हुआ है। इस मिल्क फेडरेशन से राज्य के 18 लाख लोग अपनी जीविका के लिए जुड़े हुए हैं।
दूध से पहली दही पर हुआ था विवाद
दक्षिण भारत में दूध से पहले दही को लेकर राजनीतिक बखेड़ा शुरू हो गया था। दरअसल, मार्च में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने दक्षिण भारत में दही बनाने वाली सहकारी समितियों के लिए एक आदेश जारी किया था। जिसके तहत उन्हें दही के पैकेट पर दही ही लिखने को कहा गया था। जबकि इन पैकेटों पर स्थानीय भाषा में दही का नाम लिखा होता है। यहां आपको बता दें कि कन्नड़ भाषा में दही को मोसारू और तमिल में तयैर कहा जाता है। कर्नाटक और तमिलनाडु में बिकने वाले दही के पैकेट्स पर यहीं नाम लिखा होता है।
FSSAI के इस फैसले का दक्षिण भारत में विरोध शुरू हो गया। सबसे तीखा विरोध तमिलनाडु में हुआ। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इसे हिंदी भाषा को थोपने की बेशर्म जिद करार दिया। उन्होंने कहा कि FSSAI ये सब हमें अपनी मातृभाषा से दूर रखने के लिए कर रहा है। इस मुद्दे पर उन्हें तमिलनाडु बीजेपी का भी समर्थन मिला। कर्नाटक और तमिलनाडु में व्यापक विरोध को देखते हुए आखिरकार FSSAI को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।