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PM मोदी ने फिर दिखाई एक तीर से कई निशाने साधने की कला
पीएम नरेंद्र मोदी की निगाहें कहीं होती हैं और निशाना कहीं लगाते हैं। यह बात उनके तीसरे मंत्रिमंडलीय विस्तार में साफ पढी जा सकती है।
योगेश मिश्र
नई दिल्ली : पीएम नरेंद्र मोदी की निगाहें कहीं होती हैं और निशाना कहीं लगाते हैं। यह बात उनके तीसरे मंत्रिमंडलीय विस्तार में साफ पढी जा सकती है। इस बार मोदी ने सिर्फ योग्यता को ही तरजीह नहीं दी है। बड़ी डिग्रीधारक, लेखक और किसी न किसी क्षेत्र मे आगे आ चुके लोगों को मोदी ने अपने इस कैबिनेट के बदलाव में अपनी टीम का सदस्य बनाया है। ताकि अगले चुनाव में इनकी शोहरत और योग्यता का फायदा उठाया जा सके। इसके लिए उन्होंने नौकरशाहों से भी परहेज नहीं किया है।
स्पष्ट संदेश- बीजेपी मंत्रिमडल विस्तार
उन्होंने यह भी संदेश दिया है कि मोदी एक बार फिर अपनी पार्टी के बलबूते अगली बार भी स्पष्ट बहुमत चाहते हैं। यह मैसेज साफ है कि यह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का मंत्रिमंडल विस्तार है। उन्होंने वह सारे समीकरण साधे और बाधे हैं जो उन्हें लोकसभा चुनाव में काम आ सकते हैं।
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साधे संतुलन
यही वजह है कि उत्तर प्रदेश राज्यसभा सदस्य शिवप्रताप शुक्ल को तरजीह मिली है जिनके खिलाफ सीएम योगी आदित्यनाथ खुला और लंबा विरोध कर चुके हैं। सूबे में जब सीएम पर अपनी जाति को तरजीह देने के आरोप चस्पा हो रहे थे तो नाराज हो रहे ब्राह्मण मतदाताओं को थामने का काम उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों में अपने में किया गया है।
शिवप्रताप शुक्ल गोरखपुर की गोरक्ष पीठ के प्रभाव में आने वाली सदर सीट से चार बार विधायक रहे हैं। आठ साल कैबिनेट मंत्री रहे हैं। आपातकाल में जेल में थे। 1977 से छात्र राजनीति में हैं। गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे हैं।
बावजूद इसके योगी ने बीजेपी में रहते हुए उनका विरोध कर अपनी हिंदू महासभा के बैनर पर वहां के एक डाक्टर राधामोहन दास अग्रवाल को चुनाव लड़वाकर जितवा दिया। चुनाव हारने के बाद से ही शिवप्रताप शुक्ल निर्वासित जीवन बिता रहे थे। पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिला, पर मोदी ने उन्हें मंत्री बनाकर यह बता दिया कि पार्टी व्यक्तिगत तुष्टीकरण की कवायद को तैयार नहीं है।
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छात्रनेताओं और जेपी आंदोलन वालों को तरजीह
अगले डेढ़ साल के अंदर छह राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन मोदी ने इन्हें अपने विस्तार में वह तरहजीह नहीं दी है जिसकी अटकलें लगाई जा रही हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश और बिहार को क्योंकि इन्हीं दो राज्यों 120 सीटें आती हैं। स्पष्ट बहुमत की सरकार का समीकरण भी इन्हीं राज्यों से निकलता है। उन्होंने मीसा बंदियों को तरजीह दी, छात्रसंघ की सियासत से निकले लोगों को अहमियत दी है, जयप्रकाश आंदोलन से निकले लोगों को जगह देने में कोई कोताही नहीं बरती है।
बिहार से एक क्षत्रिय और ब्राह्मण का मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना पार्टी अपने मूल आधार को छोड़ने को तैयार नहीं है। इसी के मद्देनजर पीयूष गोयल का भी कद बढाया गया है। धर्मेंद्र प्रधान, पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमन तीनों मंत्री अपने विभाग के कामकाज को मोदी के सपनों को आगे बढाने में सफल रहे हैं। अश्विनी चौबे भी आठ साल बिहार में कैबिनेट मंत्री रहे है, आपातकाल में जेल थे, छात्र राजनीति की उपज और जेपी आंदोलन से जुड़ाव जग जाहिर है।
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मोदी के स्वच्छता अभियान के लिए उन्होंने 11 हजार शौचालय बनवाए थे। पूर्व गृहसचिव राजकुमार सिंह 1975 बैच के बिहार काडर के आईएएस अफसर हैं। उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर का जिलाधिकारी रहते हुए आडवाणी का रथ रोका था। आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग में पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे पर आरोप लगाए थे। इशरत जहां मामले में उन्होंने उसे आतंकी करार दिया था। इस बात पर विरोध भी जताया था कि इशरत जहां को बिहार की बेटी क्यों कहा जा रहा था। गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी पर इसी हथियार से हमले किए थे।
प्रशासनिक अफसरों में हरदीप पुरी, सतपाल सिंह और अल्फोंसे कननथनम का भी नाम। हरदीप पुरी 1974 बैच के आईएएस हैं। इन्होंने भी जेपी आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया था।यह दिल्ली के हिंदू कॉलेज में पढे, सेंट स्टीफन कालेज में पढाया। विदेश मामलों के विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि रहे।
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थिंक टैंक रिसर्च एंड इन्फार्मेशन सिस्टम फार डेवलपिंग कंट्रीज के चेयरमैन भी रहे। 1980 बैच के आईपीएस सतपाल सिंह ने नक्सली मुद्दों पर पीएचडी की है। वैदिक शास्त्र और संस्कृत के विद्वान हैं। जनजातीय संर्घषों और नक्सलवाद पर बेस्ट सेलर किताबें लिख चुके हैं। इनको मंत्री बनाकर मोदी ने अगली बार बागपत की लोकसभा सीट जीतने के समीकरण दुरुस्त किए हैं।
केरल के समीकरण दुरुस्त
1979 बैच के आईएएस अफसर अल्फोंसे कननथनम की एक चर्चित किताब 'मेकिंग ए डिफरेंस' है। 1989 में कोट्टायम का जिलाधिकारी रहते हुए उसे 100 प्रतिशत साक्षर बनाने का काम इन्होंने किया। सरकारी सेवा से सेवानिवृति लेकर निर्दलीय विधायक बने। 2006-2011 तक विधायक रहे। 1994 में जनशक्ति नाम के स्वयंसेवी संगठन का गठन किया। अल्फोंसे अपनी क्रिश्चियन बिरादरी में रोलमाडल माने जाते है। केरल में 18.38 फीसदी क्रिश्चियन हैं, हिंदुओं की तादाद यहां 54.73 फीसदी है। इन्हें मंत्रिमंडल में जगह देकर मोदी ने अगले लोकसभा में केरल में खाता खोलने का जुगाड़ कर लिया है।
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सबको साधने की बाजीगरी
कभी मध्यप्रदेश के टीकमगढ में पंचर जोड़ने का काम करने वाले वीरेंद्र कुमार भी जेपी आंदोलन की उपज हैं। छह बार से सांसद हैं। अर्थशास्त्र से उन्होंने पीएचडी किया है। वे दलित नेताओं में आते हैं। राजस्थान के गजेंद्र सिंह शेखावत प्रगतिशील किसान और टेकसेवी हैं। प्रश्नोत्तर ब्लागिंग साइट कोरा पर उनके सबसे ज्यादा फालोवर हैं। बास्केटबाल के राष्ट्रीय खिलाड़ी रह चुके हैं। अनंत कुमार हेगडे उत्तर कन्नड से पांच बार सांसद है। वह भी एनजीओ कदंबा के संस्थापक हैं। कोरियाई मार्शल आर्ट ताइक्वानडो के सिद्धहस्त खिलाड़ी हैं।