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यूपी के 'मुगले आजम' 10 एफआईआर दर्ज होने के बाद जा सकते हैं जेल
मनोज द्विवेदी
लखनऊ : सपा सरकार में आधे मुख्यमंत्री की हैसियत रखने वाले आजम खां पर योगी सरकार ने एक ही दिन में 10 एफआईआर दर्ज किये हैं। राजनीति के गलियारों में चर्चा है कि सरकार ने आजम की इज्जत एक बिलांग छोटी करने का मन बना लिया है। सभी वाद जौहर विश्वविद्यालय में दलितों की भूमि गलत तरीके से विश्वविद्यालय के नाम कराने के एवज में राजस्व परिषद ने दर्ज किये हैं। जाने पूरी खबर--
एक तीर से दो शिकार
बुधवार को लघु उद्योग भारती, रामपुर के अध्यक्ष आकाश कुमार सक्सेना ने प्रेस वार्ता में बताया कि 9 दलित परिवारों की जमीन को बिना किसी नियम के जौहर विश्वविद्यालय के नाम कर दिया गया। पिछली अखिलेश सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और अधिकारियों द्वारा आजम खां की शह पर गरीबों की जमीन हड़प ली गई। आकाश सक्सेना ने यह शिकायत वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ से की। इस पर तुरंत एक्शन लिया गया और रामपुर जिलाधिकारी के माध्यम से आजम खां पर 6 फरवरी को 10 एफआईआर दर्ज की गई।
आकाश सक्सेना ने कहा कि मायावती दलितों की राजनीति करती हैं लेकिन सब कुछ जानते हुए भी इस मुद्दे पर चुप हैं और अखिलेश यादव ने उस समय की गई शिकायत को अनसुना कर दिया था। इसलिए इस भ्रष्टाचार में पिछली सरकार को भी जवाब देना चाहिए। भाजपा के एक नेता ने मसले पर चुटकी लेते हुए कहा कि लूट का जौहर दिखाने वालों को अब सरकार का जौहर दिख रहा है।
यह है पूरा आरोप
एफआईआर के अनुसार इस मामले में दलितों के अधिकारों का हनन करते हुए बिना जिलाधिकारी की आज्ञा के दलितों और अनुसूचित जाति के लोगों की जमीने जौहर विश्वविद्यालय के नाम दर्ज करवा दी गई। इसके लिए राजस्व अभिलेखों में हेराफेरी की गई। यह जमीन भूमिहीन दलितों को सरकारी पट्टे पर दी गयी थी। जिसकी बिक्री नहीं की जा सकती और न ही इसके विक्रय की अनुमति ली गई। यह हेराफेरी उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 का उल्लंघन है। इन जमीनों को 2007 बिना किसी अनुमति और जानकारी के बैनामा कर दिया गया। सरकार की ओर से रामपुर के वर्तमान जिलाधिकारी की निगरानी में एफआईआर दर्ज कराई गई है।
क्या जा सकते हैं जेल
लोकसभा उपचुनाव की सरगर्मी के बीच आजम खां पर एफआईआर दर्ज होने से चर्चाओं का बाजार गर्म है। कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने कहा की चुनाव के समय एफआईआर दर्ज कराना सरकार की चाल है। वहीं सपा और बसपा के नेता इस मसले पर मुहं खोलने को तैयार नहीं है। जबकि भाजपा नेता इस कार्यवाई को सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के अनुरूप मान रहे हैं।
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