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..तो क्या इस नोटिस के बाद मंत्री-सांसद-विधायक नहीं कर पाएंगे वकालत?
नई दिल्ली: बार काउंसिल ने नए दिशानिर्देश जारी कर यदि कार्रवाई की तो वकालत करने वाले केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल और अन्य नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। देश के दिग्गज वकीलों और विभिन्न राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं की सांसदी भी खतरे में पड़ सकती है या उन्हें वकालत करने से वंचित किया जा सकता है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वकालत करने वाले नेताओं को नोटिस जारी किया है। देश के 500 से ज्यादा सांसदों, विधायकों और पार्षदों को नोटिस का जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय दिया गया है। इसमें जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछा गया है कि क्यों न उन्हें वकालत करने से रोक दिया जाए?
समय-समय पर उठता रहा है मामला
बार काउंसिल ने इस गंभीर मसले पर विचार करने के लिए विशेषज्ञों की कमेटी का गठन किया है। जनप्रतिनिधियों का जवाब आने के बाद इसको लेकर नए सिरे से दिशानिर्देश तय किए जाएंगे। नेताओं के वकालत करने का मामला समय-समय पर उठता रहा है। इसको देखते हुए बार काउंसिल ने इस पर तस्वीर साफ करने के लिए कदम उठाया है।
...तो क्यों न वकालत करने से रोक दिया जाए
बार काउंसिल ऑफ इंडिया की 22 जनवरी को होने वाली बैठक में सांसदों और विधायकों के वकालत करने के मामले पर अंतिम फैसला लिया जाएगा। बार काउंसिल ने नोटिस जारी कर पूछा है, 'आप सभी जनप्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे हैं तो क्यों न आपको वकालत करने से रोक दिया जाए।' ऐसे सभी नेता अपने जवाब, आपत्ति और सुझाव दर्ज करा सकते हैं।
खतरे में पड़ सकती है दिग्गज जनप्रतिनिधियों की वकालत
बार काउंसिल की बैठक में इस पर विचार किया जाएगा। इस मसले पर बार काउंसिल द्वारा गठित समिति के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने स्थिति साफ की है। उन्होंने बताया, कि इन नेताओं को इसलिए नोटिस भेजा गया है, ताकि मान्यता रद्द करने की स्थिति में वे न्यायिक व्यवस्था के उल्लंघन की बात न कह सकें। बार काउंसिल द्वारा ऐसे नेताओं के खिलाफ फैसला लेने कि स्थिति में कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, केटीएस तुलसी, पी. चिदंबरम, भूपेंद्र यादव, मिनाक्षी लेखी, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद जैसे दिग्गज जनप्रतिनिधियों की वकालत खतरे में पड़ सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित है याचिका
गौरतलब है, कि सांसदों के वकालत करने से जुड़ी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर नेताओं के वकालत करने को हितों के टकराव का गंभीर मामला करार दिया है। बार काउंसिल द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति ने भी सांसदों और विधायकों द्वारा वकालत करने को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन माना है।