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गुरु दादा वासवानी का निधन, '7 बातें' जो उन्हें बनाती हैं खास
पुणे : सिंधी समुदाय के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु, दार्शनिक, समाज सेवी साधु जे.पी.वासवानी का गुरुवार को निधन हो गया। वह कुछ समय से बीमार चल रहे थे। वह 99 वर्ष के थे। दादा ने गुरुवार सुबह 9.01 बजे आखिरी सांस ली। उनका पार्थिव शरीर उनके आश्रम साधु वासवानी मिशन में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है।
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1. वासवानी का 2 अगस्त को 100वां जन्म दिन था। इसके लिए बड़ी योजनाएं बन रही थीं, जिसमें दुनिया भर के उनके भक्तों के भाग लेने की उम्मीद थी।
2. वासवानी का जन्म 2 अगस्त 1918 को हैदराबाद में एक सिंधी दंपति के घर हुआ था। वह अपने माता-पिता की सात संतानों में एक थे।
3. साधु वासवानी मिशन का नेतृत्व किया। इसकी स्थापना उनके चाचा व आध्यात्मिक गुरु दिवंगत साधु टी.एल.वासवानी ने हैदराबाद (सिंध, पाकिस्तान) में 1929 में की थी। इसकी शाखाएं अब दुनिया भर में हैं।
4. उनके 1966 में निधन के बाद, साधु जे.पी.वासवानी उनके उत्तराधिकारी बने और उन्होंने गुरु मिशन की विरासत को वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ाया।
5. विश्व शांति, शाकाहार, लड़कियों की शिक्षा, गरीबों के प्रति करुणा के समर्थक होने के साथ साधु वासवानी ने लंदन में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स, ऑक्सफोर्ड में आध्यात्मिक नेताओं के वैश्विक फोरम, शिकागो में विश्व धर्म संसद, संयुक्त राष्ट्र में धार्मिक व आध्यात्मिक नेताओं के मिलेनियम विश्व शांति शिखर सम्मेलन व दक्षिण अफ्रीका में विश्व धर्म की संसद को संबोधित किया था।
6. उन्होंने वैश्विक शांति की पहल, शांति का क्षण, शुरू की जिसमें 2 अगस्त को लोग सभी को क्षमा करने के लिए दो मिनट का मौन रखते हैं। इसमें दलाई लामा जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति भाग लेते रहे हैं।
7. साधु वासवानी को विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए थे, जिमें यू थांट पीस अवॉर्ड 1998, पोप जॉन पाल द्वितीय के साथ संयुक्त रूप से प्राप्त हुआ था।