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...जब 'अंतरात्मा की आवाज' पर बदला था इतिहास, विजेता के 'विक्टरी' साइन से बदला चलन
Vinod Kapoor
लखनऊ: राष्ट्रपति चुनाव के नामांकन के आज अंतिम दिन 28 जून को विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार ने नामांकन का पर्चा दाखिल किया। इस दौरान मीरा कुमार ने देश के सांसदों और विधायकों से अंतरात्मा के आधार पर वोट देने की अपील की।
अंतरात्मा की आवाज ऐसी उठी, कि 1969 में देश के चौथे राष्ट्रपति के चुनाव की याद दिला दी। उल्लेखनीय है कि देश के चौथे राष्ट्रपति का चुनाव ऐतिहासिक था जिसमें केंद्र सहित कई राज्यों में सरकार चला रही कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी को हार का सामना करना पड़ा था। हालत ये हो गई थी कि विपक्ष के प्रत्याशी सीडी देशमुख कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी से ज्यादा वोट पा गए थे। जाकिर हुसैन के निधन के बाद उपराष्ट्रपति वीवी गिरी को राष्ट्रपति का चुनाव होने तक प्रेसिडेंट बनाया गया था।
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कांग्रेस और इंदिरा की अलग-अलग पसंद
देश के चौथे राष्ट्रपति का चुनाव 16 अगस्त 1969 को हुआ था। इसमें कांग्रेस के प्रत्याशी थे नीलम संजीव रेड्डी। जबकि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की पसंद वराह वेंकट गिरी (वीवी गिरी) थे। मजदूर आंदोलन से राजनीति में आए वीवी गिरी उस वक्त उपराष्ट्रपति थे। उनका उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 3 मई 1967 से 20 जुलाई 1969 तक था। वो देश के पहले उपराष्ट्रपति रहे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया ।
...और हार गए नीलम संजीव रेड्डी
निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल करने के बाद उन्होंने देश के सांसदों और विधायकों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट मांगा। सांसदों ओर विधायकों की आत्मा कुछ इस तरह जगी, कि नीलम संजीव रेड्डी को हार का सामना करना पड़ा।
'विक्टरी' निशान ऐसे आया चलन में
कांग्रेस में भले ही उस वक्त मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और कामराज जैसे कद्दावर नेता थे लेकिन सांसदों, विधायकों पर इंदिरा गांधी की खास पकड़ थी। वीवी गिरी को इंदिरा गांधी और उनके समर्थक सांसदों, विधायकों का पूरा समर्थन प्राप्त था। वीवी गिरी जब जीते तो उन्होंने दो उगंलियों से 'विक्टरी' साइन दिखाया। जीत का विक्टरी साइन उसी वक्त से पॉपुलर हो गया। राष्ट्रपति पद पर जीत के लिए उस वक्त 4 लाख 18 हजार 169 वोट की जरूरत थी। वीवी गिरी को 4 लाख 20 हजार 77 वोट मिले थे।
अब 'बिहार की बेटी' कर रही अंतरात्मा की बात
लेकिन इस बार अंतरात्मा के आधार पर वोट देने या लेने का मामला अलग है। तब कांग्रेस के सांसदों से अंतरात्मा के आधार पर वोट देने को कहा गया था लेकिन 'बिहार की बेटी' बन इस बार मैदान में उतरीं मीरा कुमार बीजेपी समेत उनके समर्थक दलों से उस आधार पर वोट मांग रही हैं। ये और बात है कि उन्हें बिहार की बेटी कहा जा रहा है लेकिन बिहार की राजनीति से उनका कोई खास लेना-देना नहीं रहा।
ऐसा रहा मीरा का राजनीतिक करियर
मीरा कुमार ने लोकसभा का पहला चुनाव यूपी के बिजनौर सीट से जीता। उन्होंने मायावती एवं रामविलास पासवान जैसे दिग्गजों को शिकस्त दी। बाद में तीन बार वो दिल्ली से सांसद रहीं। अपने पिता की परम्परागत सीट बिहार के सासाराम से वो दो बार जीतीं और लोेकसभा की अध्यक्ष बनीं।
मीरा ने कभी नहीं जिया दलित का जीवन
इस बार ये लड़ाई दलित बनाम दलित की नहीं है। मीरा कुमार ने कभी भी दलित की जिंदगी नहीं जीं और न किसी तरह का अभाव देखा। देहरादून के महंगे स्कूल में शिक्षा लेने के बाद वो दिल्ली के मिरांडा कॉलेज की छात्र रहीं। भारतीय विदेश सेवा में नौकरी के दौरान उनकी पोस्टिंग विदेश में रही। नौकरी छोड़ने के बाद वो राजनीति में आईं। अभी अंतरात्मा के आधार पर वोट की अपील इसलिए कर रही हैं कि वो जानती हैं कि जीतने लायक वोट उनके पास नहीं हैं।
क्या कोई नया गुल खिलायेगी
सवाल बड़ा ये है कि अंतरात्मा के आधार पर वोट की अपील क्या कोई नया गुल खिलायेगी। राजनीतिक परिपेक्ष्य में तो ऐसा नहीं लगता। कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष जानता है कि मीरा कुमार की हार तय है लेकिन 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उसे एक होने का मौका मिल गया है। ये बात अलग है कि 2019 तक ये एकता कायम रहती है या नहीं।