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जानें कौन हैं ये चार जज जिन्होंने पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मचाई खलबली

aman
By aman
Published on: 12 Jan 2018 9:29 AM GMT
जानें कौन हैं ये चार जज जिन्होंने पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मचाई खलबली
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जानें कौन हैं ये चार जज जिन्होंने पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मचाई खलबली

लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने शुक्रवार (12 जनवरी) को न्यायपालिका की खामियों को लेकर मीडिया के सामने आए, तो सरकार में हड़कंप मच गया। जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुंरत बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया। विपक्षी दलों ने इसे जहां लोकतंत्र के लिए खतरा बताया वहीं, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा, कि 'ये बहुत ही गंभीर मामला है।' उन्होंने कहा, कि 'जजों ने बहुत बलिदान दिए हैं और उनकी नीयत पर सवाल नहीं उठाए जा सकते।' स्वामी ने पीएम नरेंद्र मोदी से इस मामले में दखल देने की मांग की है।

वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम ने इस पूरे मामले पर कहा, कि 'ये न्यायपालिका के लिए काला दिन है। आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद हर कोई न्यायपालिका के फैसले को शक की निगाहों से देखेगा। उन्होंने कहा, कि 'अब से हर फैसले पर सवाल उठने शुरू हो जाएंगे।'

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चीफ जस्टिस पर देश को फैसला करना चाहिए

कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा, कि 'जजों ने जो सवाल उठाए हैं उस पर विचार किया जाना चाहिए। आम आदमी पार्टी (आप) के नेता रहे वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी इसे दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण कहा। उनका कहना था कि बेंच बनाने में सीनियर को जगह दी जानी चाहिए न कि किसी जूनियर को।' जजों ने बताया था कि चार महीने पहले हम सभी ने चीफ जस्टिस को एक पत्र लिखा था। जो कि प्रशासन के बारे में था, हमने कुछ मुद्दे उठाए थे लेकिन उनको अनसुना किया गया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जजों ने कहा, कि 'चीफ जस्टिस पर देश को फैसला करना चाहिए, हम बस देश का कर्ज अदा कर रहे हैं।'

'सुप्रीम कोर्ट की छवि पर सवाल'

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी ने कहा, कि 'कई परिस्थितियों की वजह से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जजों को यह कदम उठाना पड़ा। तुलसी ने कहा कि जब जज मीडिया के सामने अपनी बातें रख रहे थे उनके चेहरे पर दर्द साफ दिख रहा था। हम उनकी मांगों को अनसुना किए जाने की बातों का समर्थन नहीं करते, लेकिन यह भी सच है कि इस तरह के मामले सुप्रीम कोर्ट की छवि पर सवाल खड़े करते हैं। '

सोढ़ी: जजों ने की बचकानी हरकत

पूर्व रिटायर्ड जज आर.एस.सोढ़ी ने जजों के इस कदम पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इन वरिष्ठ जजों ने बचकानी हरकत की है। 23 जजों में से सिर्फ 4 जज इक्ट्ठे हुए और उन्होंने चीफ जस्टिस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। मेरा मानना है कि चारों जजों को इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए। उन्हें यह नहीं कहना चाहिए कि लोकतंत्र खतरे में है जबकि हमारे देश में संसद उसके लिए मौजूद है।

अब मन में एक सवाल आना स्वाभाविक है कि आखिर कौन हैं ये चारों जज। इन जजों के बारे में एक संक्षिप्त परिचत हम दे रहे हैं।

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जस्ती चेलमेश्वर

आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में जन्मे जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर केरल और गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। उन्हें वकालत विरासत में मिली। भौतिकी विज्ञान में स्नातक करने के बाद उन्होंने 1976 में आंध्र युनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल की। अक्टूबर, 2011 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे। जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर और रोहिंगटन फली नरीमन की 2 सदस्यीय बेंच ने उस विवादित कानून को खारिज किया, जिसमें पुलिस के पास किसी के खिलाफ आपत्तिजनक मेल करने या इलेक्ट्रॉनिक मैसेज करने के आरोप में गिरफ्तार करने का अधिकार था। उन्होंने इस नियम पर लंबी बहस की बात कही थी। उनके इस फैसले की देशभर में जमकर तारीफ हुई और बोलने की आजादी को कायम रखा। साथ ही, चेलमेश्वर ने जजों की नियुक्ति को लेकर नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइन्ट्मन्ट्स कमीशन का समर्थन किया। साथ ही वह पहले से चली आ रही कोलेजियम व्यवस्था की आलोचना कर चुके हैं।

जस्टिस कुरियन जोसेफ

जस्टिस कुरियन जोसेफ ने 1979 में वकालत से करियर की शुरुआत की थी। साल 2000 में वो केरल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चुने गए। इसके बाद फरवरी, 2010 में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। 8 मार्च, 2013 को वह सुप्रीम कोर्ट में जज बने।

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जस्टिस रंजन गोगोई

जस्टिस रंजन गोगोई असम रहने वाले हैं। वो सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जजों में शामिल हैं। वरिष्ठता के आधार पर अक्टूबर, 2018 में वह देश की सबसे बड़ी अदालत में जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में हैं। अगर ऐसा हुआ तो वह भारत के पूर्वोत्तर राज्य से इस शीर्ष पद पर काबिज होने वाले पहले जस्टिस होंगे। रंजन गोगोई ने गुवाहाटी हाईकोर्ट से करियर की शुरुआत की थी। वह फरवरी, 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। अप्रैल, 2012 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने। उनके पिता केशब चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री थे ।

जस्टिस मदन भीमराव लोकुर

जस्टिस मदन भीमराव लोकुर की स्कूली शिक्षा-दीक्षा नई दिल्ली में हुई। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में स्नातक की डिग्री हासिल की। बाद में उन्होंने दिल्ली से ही कानून की डिग्री हासिल की। साल 1977 में उन्होंने अपने वकालत से करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत की। 2010 में वो फरवरी से मई तक दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी रहे। अगले महीने जून में वह गुवाहाटी हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश पद पर चुन लिए गए। इसके बाद वह आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के भी मुख्य न्यायाधीश रहे।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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