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जानिए क्यों : PNB घोटाले के बाद 'लाला लाजपत राय' की आत्मा रो पड़ी

Rishi
Published on: 17 Feb 2018 5:02 PM IST
जानिए क्यों : PNB घोटाले के बाद लाला लाजपत राय की आत्मा रो पड़ी
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मुंबई : आज भले ही देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक पंजाब नेशनल बैंक हो, भले ही उसपर हजारों करोड़ के घोटाले का दाग हो। लेकिन इसके साथ हमारी सुनहरी यादें जुडी हैं। जो इसे बाकी के सभी बैंक से खास बना देती हैं। आप भी जानिए आखिर क्यों इतना खास है ये बैंक...

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पीएनबी देश का पहला ऐसा बैंक जिसका आरंभ भारतीय पूंजी के साथ हुआ

लाला लाजपत राय का नाम याद है न आपको! जी हां... वही जिन्होंने हमारी आजादी के लिए अंग्रेज़ों की लाठी खाई और शहीद हुए। उनका बड़ा ही गाढ़ा रिश्ता रहा है इस बैंक के साथ। उनके कई सपनों में से एक सपना था कि भारतीयों का अपना एक बैंक, जहां पैसा देश में ही रहे गोरों के हाथ न लगे। इसके लिए उन्होंने राय मूल राय के साथ मिलकर एक योजना बनाई और अपने खास दोस्तों के साथ उसे साझा किया। सभी को ये विचार पसंद आया और एक शुद्ध देशी बैंक के गठन के लिए कार्यवाही आरंभ की गई। काफी मशक्कत के बाद इंडियन कंपनी एक्ट अधिनियम 6 (1882) के अंतर्गत 19 मई, 1894 को बैंक बना। बैंक का प्रॉस्पेक्टस अंग्रेज़ी के साथ ही उर्दू में छापा गया।

बैंक के संस्थापक सदस्यों और निदेशक मंडल में दयाल प्रभु दयाल, जयशी राम बक्शी, लाला डोलन दास, मजीठिया, लाला हरकिशन लाल, काली प्रसन्न रॉय, ईसी जेस्सावाला शामिल हुए।

पहली मीटिंग

23 मई, 1894 को दयाल मजीठिया के लाहौर स्थित घर में बैंक की पहली बोर्ड मीटिंग संपन्न हुई। तय हुआ कि बैंक का मुख्यालय लाहौर में होगा। मीटिंग में यह भी तय हुआ कि 14 शेयर होल्डर और 7 निदेशक बैंक के कम से कम शेयर खरीदेंगे। आम लोगों के पास अधिक शेयर रहेंगे, ताकि उनका नियंत्रण बैंक पर रहे।

अनारकली से भी रिश्ता

लाहौर के प्रसिद्ध अनारकली मार्केट में पोस्ट ऑफिस के सामने किराए पर एक घर लिया गया। जिसे मुख्यालय बनाया गया। इसके साथ ही अधिकारिक तौर पर पीएनबी का सफर आरंभ हुआ। 12 अप्रैल, 1895 को बैंक आम आदमी के लिए खोल दिया गया। सदी बदली और वर्ष 1900 आ गया। पीएनबी की ब्रांच कराची और पेशावर में भी आरंभ हो गई। बैंक दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था। 1940 में देहरादून के भगवान दास बैंक का विलय पीएनबी में हुआ। उस समय के अख़बारों ने इसे सुर्ख़ियां बना दिया।

1947 में बैंक लाहौर से दिल्ली आ गया

हिन्दुस्तान का बटवारा हो चुका था। लाहौर पाकिस्तान के हिस्से में था। इसके बाद 31 मार्च, 1947 को लाहौर हाईकोर्ट ने पीएनबी को अनुमति दी की वो अपना मुख्यालय लाहौर से दिल्ली ले जा सकता है। इसके बाद पीएनबी दिल्ली आ गया।

उस जमाने में देश के सभी बड़े नेताओं के खाते थे पीएनबी में

महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री सभी इसके ग्राहक रहे हैं।

जलियांवाला बाग से भी रहा है नाता

13, अप्रैल 1919 में बाग में नरसंहार हुआ। गोरों की सरकार ने जांच के लिए हंटर कमेटी का गठन किया। कांग्रेस ने भी इस नरसंहार की जांच के लिए एक कमेटी बनाई। इस कमेटी का खाता पीएनबी में था।

इंदिरा ने बदल दिया पीएनबी को

इंदिरा गांधी पीएम बनते ही ‘ बैंकिंग कंपनीज़ ऑर्डिनेंस’ ले आईं। 19 जून, 1969 की आधी रात को देश के 14 बड़े बैंक सरकारी हो गए। इस लिस्ट में पीएनबी भी शामिल था।

वर्तमान में पीएनबी की स्थति

-70 हजार से अधिक कर्मचारी

-देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक

-10 करोड़ से ज्यादा कस्टमर

-4.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज जरूरतमंद ले चुके हैं

-764 शहरों में करीब 7 हजार ब्रांच

-हांगकांग काबुल में भी ब्रांच

Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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