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रंगों का रिश्ता पूरी दुनिया से, अलग-अलग रूपों में मनता है पर्व
योगेश मिश्र
होली पर्व का रिश्ता भले ही केवल भारत से हो पर रंगों का रिश्ता तो दुनिया भर से है। यही वजह है कि थोड़े बहुत बदलाव के साथ रंगों का यह पर्व दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। हर देश में उल्लास का जज्बा एक ही सरीखा होता है।
न्यूजीलैंड में पेंटिंग के बाद धमाल
न्यूजीलैंड में यह रंगीला त्योहार इस तरह मनाया जाता है कि मोहल्ले के पार्कों में बच्चे, बूढ़े और जवान एकत्र होते हैं। अपने शरीर या किसी दूसरे के शरीर पर पेंटिंग करते हैं। पेंटिंग के दौरान खूब मस्ती के साथ ही जमकर धमाचौकड़ी मचाते हैं। धमाल करते हैं। इस पर्व पर बॉडी आर्ट के लिए लोगों को इनाम भी दिया जाता है। इसलिए अच्छी और अलग पेंटिंग की खूब कवायद होती है। दिनभर चले हुड़दंग के बाद रात को नाच-गाना शुरू होता है। यह छह दिन तक चलता है।
पेरू में ड्रम की थाप पर नृत्य
पेरू में यह इनकॉन के नाम से मनाया जाता है। यह त्योहार वहां पांच दिन चलता है। लोग इन दिनों में पूरे शहर में टोलियों में घूमते हैं। ड्रम की थाप पर नृत्य करते हैं। हर टोली की एक थीम होती है। इसके बाद रात को कुजको महल के सामने एकत्र होकर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।
जापान में संगीत-नृत्य का आयोजन
जापान में यह पर्व मार्च और अप्रैल के महीने में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि चेरी के पेड़ में फूल आता है। लोग इन पेड़ों के बगीचे में एकत्र होते है। एक-दूसरे को बधाई देते हैं। विशेष भोजन और संगीत नृत्य का आयोजन होता है। चेरी के पेड़ से झड़ती हुई फूलों की पंखुडिय़ां सबका स्वागत करती हैं।
थाईलैंड में गायन व नृत्य की धूम
थाईलैंड में यह पर्व नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। सभी लोग आसपास के तालाब के पास एकत्र होकर एक-दूसरे पर पानी फेंकते है। एक-दूसरे को पकड कर तालाब में उछालते और डुबकी लगवाते हैं। बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष एक रंग में रंग जाते हैं। गायन और नृत्य की धूम रहती है। सुबह से शुरू होकर देर शाम तक चलने वाले इस पर्व पर लोग एक-दूसरे को बधाइयां भी देते हैं। सांग क्रान नाम का यह पर्व दुनिया का सबसे बड़ा वाटर फाइट माना जाता है।
स्पेन में टमाटर की होली
स्पेन के बुनोल शहर में हर साल अगस्त के अंतिम बुधवार को हर साल लोग टमाटर से एक-दूसरे पर वार करते हैं। इसे टमाटर की होली भी कहा जाता है। इस दौरान टमाटर की इतनी वर्षा होती है कि शहर की सडक़ें लाल हो जाती हैं।
दक्षिण कोरिया में कीचड़ के साथ संगीत
दक्षिण कोरिया में हर साल जुलाई महीने के दौरान दो हफ्ते लोग एक-दूसरे पर कीचड़ फेंकने का उत्सव मनाते हैं। इसे बोरेयोंग कहा जाता है। इस दौरान लोग संगीत और पटाखों का भी आनंद लेते हैं।
नीदरलैंड में म्यूजिक वाली पार्टियां
नीदरलैंड में हर साल 30 अप्रैल को क्वींस डे मनाया जाता है। इस दौरान पूरा देश नारंगी रंग में रंग जाता है। लोग रंग बिरंगे बॉडी पेंट लगाकर शहर में घूमते हैं। पार्टियां आयोजित होती हैं और संगीत का लुत्फ लिया जाता है।
बुंदेलखंड में लठमार दिवारी
भारत में भी होली के विविध रंग हैं। बरसाने की लठमार होली के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा, लेकिन बुंदेलखंड की लठमार दिवारी भी कुछ इसी से मिलता-जुलता पर्व है। हालांकि यह होली के समय नहीं दिवाली के समय मनाया जाता है। दिवारी बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत है। इसके लिए हर गांव में टोलियां बनती हैं, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चे जुड़ते जाते है। वर्ष 2005 में दिल्ली की परेड में भी इस सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन हुआ था। दशहरे के बाद से ही दिवारी नृत्य का अभ्यास गांवों में शुरू हो जाता है। चित्रकूट के आसपास होने वाले इस सांस्कृतिक आयोजन की शुरुआत, जिन दोहों, लोकगीतों और जुगलबंदी के साथ होती हैं। उसमें हैं-
चित्रकूट में रम रहे, रहिमन अवध नरेश,
जापर बिपदा परत है, सो आवत यहि देश।
अथवा
जग में जब-जब जुल्म भय, सह न सकी महिभार,
तब-तब हरिन हैं लियो, मनुज रूप अवतार।
और
दूध पीके आई दिवारी, बैठी बरा की डाल
आवत-आवत बहुत दिन लागे, जातौ न लागे देयार।
इस तरह के तमाम दोहों और लोकगीतों को गाते हुए दिवारी खेल की शुरुआत ढोल-नगाड़ों के बीच होती है। कंधे मटखाते, बल खाते इस खेल के माहिर खिलाड़ी आकर्षक वेशभूषा के साथ मयूर पंख लगाए होते हैं। 18 लोगों की टोली बनती है जो मैदान में उतरती है। वे एक-दूसरे पर लठ बरसाना शुरू कर देते हैं। इस टोली के सभी सदस्य एक स्वर में गायन करते हैं। यह विधा मार्शल आर्ट को भी मात देती है।
बच्चों को दी जाती है मुफ्त शिक्षा
दिवारी 36 विधाओं में खेली जाती है। इसमें एक-दूसरे पर लठ बरसाया जाता है। टहना में दो या चार लोग होते हैं। पायंडंडा के खेल में 12 लोग भाग लेते हैं। नई पीढ़ी के बच्चों को बुंदेलखंड में इस सांस्कृतिक विरासत की मुफ्त शिक्षा दी जाती है। इसमें लाठियों की तड़तडाहट से दिल टूटते नही, जुड़ते है। कहा जाता है कि द्वापर में कंस वध के बाद श्रीकृष्ण द्वारा ग्वाल-बालों के संग मनाई गई होली से इस पर्व का रिश्ता है।
अरिष्टनेमि के संग होली
यही नहीं श्रीकृष्ण ने अपनी पटरानियों के साथ जैन तीर्थंकर अरिष्टनेमि के संग होली खेली थी। सत्रहवीं शताब्दी की पांडुलिपि में इसका प्रमाण मिलता है। श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव और जैन तीर्थंकर अरिष्टनेमि के पिता समुद्र विजय भाई थे। अरिष्टनेमि का विवाह भोजकुल के राजा उग्रसेन की पुत्री राजमती से तय हुआ, लेकिन विवाह के दिन अरिष्टनेमि का मन बदल गया। कथा के मुताबिक श्रीकृष्ण ने अपने पत्नी सत्यभामा को अरिष्टनेमि के संसार त्याग के फैसले को बदलने की जिम्मेदारी दी। इसी के चलते श्रीकृष्ण ने अपनी पटरानियों के साथ अरिष्टनेमि के साथ होली खेली थी। हस्तनिर्मित कागज से बनी अरिष्टनेमि चरित्र पांडुलिपि बड़ौत के शहजाद राय शोध संस्थान में रखी हुई है। इस पांडुलिपि में होली को बहुत सुंदर तरीके से उकेरा गया है।
तीतरो में नहीं मनती होली
सहारनपुर के तीतरो गांव के होली के रंग बेहद अजीब हैं। यहां रंग-गुलाल तो दूर होली के दिन किसी को शुभकामना तक नहीं दी जाती है। इस गांव में एक अति प्राचीन शिव मंदिर है। कहा जाता है कि कई पीढ़ी पहले सपने में भगवान शिव ने कहा था कि गांव में होलिका दहन से उन्हें कष्ट होता है। इस सपने को गांव के लोगों ने गंभीरता से लिया और होली पर्व के त्याग का फैसल ले लिया। तब से कोई भी इस प्रथा को तोडऩे का हिम्मत नहीं जुटा सका।
अमरोहा की टोपियों के क्या कहने
होली का अमरोहा से भी बड़ा अजीब रिश्ता है। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि रेशमी रुमाल कुर्ता जाली का गाना कमाल अमरोही ने अमरोहा के एक मुस्लिम परिवार के हुनर से प्रेरित होकर लिखा था। उस फिल्म में जो रेशमी रुमाल है, उसे अमरोहा के चांदबेग ने बनाया था। उनके वंशज अभी भी इस काम को कर रहे हैं। इसी के साथ होली पर पहनी जाने वाली टोपियां भी चांदबेग के वंशज ही तैयार करते हैं। इन टोपियों की खपत देश-विदेश में है। अकेले होली पर्व के अवसर पर 50 लाख टोपियां बिक जाती हैं। इनका निर्यात होता है। पहले यह टोपियां अजमेर शरीफ के मेले में बेची जाती थीं, लेकिन टोपी बनाने वाले परिवार के लोगों की मानें तो शुभ होली लिखी टोपियां सबसे पहले उन्होंने कानपुर के बाजार में बेची थीं। एक दिन में 5-6 हजार टोपी तैयार होती हैं। एक टोपी तैयार करने में 20 हुनरमंद लोगों को काम मिलता है।