TRENDING TAGS :
धारा 377 पर सरकार ने गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाली, 14 देशों में शादी पर नहीं रोक
नई दिल्ली : समलैंगिगता को अपराध के तहत लाने वाली धारा 377 पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने निर्णय पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया है।
केंद्र ने कहा, कोर्ट ही तय करे कि 377 के तहत सहमति से बालिगों का समलैंगिक संबंध बनाना अपराध है या नहीं।
आपको बता दें, अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हम 377 के वैधता के मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ते हैं, लेकिन अगर सुनवाई का दायरा बढ़ता है, तो सरकार हलफनामा देगी।
ये भी देखें : समलैंगिगता पर आज से सुनवाई करेगी सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ
धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ में शामिल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा इस मामले में सुनवाई कर रहे हैं।
केंद्र ने साफ कहा कि दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए संबंधों से जुड़ी धारा 377 की वैधता के मसले को हम अदालत के विवेक पर छोड़ते हैं।
ये भी देखें : LGBT Community को जल्द मिल सकती है Good News
जबकि कोर्ट ने कहा है कि वह स्वयं को इस बात पर विचार करने तक सीमित रखेगा कि धारा 377 दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए संबंधों को लेकर असंवैधानिक है या नहीं।
2009 में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा था लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया। अब देश में मुताबिक किसी पुरुष, महिला या जानवर के साथ ‘अप्राकृतिक’ सेक्स करने पर आजीवन कारावस, 10 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। यह धारा 377 के अंतर्गत आता है।
देखें खास वीडियो