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ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट, निशाने पर मोदी..झुठला न सकेंगे PM

Rishi
Published on: 19 Jan 2018 7:00 PM IST
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट, निशाने पर मोदी..झुठला न सकेंगे PM
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नई दिल्ली : इंटरनेशनल एजेंसी ह्यूमन राइट वॉच ने मानवाधिकारों पर रिपोर्ट 2018 जारी की है। इस रिपोर्ट में भारत की नरेंद्र मोदी सरकार को अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में नाकाम बताते हुए कड़ी टिप्पणी की गई है। रिपोर्ट का आरंभ ही भारत में वर्ष 2017 में धार्मिक अल्पसंख्यकों, समाज में हाशिए पर चल रहे समुदायों और सरकार की आलोचना करने वालों को बीजेपी समर्थित लोगों और समूह द्वारा बार-बार निशाना बनाया गया और उन्हें धमकी दी गई के साथ की गई है।

क्या कहती है रिपोर्ट

साल 2017 में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों, हाशिए के समुदायों और सरकार के आलोचकों को निशाना बनाते हुए की गई। नियोजित हिंसा एक बढ़ते खतरे के रूप में सामने आई। जिन्हें अक्सर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के समर्थन का दावा करने वाले समूहों द्वारा अंजाम दिया गया। सरकार त्वरित या विश्वसनीय जांच करने में असफल रही। जबकि कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने हिंदू प्रभुत्व और कट्टर-राष्ट्रवाद को सार्वजनिक रूप से बढ़ावा दिया। जिसने हिंसा को और बढ़ाया। असहमति को राष्ट्र विरोधी बताया गया और अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाते हुए कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अकादमिक जगत के लोगों को उनके विचारों के लिए निशाना बनाया गया। विदेशी अंशदान नियमों का इस्तेमाल उन गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को निशाना बनाने के लिए किया गया जो सरकारी कार्यों या नीतियों के आलोचक हैं।

उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर सहित अन्य राज्यों में यातना और गैर-न्यायिक हत्याओं के नए आरोपों के बावजूद सुरक्षा बलों द्वारा पूर्व में किए गए दमन के लिए जवाबदेही तय करने में कोताही बरतना जारी है।

सन 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने मौलिक अधिकारों और महिलाओं के लिए समान अधिकारों को मजबूत किया और सुरक्षा बलों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही तय की। अगस्त में, अदालत ने देश के संविधान के अंतर्गत व्यक्तिगत निजता को "अभिन्न" और मौलिक अधिकार घोषित किया, और इसके साथ-साथ अभिव्यक्ति की आज़ादी, कानून के शासन और "सत्तावादी आचरण से सुरक्षा" के लिए संवैधानिक संरक्षण पर जोर दिया। उसी महीने अदालत ने "तीन तलाक" के चलन को ख़त्म कर दिया जो मुस्लिम पुरुषों को अपनी पत्नियों को एकतरफा और तत्काल तलाक देने का अधिकार देता था। जुलाई में, अदालत ने 1979 से 2012 के बीच मणिपुर में सरकारी बलों द्वारा कथित 87 अवैध हत्याओं की जांच का आदेश दिया।

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हिंसक प्रदर्शन, सुरक्षा बलों के लिए अभयदान

साल 2017 के पहले 10 महीनों में, जम्मू और कश्मीर में 42 आतंकी हमले हुए जिनमें 44 सुरक्षा बल के जवानों सहित 184 लोग मारे गए। कई अन्य लोग भी तब मारे गए या घायल हुए जब सरकारी बलों ने हिंसक विरोधों को रोकने का प्रयास किया।

मई में, सेना ने एक ऐसे अधिकारी की तारीफ की, जिसने जम्मू और कश्मीर के बड़गाम जिले में भीड़ से सुरक्षा कर्मियों और चुनाव कर्मचारियों को सुरक्षित निकालने के लिए एक तमाशबीन को अवैध रूप से "मानव ढाल" के रूप में इस्तेमाल किया।

सुरक्षा बलों के दमन की जवाबदेही तय करने को झटका देते हुए, सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल ने जुलाई में उन पांच सैन्य कर्मियों की उम्रकैद को निलंबित कर दिया जिन्हें 2010 में जम्मू और कश्मीर के मछिल सेक्टर में तीन ग्रामीणों की गैर-न्यायिक हत्या के लिए 2014 में दोषी पाया गया था।

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सरकार जम्मू और कश्मीर एवं भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र के कुछ हिस्सों में लागू सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफ्स्पा) की समीक्षा और निरस्त करने में विफल रही। यह अधिनियम उल्लंघन करने वाले सैनिकों को अभियोजन से प्रभावी प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

रिपोर्ट लिखे जाने तक, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का पालन नहीं किया है, जिसमें उसने कहा है कि सैनिक उल्लंघन के सभी आरोपों की जांच असैन्य प्राधिकार द्वारा कराई जानी चाहिए।

भारत के कई हिस्सों में 2017 में हिंसक प्रविरोध देखा गया। अगस्त में, एक लोकप्रिय आध्यात्मिक गुरु को अपनी दो महिला अनुयायियों के साथ बलात्कार का दोषी पाए जाने के बाद हरियाणा और पंजाब में उनके समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों में कम-से-कम 38 लोग मारे गए। जून में, पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार ने सभी स्कूलों में बंगला भाषा अनिवार्य करने का निर्णय लिया। इस फैसले से सूबे के दार्जिलिंग जिले में पृथक गोरखालैंड राज्य की पुरानी मांग के लिए विरोध प्रदर्शन भड़क उठे। जिसमें आठ लोगों की मौत हो गई। जून में, मध्य प्रदेश में ऋण राहत और बेहतर कीमतों के लिए हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान पांच किसानों की मौत कथित तौर पर पुलिस फायरिंग से हुई।

अप्रैल में, छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में माओवादी हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 26 अर्द्धसैनिक जवान मारे गए।

जून में, मंजूला शेट्टी का मुंबई की एक जेल में निधन हो गया। जिनके साथ छह जेल कर्मचारियों ने कथित रूप से मारपीट की थी और बलात्कार किया था। इस मामले ने हिरासत में होने वाले दुर्व्यवहार की ओर ध्यान आकर्षित किया, लेकिन पुलिस सुधार ठंढे बस्ते में पड़ा हुआ है।

दलित, आदिवासी समूह और धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ बर्ताव

अल्पसंख्यक समुदायों, विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े चरमपंथी हिंदू समूहों की भीड़ के हमले पूरे साल इन अफवाहों के बीच जारी रहे कि उन्होंने बीफ के लिए गायों की खरीद-फ़रोख्त की या इनका क़त्ल किया। हमलावरों के खिलाफ त्वरित कानूनी कार्रवाई करने के बजाय, पुलिस ने अक्सर गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों के तहत पीड़ितों के खिलाफ शिकायत दर्ज की। नवंबर तक, 38 ऐसे हमले हुए और इनमें इस साल 10 लोग मारे गए।

जुलाई में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आखिरकार इस तरह की हिंसा की निंदा किए जाने के बाद भी भाजपा के एक संबद्ध संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने "गौ-तस्करी और लव-जिहाद रोकने" के लिए पांच हज़ार "धार्मिक सेनानियों" की भर्ती की घोषणा की। हिंदू समूहों के मुताबिक कथित लव-जिहाद हिंदू महिलाओं से शादी कर उन्हें इस्लाम धर्म में शामिल करने का मुसलमान पुरुषों का षडयंत्र है।

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अप्रैल और मई में उत्तर प्रदेश में दलितों और उच्च जाति के सदस्यों के बीच जातिगत संघर्ष में दो लोग मारे गए। अप्रैल और जुलाई के बीच जहरीले सीवेज लाइनों में फंस कर 39 लोगों की मौत हो गई। इससे पता चलता है कि कानूनों को लागू करने में विफलता की वजह से "सिर पर मैला ढोने", नीच माने जाने वाली जातियों द्वारा मानव मल का निपटारा जैसी अमानवीय प्रथा जारी है।

नवंबर में, भारत की दो सप्ताह की आधिकारिक यात्रा के बाद, सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता के मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत लियो हेलर ने सरकार को अग्रणी स्वच्छ भारत मिशन सहित जल और स्वच्छता के अपने राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मानवाधिकार का नजरिया शामिल करने की मांग की। अपने प्रारंभिक निष्कर्षों के आधार पर उन्होंने कहा कि खुले में शौच को समाप्त करने के लिए शौचालय निर्माण पर सरकार के जोर से "अनजाने में दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन" नहीं होना चाहिए। जिनमें सिर पर मैला ढोने में लगी विशिष्ट जातियां या जातीय अल्पसंख्यकों और दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों सहित हाशिए पर रहने वाले लोग शामिल हैं।

खनन, बांधों और अन्य बड़ी ढांचागत परियोजनाओं के कारण जनजातीय समुदायों पर विस्थापन का खतरा मडराता रहा।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

भारत में सत्ता प्रतिष्ठानों ने सरकार के आलोचकों के खिलाफ राजद्रोह और आपराधिक मानहानि कानूनों का इस्तेमाल जारी रखा। जून में, मध्य प्रदेश में पुलिस ने एक क्रिकेट मैच में भारत पर पाकिस्तान की जीत का कथित तौर पर जश्न मनाने के लिए 15 मुस्लिमों को देशद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार किया। ऐसा सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों के बावजूद किया गया कि राजद्रोह के आरोप वास्तविक हिंसा या हिंसा के लिए उकसाने पर ही लगाए जाने चाहिए। आम लोगों की नाराजगी के बाद, पुलिस ने राजद्रोह का मामला वापस तो ले लिया लेकिन उन पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मामला दर्ज कर दिया। इसके अलावा, जून में, कर्नाटक विधानसभा ने दो संपादकों को उनके लेखों के लिए दंडित किया जिनसे कथित रूप से उसके दो सदस्यों की मानहानि हुई थी।

मार्च में, महाराष्ट्र सरकार ने एक पत्रकार पर अधिकारियों द्वारा अनुचित रूप से व्यक्तिगत कार्य के लिए अधीनस्थों की सेवाएं लेने सम्बन्धी रिपोर्ट, बगैर इजाजत सैन्य परिसर में फिल्म बनाने और गुप्त कैमरे का इस्तेमाल करने के आरोप में जासूसी और आपराधिक अनधिकार प्रवेश का मामला दर्ज किया।

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कानूनी कार्रवाई, सोशल मीडिया पर कीचड़ उछालने वाले अभियान और धमकियों और यहां तक ​​कि शारीरिक हमलों के खतरे के कारण पत्रकारों को सेल्फ-सेंसर (आत्म- नियंत्रण) के बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ा। सितंबर में, अज्ञात बंदूकधारियों ने बेंगलुरु शहर में प्रकाशक और संपादक गौरी लंकेश की उनके घर के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी। गौरी लंकेश अतिवादी हिंदू राष्ट्रवाद की मुखर आलोचक थीं।

राज्य सरकारों ने या तो हिंसा या सामाजिक अशांति को रोकने या फिर कानून व्यवस्था की जारी समस्या पर कार्रवाई के रूप में सामूहिक तौर पर इंटरनेट बंद करने का सहारा लिया। नवंबर तक, पूरे देश में 60 बार इंटरनेट बंद किया गया जिनमें से 27 बार ऐसा जम्मू और कश्मीर में किया गया। अगस्त में, सरकार ने "सार्वजनिक आपात स्थिति या सार्वजनिक सुरक्षा (विवाद)" की स्थिति में इंटरनेट और दूरसंचार सेवाओं को अस्थायी रूप से बंद करने के लिए नियम जारी किए। हालांकि, नियम यह साफ़ नहीं करते कि सार्वजनिक आपात स्थिति या आशंका से सरकार का आशय क्या है।

नागरिक समाज और संगठन बनाने की स्वतंत्रता

कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों को अन्य परेशानियों के साथ-साथ गैर सरकारी संगठनों के विदेशी धन तक पहुंच का नियमन करनेवाले विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।

अप्रैल में, सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य की वकालत करने वाले देश के सबसे बड़े समूहों में से एक पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) का एफसीआरए लाइसेंस यह आरोप लगते हुए रद्द कर दिया कि इसने सांसदों, मीडिया और सरकार को अपने पक्ष में जनमत तैयार करने के लिए विदेशी धन का इस्तेमाल किया।

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यदि समूह कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन करते हैं तो एफसीआरए वापस लिया जा सकता है। हालांकि सरकार की राजनीतिक मंशा तब स्पष्ट हो गई थी जब सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ़ सोशल कंसर्न (सीपीएससी) ने दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी। जनवरी 2017 में अपने जवाबी हलफनामे में सरकार ने सीपीएससी पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत और विदेशी दूतावासों के साथ सूचना साझा करने के लिए विदेशी धन के उपयोग करने का आरोप में लगाते हुए कहा कि "मानवाधिकारों के प्रति भारत के रिकॉर्ड (प्रतिबद्धता) को नकारात्मक ढंग से दिखाया गया।" नवंबर 2016 में, भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सीपीएससी के एफसीआरए के नवीनीकरण नहीं करने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया और कहा: "प्रथम दृष्टया एफसीआरए लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं करना न तो कानूनी है और न ही निष्पक्ष।"

महिला अधिकार

पूरे साल देश भर में बलात्कार के कई हाई-प्रोफ़ाइल मामलों ने एक बार फिर आपराधिक न्याय प्रणाली की विफलताओं को सामने रखा। बलात्कार और यौन हिंसा उत्तरजीवियों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा कानून में संशोधन करने और नए दिशानिर्देश और नीतियां बनाने के करीब पांच साल बाद भी लड़कियां और महिलाएं ऐसे अपराधों की रिपोर्ट दर्ज कराने में बाधाओं का सामना करती हैं। जिनमें पुलिस थानों, अस्पतालों में अपमान, सुरक्षा की कमी और पीड़िता "सेक्स की आदी है" या नहीं। यह तय करने के लिए चिकित्सकीय पेशेवरों द्वारा किया जाने वाला अपमानजनक टू फिंगर टेस्ट शामिल हैं।

बलात्कार उत्तरजीवी स्वास्थ्य सेवा, उचित कानूनी सहायता और मुआवजे सहित पर्याप्त सहायता सेवाओं से भी महरूम रहते हैं। बलात्कार के बाद गर्भ ठहरने पर जहाँ महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षित गर्भपात तक पहुँच होनी चाहिए। इसके विपरीत कई बलात्कार पीड़ितों को डॉक्टरों के इनकार के बाद 2017 में दिल्ली और चंडीगढ़ सहित कई अदालतों में सुरक्षित गर्भपात के लिए अर्जी डालनी पड़ी।

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जुलाई में महिलाओं अधिकारों को एक झटका तब लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने दंड संहिता की धारा 498ए - दहेज विरोधी कानून के "दुरुपयोग" पर प्रतिबंध लगाने के लिए पर कई दिशा-निर्देश दिए, अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह तब तक गिरफ्तारी नहीं करे जब तक कि शिकायतों को परिवार कल्याण समितियों, ऐसी समितियां जिनमें अदालत ने पुलिस की जगह सिविल सोसायटी के सदस्य शामिल करने की अनुशंसा की है, द्वारा सत्यापित नहीं कर लिया जाता है।

बाल अधिकार

सितंबर में हरियाणा के एक निजी स्कूल में सात वर्षीय लड़के की हत्या ने इस बात को उजागर किया कि कि घरों, स्कूलों और आवासीय सुविधाओं वाले इलाकों में बाल यौन उत्पीड़न खतरनाक हद तक आम है।

सरकारी भ्रष्टाचार और उपेक्षा के घातक परिणामस्वरूप अगस्त में उत्तर प्रदेश के एक सार्वजनिक अस्पताल में 60 से अधिक बच्चों की तब मौत हो गई जब एक निजी आपूर्तिकर्ता ने सरकारी अधिकारियों द्वारा लंबे समय से बकाये का भुगतान करने में असफल रहने पर ऑक्सीजन सप्लाई रोक दी।

संघर्ष और हिंसक विरोध वाले क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा अक्सर बाधित हुई। जुलाई 2016 में जम्मू और कश्मीर में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच शुरू हुआ संघर्ष 2017 में पूरे साल उबलता रहा। जिससे स्कूलों और कॉलेजों को कई बार बंद करना पड़ा। मई 2017 में, हिंसक विरोध के दौरान अनंतनाग जिले के एक सरकारी स्कूल में अर्धसैनिक बलों के हाथों एक छात्र मारा गया।

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पृथक गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर जून में हिंसक विरोध प्रदर्शन और हड़ताल के बाद पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए।

अक्तूबर में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध अवैध है। चाहे वह विवाहित हो अथवा नहीं। अदालत ने यह कहते हुए फैसला सुनाया कि शादीशुदा लड़कियों के मामलों में छूट मनमाना और भेदभावपूर्ण था।

यौन उन्मुखीकरण और लैंगिक पहचान

अगस्त में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निजता को एक मौलिक अधिकार घोषित किया। इस फैसले ने भारत में समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेन्डर (एलजीबीटी) लोगों में आशा जगाई। फैसले में कहा गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377, जो कि समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से बने यौन सम्बन्धों को असल में अपराध बताती है। "गोपनीयता और गरिमा के एक मूलतत्व के रूप में, किसी के यौन उन्मुखीकरण के बिना बाधित पूर्ति पर" प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।"

जुलाई में, एक संसदीय समिति ने अगस्त 2016 में संसद में पेश ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक के मसौदा का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि विधेयक में 2014 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को शामिल करना चाहिए जो ट्रांसजेन्डर व्यक्तियों को अपनी लैंगिक पहचान खुद से निर्धारण करने का अधिकार देता है। समिति ने यह सिफारिश भी की है कि विधेयक ट्रांसजेन्डर व्यक्तियों के विवाह, साझेदारी, तलाक और दत्तक-ग्रहण (गोद लेने) के अधिकार को मान्यता दे।

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सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में दायर की गई उपचारात्मक याचिकाओं की सुनवाई के लिए कोई तारीख निर्धारित नहीं की है, जो कि 2013 के उस फैसले को चुनौती देती हैं। जिसमें 2009 में उच्च न्यायालय द्वारा धारा 377 को ख़त्म करने के फैसले को पलट दिया गया था।

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार

अप्रैल में, भारत ने एक नया मानसिक स्वास्थ्य कानून लागू किया जो कि हर किसी के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाएं प्रदान करता है। आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है। हालांकि, विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूहों का कहना है कि यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है कि कानून ठीक से लागू हो।

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मौत की सजा

2017 में कोई फांसी नहीं हुई लेकिन लगभग 400 कैदी मौत की सजा का इंतज़ार कर रहे हैं। साल 2015 से 2016 के बीच ऐसे लोगों की संख्या लगभग दोगुनी-70 से बढ़कर 136 हो गई जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई। जिन अपराधों के लिए मौत की सज़ा दी गई, उनमें से ज्यादातर अपराध हत्या और यौन हिंसा के बाद की गई हत्या से जुड़े हैं।

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विदेश नीति

मई में, भारत ने संप्रभुता और प्रक्रियात्मक मुद्दों का हवाला देते हुए बीजिंग में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया। यह उपक्रम पूरे एशिया और उससे बाहर के देशों के साथ जुड़ने के लिए बुनियादी ढांचा निर्माण करने का चीन का प्रमुख विकास अभियान है।

चीनी प्रभाव की चिंताओं के बावजूद, भारत ने नेपाल सरकार को देश के दक्षिणी भाग के अल्पसंख्यक समुदायों को समायोजित करनेवाली समावेशी नीतियां अपनाने हेतु राजी करने के लिए हस्तक्षेप किया।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और महासभा में भारत ने देश-विशिष्ट प्रस्तावों पर भाग नहीं लिया, और यहां तक ​​कि नकारात्मक भूमिका निभाई।

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सितंबर में, प्रधान मंत्री मोदी ने बढ़ते मानवीय संकट के बीच बर्मा का दौरा किया। उस समय रोहिंग्या उग्रवादी समूह द्वारा किये गए हमले के बाद बर्मा के सुरक्षा बलों द्वारा शुरू की गई जातीय सफाई में छह लाख से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश भाग चुके थे। भारत ने रखाइन में बुनियादी ढांचे और सामाजिक-आर्थिक विकास परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर सहायता प्रदान करने का वादा किया लेकिन उसने बर्मा सरकार से अपने सुरक्षा बलों के दुर्व्यवहारों को रोकने या रोहिंग्या को प्रभावी रूप से राज्यविहीन बनाने वाले अपने भेदभावपूर्ण नागरिकता कानून में संशोधन करने को नहीं कहा। भारत में, बीजेपी नेताओं ने रोहिंग्या शरणार्थियों को यह कहते हुए वापस भेजने की धमकी दी कि वे अवैध आप्रवासी हैं।

प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय किरदार

मई में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत की व्यापक सामयिक समीक्षा में, कई देशों ने मानवाधिकारों के कई मुद्दे उठाए और भारत को मानवाधिकार सम्मेलनों की पुष्टि करने की अपनी पिछली प्रतिबद्धताओं, जिसमें यातना के खिलाफ कन्वेंशन भी शामिल है, को पूरा करने की याद दिलाई। अमेरिका, नॉर्वे, दक्षिण कोरिया, चेक गणराज्य, स्विट्जरलैंड, कनाडा, जर्मनी और स्वीडन सहित कई देशों ने नागरिक समाज पर प्रतिबंधों पर चिंता जताई और भारत को संगठन बनाने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कहा।

जून में संयुक्त राज्य अमेरिका के मोदी के दौरे के दौरान, भारत-अमरीकी संयुक्त वक्तव्य में व्यापार बढ़ाने और आतंकवाद से मुकाबला करने में सहयोग को दोहराया गया। जिसमें पाकिस्तान से यह सुनिश्चित करने की भी मांग की गई कि उसके भूक्षेत्र का उपयोग अन्य देशों पर आतंकवादी हमले करने के लिए नहीं किया जाए। लेकिन इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबन्दी और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले सहित अन्य मानवाधिकार के मुद्दों पर भारत पर दबाव डालने के लिए रस्मी तौर पर भी इसका उल्लेख नहीं नहीं किया गया।

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जून में चीन और भूटान के बीच विवादित क्षेत्र डॉकलाम पठार तक कच्ची सड़क बनाने के चीनी प्रयास से भारत और चीन के बीच तीन महीने तक सैन्य गतिरोध बना रहा। भारत इस क्षेत्र में प्रभाव बनाने के लिए चीन के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है और उसने चीनी कदम को इस इलाके में अपने नियंत्रण के विस्तार की कोशिश के रूप में देखा। अगस्त में, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले दोनों पक्ष तनाव ख़त्म करने पर सहमत हुए।



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Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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