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दोस्त ईरान ने भारत को बताया 'उत्पीड़क तानाशाह', कहा- मुस्लिम कश्मीरियों का साथ दें
नई दिल्ली: ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खुमैनी ने ट्वीट कर कहा है कि 'मुस्लिम देशों को कश्मीर, बहरीन, यमन आदि के मुस्लिमों को खुले तौर पर समर्थन देना चाहिए और उन 'उत्पीड़कों' और 'तानाशाहों' को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए, जिन्होंने रमजान में लोगों पर हमला किया।'बता दें कि अयातुल्लाह खुमैनी ने ये बातें ईद के मौके पर हजारों लोगों को संबोधित करते हुए कही।
अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के मुताबिक, 'ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खुमैनी ने कहा है कि मुस्लिम जगत को बहरीन, यमन और कश्मीर के लोगों का खुलकर समर्थन करना चाहिए। साथ ही रमजान के दौरान लोगों पर हमला करने वाले उत्पीड़क और तानाशाह को बाहर का रास्ता दिखाएं। बहरीन, यमन और दूसरे मुस्लिम देशों के आसपास के मुद्दों ने इस्लामी निकाय को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है।'
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मुस्लिमों को एक मंच पर लाने की कोशिश
खबर के अनुसार, अयातुल्लाह खुमैनी ने ऐसा कर सऊदी अरब और सुन्नी अरब जगत को 'साझा शत्रु' बताते हुए वैश्विक मुस्लिम समुदाय को एक मंच पर लाने की कोशिश की है। इसके साथ ही खुमैनी ने सोमवार को फिलिस्तीन मुद्दे को इस्लामिक जगत का अहम मुद्दा करार दिया और मुसलमानों से अपील की कि वे हर संभव तरीके से इजरायल से लड़ें। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की मानें तो तेहरान में ईरानियों के एक समूह को संबोधित करते हुए खुमैनी ने यह टिप्पणी की।
भारत से रहे हैं दोस्ताना रिश्ते, फिर...
उल्लेखनीय है, कि भारत और ईरान के बीच पारंपरिक तौर परदोस्ताना रिश्ते रहे हैं। ऐसे में खुमैनी की ओर से कश्मीर का जिक्र करना, इसे मुस्लिम देशों के बीच एक मुद्दा बनाने की कोशिश करना और अप्रत्यक्ष तौर पर भारत को 'उत्पीड़क' कहना यहां की सरकार को बिल्कुल रास नहीं आएगा। इससे पहले भी एक बार खुमैनी ने कश्मीर को अफगानिस्तान और पाकिस्तान के जैसा देश बताया था। भारत ने इस बयान पर सख्त आपत्ति जताते हुए इसका विरोध किया था।
फिलिस्तीन इस्लामिक दुनिया का सर्वोपरि मुद्दा है
खुमैनी यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा, 'इस्लामिक धर्मशास्त्र के अनुसार, जब कोई दुश्मन मुस्लिमों की जमीन पर कब्जा कर लेता है, तो किसी भी संभव रूप में जेहाद हर किसी का कर्तव्य बन जाता है। फिलिस्तीन इस्लामिक दुनिया का सर्वोपरि मुद्दा है, लेकिन कुछ इस्लामिक देश इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, मानो फिलिस्तीन का मामला नजरअंदाज कर दिया गया है तथा भुला दिया गया है।'
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