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ऐसे हुआ था चारे के घोटाले का खुलासा, लालू गए थे जेल, जानें कब क्या हुआ
बिहार में हुए चारा घोटाले की गूंज देश विदेश में सुनाई दी थी। 950 करोड़ से जयादा के इस घोटाले की शुरूआती जांच में ये रकम 100 करोड़ के आसपास थी लेकिन
पटना: बिहार में हुए चारा घोटाले की गूंज देश विदेश में सुनाई दी थी। 950 करोड़ से जयादा के इस घोटाले की शुरूआती जांच में ये रकम 100 करोड़ के आसपास थी लेकिन जैसे जैसे जांच आगे बढ़ी ये रकम बढ़ती गई। दो दशक से भी ज्यादा पहले हुए इस घोटाले के वक्त माना गया कि इससे बड़ा घोटाला तो हो ही नहीं सकता जिसमें पशुओं के चारे के ढुलाई के लिए स्कूटर और मोटरसायकिल के भी नंबर दे दिए गए जिसमें चारा ले जाया गया था।
- इसमें पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे, दवाइयां और पशुपालन से जुड़े उपकरणों को लेकर घोटाले को अंजाम दिया गया।
- इसमें पशुपालन विभाग के सरकारी खजाने से 950 करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े का आरोप है।
- केंद्र सरकार गरीब आदिवासियों को अपनी योजना के तहत गाय, भैंस, मुर्गी और बकरी पालन के लिए आर्थिक मदद मुहैया करा रही थी जिसमें जानवरों के चारे के लिए भी पैसे आते थे।
- लेकिन गरीबों के गुजर-बसर और पशुपालन में मदद के लिए केंद्र सरकार की तरफ से आए पैसे का गबन कर लिया गया।
चारा घोटाले का खुलासा साल 1996 में हुआ, उस वक्त लालू यादव राज्य के सीएम थे। 'चारा घोटाला' मामले में कुल 56 आरोपियों के नाम शामिल हैं, जिनमें राजनेता, अफसर और चारा आपूर्ति करने वाले हैं। चारा घोटाले में लालू यादव पर 6 अलग-अलग मामले लंबित हैं और इनमें से एक में उन्हें 5 साल की सजा हो चुकी है।
इस घोटाले के कारण लालू यादव को मुख्यमंत्री के पद से त्याग पत्र देना पड़ा था, लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी लालू ने अपनी जगह अपनी बीबी राबड़ी देवी को कुर्सी सौंप दी थी। कहा जाता है कि लालू प्रसाद उसवक्त जेल से ही सरकार चलाते थे।
लालू प्रसाद यादव और जेडीयू नेता जगदीश शर्मा को घोटाला मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद लोक सभा से अयोग्य ठहराया गया था। चुनाव आयोग के नए नियमों के अनुसार लालू प्रसाद पर 11 साल तक लोक सभा चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा है। 3 अक्टूबर 2013 को चारा घोटाले से ही जुड़े एक मामले में 37 करोड़ रुपये के गबन को लेकर लालू यादव को दोषी पाते हुए सजा सुनाई गई और उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी किया गया।
लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद किया गया था, हालांकि दिसंबर 2013 में उन्हें कोर्ट से जमानत भी मिल गई थी, जिसके बाद उन्हें रांची की बिरसा मुंडा जेल से रिहा कर दिया गया।
क्या रहा घटनाक्रम-
1996 में उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और ऐसे दस्तावेज जब्त किए जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी की गई है, जिसके बाद चारा घोटाला सामने आया।
उसके बाद 11 मार्च 1996 को पटना हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया।
27 मार्च 1996 को सीबीआई ने चाईंबासा खजाना मामले में प्राथमिकी दर्ज की और 23 जून 1997 को सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया और लालू प्रसाद यादव को आरोपी बनाया।
30 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया। अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रदेव प्रसाद वर्मा भी थे। जगन्नाथ मिश्रा को अग्रिम जमानत मिल गई, लेकिन लालू की अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो गई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया।
5 अप्रैल 2000 को विशेष सीबीआई अदालत में आरोप तय किया और फरवरी, 2002 रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई।
13 अगस्त 2013 को हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू प्रसाद की मांग खारिज की।
30 सितंबर 2013 को बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र और 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया।
3 अक्टूबर 2013 को सीबीआई अदालत ने लालू यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी किया। लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद किया गया था और उन्हें दिसंबर में जमानत मिल गई।
8 मई 2017 को चारा घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की दलील मान ली। कोर्ट ने कहा है कि हर केस में अलग-अलग ट्रायल होगा। अब लालू प्रसाद के खिलाफ आपराधिक साजिश का केस चल रहा है।
इस घोटाले से जुड़े 7 आरोपियों की मौत हो चुकी है जबकि 2 सरकारी गवाह बन चुके हैं। एक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था जबकि एक आरोपी को बरी किया जा चुका है।