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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कैंसर पीड़ित की याचिका पर BSNL का मोबाईल टावर बंद

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (12 अप्रैल) को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कैंसर से पीड़ित एक शख्स की याचिका पर मोबाइल टावर बंद कराने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता हरीश चंद तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि मोबाइल टावर की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से उन्हें कैँसर हुआ है।

sujeetkumar
Published on: 12 April 2017 10:04 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कैंसर पीड़ित की याचिका पर BSNL का मोबाईल टावर बंद
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (12 अप्रैल) को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कैंसर से पीड़ित एक शख्स की याचिका पर मोबाइल टावर बंद कराने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता हरीश चंद तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि मोबाइल टावर की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से उन्हें कैँसर हुआ है।

ग्वालियर के दल बाजार में रहने वाले हरीश चंद तिवारी ने अपने वकील की मदद से सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल एक याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया कि बीएमएनएल ने साल 2002 में पड़ोस में रहने वाले एक युवक की छत अपन टावर लगाया था जो कि अवैध है। टावर से 24 घंटे हानिकारक रेडिएशन निकलता है। जो 14 साल से उन्हें हानिकारक रेडिएशन का शिकार बना रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चंद तिवारी ने याचिका में कहा कि जहां वह काम करते है वहां से पड़ोसी का घर 50 मीटर की दूरी पर ही है। इसकी वजह से वह लंबे समय तक रेडिएशन शिकार हो रहे हैं, जिससे उन्हें हॉजकिन्स लिम्फोमा (कैंसर) हो गया है। जस्टिस गोगोई और नवीन सिन्हा की पीठ ने इस मामले में सात दिनों के अंदर बीएसएनएल को टावर बंद करने आदेश दिया है।

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भारत का यह पहला मामला

भारत में ऐसा पहली बार होगा जब एक व्यक्ति की शिकायत पर हानिकारक रेडिएशन को आधार मानकर किसी मोबाइल टावर बंद किया जाएगा। कोर्ट इस मामले की सुनवाई पिछले साल 18 मार्च से शुरू हुई। कोर्ट ने पक्षकारों से इंसानों और पशुओं पर रेडिएशन के दुष्प्रभावों से जुड़े और भी डॉक्युमेंट्स जमा करने को कहा है।

मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन के खिलाफ काम करने वाले कार्यकर्ताओं का आरोप रहा है कि इनसे गौरैया, कौआ और मधुमक्खियां खत्म हो रही हैं। हालांकि सेल्युलर ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इन आरोपों का जोरदार खंडन किया है। उन्होंने यह तर्क दिया है कि ऐसे भय निराधार हैं क्योंकि किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन ने इसकी पुष्टि नहीं की है।

-दूरसंचार विभाग ने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक निम्न स्तरीय इलेक्ट्रोमैग्नेटिक क्षेत्र में रहने के किसी भी दुष्परिणाम की पुष्टि नहीं हुई।

-2014 में एक संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को मोबाइल फोन टावर और हैंडसेट के विकिरण का इंसानों पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच कराने की अनुशंसा की थी।

क्या कहना है टेलिकॉम डिपार्टमेंट का...

टेलिकॉम डिपार्टमेंट के मुताबिक

-उसने अक्टूबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया था।

-जिसमें उसने कहा था कि देश में करीब 12 लाख से ज्यादा मोबाइल फोन टावर हैं।

-जिसमें करीब 3.30 लाख मोबाइल टावरों को डिपार्टमेंट ने परीक्षण किया है।

-इस हलफनामे के अनुसार, सिर्फ 212 मोबाइल टावरों में रेडिएशन तय सीमा से अधिक पाया गया।

-इन टावरों पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया।

-डिपार्टमेंट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस जुर्माना राशि के रूप में अब तक डिपार्टमेंट ने सेल्युलर ऑपरेटर्स से 10 करोड़ रुपये वसूल चुका है।

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