×

मेधा के अहिंसक आंदोलन ने किया साबित, ऐसे भी हिल सकती है सरकार

Rishi
Published on: 8 Aug 2017 9:12 AM GMT
मेधा के अहिंसक आंदोलन ने किया साबित, ऐसे भी हिल सकती है सरकार
X

भोपाल : अहिंसक आंदोलन की ताकत एक बार फिर मध्यप्रदेश की धरती पर नजर आई, जब प्रदेश सरकार नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर व अन्य 11 लोगों के उपवास से 12वें दिन डर गई और पुलिस बल की मदद से सभी को गुप्त स्थान (अस्पताल) ले जाया गया।

मेधा सहित 12 लोग 12 दिन से अन्न-जल छोड़ चुके थे। उनकी तीबयत काफी बिगड़ चुकी थी, शिवराज सरकार को लगा कि इन्हें कुछ हो गया, तो भारी किरकिरी हो जाएगी। जून माह में किसान आंदोलन के दौरान गोलीकांड से सरकार की किरकिरी हो पहले ही चुकी थी।

मेधा अपने 11 साथियों के साथ 27 जुलाई से अनिश्चितकालीन उपवास पर थीं। उनका यह उपवास धार जिले के चिखिल्दा में चल रहा था। यह वहीं गांव है, जहां एशिया का पहला किसान हुआ था।

मेधा की मांग है कि सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले 192 गांवों के निवासियों का पहले पूर्ण पुनर्वास हो, उसके बाद ही उन्हें विस्थापित किया जाए।

सरकार कहती है, पुनर्वास की व्यवस्था कर दी गई है। लेकिन सच्चाई यह है कि पुनर्वास के लिए जो जगह तय की गई है, वहां पहुंचने का रास्ता ठीक नहीं है। टीन का शेड डालकर कुछ कमरे बनाए गए हैं और कुछ शौचालय भी, लेकिन किसी में दरवाजा नहीं है। कोई सुविधा नहीं है, लोग वहां रहें तो कैसे।

मेधा के उपवास को सरकार ने पहले गंभीरता से नहीं लिया। यही नहीं, नर्मदा घाटी विकास मंत्री लाल सिंह आर्य ने तो मेधा पर गंभीर आरोप तक लगा डाले। मगर दिन गुजरने के साथ सरकार को लगा कि मामला अब बिगड़ सकता है, तो वह आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से खत्म कराने की कोशिशों में जुट गई, क्योंकि जून माह में किसान आंदोलन के दौरान छह किसानों की जान जाने से सरकार की किरकिरी हो चुकी है।

मेधा व अन्य 11 के उपवास के आठ दिन बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस अहिंसक आंदोलन से बेचैन हो उठे और आनन-फानन में उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट कर मेधा के स्वास्थ्य पर चिंता जताई और उपवास खत्म करने का आग्रह किया। उसके बाद राष्ट्र संत भय्यूजी महाराज व इंदौर के संभागायुक्त संजय दुबे व अपर सचिव चंद्रशेखर बोरकर के जरिए मेधा को मनाने की कोशिश हुई, जो नाकाम रही।

एक तरफ सरकार की छवि पर आ रही आंच और दूसरी ओर मेधा व 11 लोगों के बिगड़ते स्वास्थ्य से घबराकर रक्षाबंधन की शाम को आनन-फानन में पुलिस बल का प्रयोग करते हुए उन्हें उपचार के नाम पर एंबुलेंस में बिठाकर ले जाया गया। उन्हें किस अस्पताल में ले जाया गया है, यह बताने को इंदौर के संभागायुक्त संजय दुबे भी तैयार नहीं हैं।

मेधा और उनके साथियों को सोमवार की सुबह से इस बात की आशंका थी कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर सकती है, क्योंकि राजघाट व अन्य स्थानों पर भारी पुलिस बल की तैनाती की गई थी।

पुलिस द्वारा जबरिया उठाए जाने से पहले मेधा ने कहा, "मध्यप्रदेश सरकार 12 दिन से अनशन पर बैठे हुए हमारे 12 साथियों को मात्र गिरफ्तार करके जवाब दे रही हैं। ये कोई अहिंसक आंदोलन का जवाब नहीं है। मोदीजी के राज में, शिवराजजी के राज में संवाद का जवाब नहीं, आकड़ों का खेल, कानून का उल्लंघन और केवल बल प्रयोग, जो आज पुलिस लाकर और कल पानी लाकर करने की उनकी मंशा है।"

उन्होंने कहा, "हम लोग इसे गांधी के सपनों की हत्या मानते हैं, बाबा साहेब के संविधान को भी न मानने वाले आज राज कर रहे हैं।"

मेधा ने आगे कहा, "सत्ता में बैठे लोगों को समाज, गाय, किसानों, मजदूरों, मछुआरों की कोई परवाह नहीं है। यह सरकार के क्रियाकलाप से स्पष्ट हो रहा है। उन्होंने बंदूकों से हत्या की और यहां जल हत्या करने के मंशा है, हम उनकी इस मंशा के बीच में आ रहे हैं, ऐसा वे मानते हैं। वे कहते हैं कि पहले अनशन तोड़ो, फिर बात करो। यह हम कैसे मंजूर कर सकते हैं?"

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव बादल सरोज का कहना है कि चिखल्दा में अनशनकारियों पर रक्षाबंधन के दिन किया गया बर्बर लाठीचार्ज शिवराज सरकार की असभ्य, बर्बर और आपराधिक कार्रवाई है। शिवराज सिंह चौहान ने अनशनकारी बहनों को आज लाठी से राखी बांधकर अपनी वास्तविकता उजागर कर दी है। आंदोलन स्थल पर लगा टेंट पुलिस ने तोड़ दिया है।

उन्होंने आगे कहा कि मेधा और उनके साथी सरकार की कारपोरेट परस्त नीति के खिलाफ उपवास कर रही थी, मगर अलोकतांत्रिक सरकार को यह रास नहीं आया और उसने दमन चक्र का इस्तेमाल किया।

सामाजिक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अहिंसक आंदोलन में बहुत ताकत होती है, महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलनों ने अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ दिया था, मेधा भी गांधी के रास्ते पर चलकर उपवास कर रही थीं, जिससे राज्य की सरकार में डर पैदा हो गया और उसने अहिंसक आंदोलनकारियों पर हिंसा करके जवाब दिया।

राज्य सरकार के लिए जून में हुआ किसान आंदोलन सिरदर्द बना था, तो अब नर्मदा बचाओ आंदोलन को खत्म न करा पाने की बात भी सरकार के खाते में जाएगी और मेधा के उपवास को खत्म कराने के लिए अपनाए गए तरीके पर सरकार के कटघरे में खड़ा होना तय है। यह कार्रवाई तब हुई है, जब मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में नर्मदा बचाओ आंदोलन की याचिका पर सुनवाई प्रस्तावित है।

Rishi

Rishi

आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

Next Story