×

बीजेपी की झोली में फिर बिहार, विपक्षी एकता की टूटी कमर

बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम का सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि इसने विपक्षी एकता की कमर तोड़ दी है।

tiwarishalini
Published on: 27 July 2017 2:43 PM IST
बीजेपी की झोली में फिर बिहार, विपक्षी एकता की टूटी कमर
X
बीजेपी की झोली में फिर बिहार, विपक्षी एकता की टूटी कमर

अंशुमान तिवारी अंशुमान तिवारी

पटना : बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम का सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि इसने विपक्षी एकता की कमर तोड़ दी है। पिछले एक महीने से जारी सियासी उठापटक के बाद नीतीश कुमार के इस्तीफा देने का फैसला 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन की संभावनाओं पर पलीता लगाने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम माना जा रहा है। भाजपा की सबसे बड़ी कामयाबी यह मानी जा रही है कि उसने नीतीश कुमार को अपने पाले में खड़ा करके विपक्षी नेतृत्व का बड़ी साख वाला चेहरा छीन लिया है।

इस घटनाक्रम का असर केवल बिहार की राजनीति पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि इसका गहरा असर पूरे देश की राजनीति पर पडऩे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति चुनाव के समय ही भाजपा के खड़े होकर साफ कर दिया था कि वह किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। नीतीश कुमार के इस कदम से यूपीए की उम्मीदवार मीराकुमार की चुनावी संभावनाओं की किस तरह धूल-धूसरित किया,यह किसी से छिपा नहीं है।

इस पूरे घटनाक्रम की खास बात यह रही कि प्रधानमंत्री मोदी व नीतीश कुमार दोनों ने अपनी पार्टी और विपक्षी खेमे में किसी को इतने बड़े बदलाव का कोई अहसास ही नहीं होने दिया। बिहार के राजनीतिक समीकरण में बदलाव का अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर भी काफी असर पड़ेगा। पार्टी नेताओं का ही मानना है कि अब मोदी के खिलाफ अगले चुनाव में विपक्षी गठजोड़ खड़ा करना आसान नहीं होगा।

यह भी पढ़ें .... सुशील मोदी ने लिखी बिहार में बड़े राजनीतिक बदलाव की पटकथा

सोच-समझकर तय की इस्तीफे की टाइमिंग

इस पूरे घटनाक्रम का उल्लेखनीय पहलू इसकी टाइमिंग भी रहा। पूरे घटनाक्रम की पटकथा बहुत सोच-समझकर लिखी गयी थी। सुबह साढ़े ग्यारह बजे राजद विधायकों की बैठक के बाद दोपहर ढाई बजे राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव ने ऐलान कर दिया कि तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। शाम छह बजे जेडीयू विधायकों की बैठक बुला ली गयी और छह बजकर बत्तीस मिनट पर नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

रात नौ बजे भाजपा ने नीतीश को समर्थन का ऐलान कर दिया और रात दस बजकर पांच मिनट पर नीतीश को एनडीए विधायक दल का नेता चुन लिया गया। इसमें काबिलेगौर पहलू यह था कि गुरुवार को चारा घोटाले के मामले में लालू की रांची की कोर्ट में पेशी थी और लालू को रात नौ बजे रांची के लिए निकलना था।

यह भी पढ़ें .... नीतीश बोले-बिहार के हित में लिया फैसला, समय पर दूंगा विपक्षियों को जवाब

लालू को रात को रांची के लिए रवाना होना पड़ा और उनके पास जोड़तोड़ के लिए वक्त ही नहीं था। इधर लालू रांची के लिए निकले और उधर पटना में बड़ा राजनीतिक खेल हो गया। रांची जाने से पहले लालू सिर्फ इतना ही कर सके कि उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस कर नीतीश कुमार पर बड़ा हमला बोला और कहा कि नीतीश पर हत्या और हत्या के प्रयास का आरोप है और ऐसे में वे क्यों मुख्यमंत्री बने हुए हैं।

उन्होंने नीतीश के चुनावी शपथपत्र का भी उल्लेख किया। वैसे लालू के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि यह मामला तो उनकी नीतीश से दोस्ती से पहले का है तो उन्होंने नीतीश के साथ गठबंधन किया ही क्यों।

कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को करारा झटका

नीतीश कुमार के इस्तीफे का असर 2019 के चुनाव में कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर पडऩा तय माना जा रहा है। कांग्रेस के अंदर भी पार्टी की भूमिका को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। पार्टी के ही कई नेताओं का मानना है कि पार्टी गठबंधन में अपनी भूमिका निभाने में पूरी तरह विफल रही। नीतीश कुमार को अपने पाले में रखने के लिए पार्टी की ओर से कोई गंभीर प्रयास किया ही नहीं गया।

पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि नीतीश कुमार 2019 के महागठबंधन के लिए खास चेहरा थे। कांग्रेस के अंदर यह बात भी उठ रही है कि नीतीश के अलग होने से भविष्य की राजनीति पर यह असर भी पड़ेगा कि ओडीसा में बीजद के कांग्रेस के साथ आने की संभावना काफी कम हो गयी है। नीतीश के अलग होने से यह संदेश गया है कि कांग्रेस अपने सहयोगियों को साथ रखने में पूरी तरह विफल रही है।

यह भी पढ़ें .... राहुल ने कहा- स्वार्थ के लिए नीतीश ने तोड़ा महागठबंधन, 3-4 महीने से चल रही थी प्लानिंग

कांग्रेस को इसका राजनीतिक नुकसान भी पहुंचा है कि लोगों के बीच यह संदेश गया है कि पार्टी साफ छवि वाले नीतीश कुमार का साथ देने के बजाय भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लालू प्रसाद यादव का साथ दिया। इससे भाजपा को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस पर निशाना साधने का एक और मौका मिल गया है और निश्चित रूप से भाजपा इस मौके को हाथ से नहीं निकलने देगी।

नीतीश के इस्तीफे के तुरंत बाद मोदी का ट्वीट और उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष के लिए बधाई देना अनायास नहीं था। यह इस बात का संकेत है कि भाजपा इस मुद्दे को आने वाले दिनों में जरूर भुनाएगी और कांग्रेस पर बड़ा हमला बोलेगी। पार्टी नेताओं का मानना है कि अब मोदी के खिलाफ देश में विपक्षी दलों का गठजोड़ खड़ा करना आसान नहीं होगा।

सरकार बनने के बाद से ही सहज नहीं थे रिश्ते

वैसे लालू के परिवार के खिलाफ भ्रष्ट तरीकों से पैसा कमाने के मामले में कार्रवाई से पहले भी राजद और जदयू के रिश्ते बहुत सहज नहीं थे। बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद से ही कई मुद्दों पर दोनों दलों में गहरे मतभेद थे और नीतीश कुमार को काम करने में काफी दिक्कतें हो रही थीं। अफसरों के तबादले और निगमों-बोर्डों के गठन व नियुक्तियां सहित कई ऐसे मसले थे जिन पर दोनों दलों की राय जुदा-जुदा थी। शराबबंदी का फैसला भी लालू के लोगों को नहीं पच रहा था क्योंकि इस धंधे में उनसे जुड़े काफी लोग सक्रिय हैं।

नीतीश कुमार को इस बात की भी कसक थी कि उन्हें बार-बार यह ताना सुनना पड़ता था कि राजद के पास उनके दल से ज्यादा बड़ी ताकत है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा विधानसभा में राजद के 80 व जदयू के 71 विधायक हैं। राजद के कई बड़े नेता बीच-बीच में नीतीश कुमार पर प्रत्यक्ष रूप से हमला करते रहते थे।

यह भी पढ़ें .... नीतीश कुमार छठी बार बने बिहार के मुख्यमंत्री, केसरी नाथ ने दिलाई शपथ

राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश ने कई बार नीतीश पर हमला बोला मगर कभी लालू ने उन्हें खामोश करने का कोई प्रयास नहीं किया। एक बार तो स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी को यहां तक कहना पड़ा कि अगर राजद इस महागठबंध में सहज महसूस नहीं कर रहा है तो उसे इससे बाहर हो जाना चाहिए।

नीतीश कुमार रोज-रोज की इन दिक्कतों से परेशान थे और इससे मुक्त होने का रास्ता तलाश रहे थे। लालू के परिवार के भ्रष्टाचार के मामलों में फंसने के बाद नीतीश को यह उपयुक्त अवसर लगा और उन्होंने एक तीरे से कई निशान कर लिए क्योंकि अभी उन्हें करीब साढ़े तीन साल बिहार में सरकार चलानी है।

अपनी छवि को लेकर काफी सतर्क हैं नीतीश

लालू व उनके बेटे-बेटियों के पास अकूत संपत्ति का खुलासा होने के बाद नीतीश राजद के सहजता नहीं महसूस कर रहे थे। नीतीश अपने राजनीतिक जीवन में अपनी भ्रष्टाचारमुक्त छवि को लेकर काफी सतर्क रहे हैं और यही कारण है कि लालू परिवार के खिलाफ कार्रवाई शुरू होने के बाद उनकी जदयू से दूरियां बढ़ती ही गयीं।

उन्होंने संकेतों में तेजस्वी को इस्तीफा देने की नसीहत भी दी मगर लालू इस बात पर अड़ गए कि तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे। उन्हें पता था कि तेजस्वी को बर्खास्त करने से भी महागठबंधन टूटेगा ही तो उन्होंने खुद इस्तीफा देकर भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस नीति की नजीर पेश कर उसका राजनीतिक फायदा उठा लिया।

नीतीश के इस कदम से लालू की पहले ही खराब छवि को और धक्का लगा है। यह संदेश गया है कि वे परिवार को गलत संरक्षण देकर भ्रष्ट कामों के बचाव की कोशिश में जुटे हैं।

पूरी तैयारी के बाद नीतीश ने दिया इस्तीफा

मीडिया से बातचीत में भी नीतीश ने ऐसी बातें कहीं जो उनकी छवि को और बेहतर बना सके। वे इसके लिए बकायदा तैयारी करके आए थे। उन्होंने तेजस्वी यादव का नाम लिए बगैर कहा कि हमने किसी का इस्तीफा नहीं मांगा है। मैंने अंतरात्मा की आवाज पर पद छोडऩे का फैसला किया है।

यह कोई संकट नहीं है बल्कि यह अपने आप पैदा किया गया संकट है। हमने इतने दिनों तक इंतजार किया और लगा कि अब काम नहीं हो पाएगा। मेरी इस्तीफे के संबंध में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से भी बात हुई है। हमने नोटबंदी का समर्थन किया तो मुझ पर न जाने क्या-क्या आरोप लगाए जाने लगे। उसी समय मैंने कहा था कि बेनामी संपत्ति के खिलाफ भी कड़े कदम उठाइए।

हमने कभी फायदे के हिसाब से कोई राजनीति नहीं की। हमने वही कदम उठाया जो जनहित में था। शराबबंदी के फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह फैसला लेना आसान नहीं था मगर मैंने अडिग रहते हुए शराबबंदी के फैसले को लागू किया। नीतीश ने कहा कि पिछले एक महीने के दौरान लोगों के बीच सरकार के काम को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही थी। ऐसे माहौल में काम करने का कोई मतलब नहीं है।

यह भी पढ़ें .... लालू यादव ने कहा- तेजस्वी तो बहाना था, नीतीश को बीजेपी की गोद में जाना था

नीतीश ने कहा कि मुझसे इन दिनों एक ही सवाल पूछा जाता था कि उपमुख्यमंत्री पर क्या फैसला होने जा रहा है। मैंने जिस तरह की राजनीति की है उसमें यही एक रास्ता बचा था कि मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दूं। मेरा राजनीतिक चरित्र इस तरह का नहीं है कि मैं ऐसे माहौल में काम कर सकूं। इस्तीफा देने के बाद नीतीश दार्शनिक अंदाज में दिखे। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कहा कि बापू ने कहा था कि जरुरत सबकी पूरी होती मगर लालच पूरी नहीं होती।

उन्होंने भ्रष्टाचार से पैसा कमाने वालों पर अप्रत्यक्ष हमला करते हुए कहा कि कफन में कोई जेब नहीं होती। आदमी खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है। मीडिया से बातचीत में नीतीश ने कहा कि ऐसे घुटन भरे माहौल में मेरे लिए काम करना व सरकार का नेतृत्व करना संभव नहीं। हमने कभी किसी का इस्तेमाल नहीं किया। हमने तो यही कहा था कि जो भी आरोप लगे हैं उन्हें स्पष्ट कीजिए।

अब यूपी के गठजोड़ पर टिकी सबकी नजर

बिहार के घटनाक्रम को यूपी के भावी चुनावी गठजोड़ से जोडक़र भी देखना दिलचस्प होगा। अब राजनीतिक पंडितों की नजर राजनीतिक नजरिये से सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले उत्तर प्रदेश पर टिकी है। यूपी में भी विपक्षी दलों में एका न होने का फायदा उठाकर भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी सियासी जीत हासिल की है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार बाद से सपा,बसपा और कांग्रेस में गठजोड़ की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।

बसपा सुप्रीमो मायावती के राज्यसभा से इस्तीफे के बाद उनके विपक्ष के साझा उम्मीदवार के रूप में लोकसभा उपचुनाव में उतरने की चर्चाएं हैं। मायावती व अखिलेश यादव कहां तक एक-दूसरे को स्वीकार कर पाएंगे,यह देखने वाली बात होगी। सबसे बड़ा पेंच तो गठजोड़ के नेता को लेकर है जिसका हल निकालना आसान नहीं।

पिछले चुनाव में कांग्रेस ने सपा से हाथ जरूर मिलाया मगर गठबंधन में बसपा के शामिल न होने से इसका ज्यादा फायदा नहीं मिला। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या तीनों दल एक मंच पर आ पाएंगे या भाजपा तीनों को एक-दूसरे से दूर छिटकाकर सियासी फायदा लेने में कामयाब होती रहेगी।

यह भी पढ़ें .... बिहार भूचाल पर मायावती बोलीं- मोदी सरकार में लोकतंत्र का भविष्य खतरे में

tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

Next Story