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Breaking: 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' की बरसी पर स्वर्ण मंदिर परिसर में झड़प, चली लाठियां

Manoj Dwivedi
Published on: 6 Jun 2018 11:48 AM IST
Breaking: ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर स्वर्ण मंदिर परिसर में झड़प, चली लाठियां
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अमृतसर: 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' की 34वीं बरसी के मौके पर एक कार्यक्रम के दौरान स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर बुधवार को झड़प का माहौल देखने को मिला। परिसर में लोग तलवार लहराते और लाठियां भांजते नजर आए।

मंदिर से 100 फीट दूर झड़प

यह संघर्ष कट्टरपंथी सिख तत्वों (खालिस्तान समर्थक) और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के बीच अकाल तख्त के सामने हुआ। यह घटना स्वर्ण मंदिर परिसर स्थित धार्मिक स्थल 'हरमंदिर साहिब' से महज 100 फीट की दूरी पर हुआ। एसपीजीसी ने कट्टरपंथी तत्वों को कार्यक्रम में व्यवधान डालने से रोकने की कोशिश की, इस दौरान एक शख्स घायल हो गया।

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लगे अलगाववादी नारे

वीडियो फुटेज में देखा जा सकता है कि टास्क फोर्स के सदस्य अलगाववादी नारे लगा रहे कट्टरपंथी तत्वों पर हमला कर रहे हैं। ये कट्टरपंथी तत्व खालिस्तान के समर्थन में और भारत विरोधी नारे लगा रहे थे। परिसर में सादे कपड़ों में मौजूद पुलिसकर्मियों ने हालात बेकाबू होने से पहले इसे नियंत्रित करने की कोशिश की।

शांतिपूर्ण था कार्यक्रम

एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, "संघर्ष के दौरान एक पगड़ी जमीन पर फेंक दी गई।" अकाल तख्त के जत्थेदार (प्रमुख) गुरबचन सिंह ने कहा कि जून 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सेना की कार्रवाई में मारे गए सैकड़ों लोगों के बलिदान की याद में शांतिपूर्ण तरीके से कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

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चुकानी पडी थी कीमत

6 जून 1984 को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार की देश को बडी कीमत चुकानी पड़ी। इसी कारण इंदिरा गांधी की हत्या उनकी सुरक्षा में लगे सिख सुरक्षाकर्मियों ने की थी। आपेशन ब्लू स्टार के वक्त इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। पूर्व सेना प्रमुख जनरल अरुण श्रीधर वैद्य की रिटायरमेंट के 6 महीने बाद ही 10 अगस्त 1986 को पुणे में सिख अलगाववादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

इस वजह से गुस्सा थीं इंदिरा

जनवरी 1980 में कांग्रेस को मिली जीत के बाद इंदिरा गांधी तीसरी बार पीएम बनी थीं जबकि देश का सबसे समृद्ध राज्य पंजाब सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस रहा था। 5 अक्टूबर 1983 को हथियारबंद लोगों ने एक बस को अगवा कर लिया और उसमें सवार सभी हिंदुओं की हत्या कर दी। इंदिरा गांधी इस घटना से आगबबूला हो उठीं।

कौन थे मेजर शाबेग

1971 की जंग के नायक रहे मेजर जनरल शाबेग सिंह ने मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों को ट्रेनिंग दी थी लेकिन 1976 में रिटायरमेंट से ठीक पहले भ्रष्टाचार के आरोप में उनका कोर्ट-मार्शल किया गया और रैंक छीन लिया गया। खुद के साथ हुई इस कार्रवाई को वो नाइंसाफी मानते थे। सरकारी तानाशाही से आहत शाबेग सिंह ने भिंडरावाले का हाथ थाम लिया और पांच मंजिला अकाल तख्त की किलेबंदी में भिंडरावाले के सैनिक सलाहकार बन गए।

क्या हुआ था

शाबेग ने अपनी युद्धकला का हर दाव भिंडरावाले की छोटी सी फौज को सिखाया। ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान शाबेग ने सेना का डटकर मुकाबला किया लेकिन ऑपरेशन के दौरान वो भी मारे गए। शाबेग ने सेना से बहुत महंगा खूनी बदला लिया, क्योंकि उसे लगता था कि सेना ने उसे धोखा दिया है।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना के प्रमुख थे जनरल अरुण श्रीधर वैद्य। 31 जुलाई 1983 को जनरल वैद्य 13वें सेनाध्यक्ष बने थे और 1984 में इन्होंने गोल्डन टेंपल से अलगाववादियों को मुक्त करने के लिए ऑपरेशन ब्लूस्टार की योजना बनाई थी।

पंजाब में इमरजेंसी लगा दी गई। अफवाहें उड़नी लगी थीं कि भिंडरावाले को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। भिंडरावाले अकाल तख्त में रहने लगा था। इसबीच, सरकार ने स्वर्ण मंदिर की घेरेबंदी की योजना बनाई। मई 1984 में इंदिरा गांधी को यकीन होने लगा था कि पंजाब में आतंक का सफाया करने के लिए अब टकराव ही सीधा रास्ता है और उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार को हरी झंडी दी।

1977 में जब इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हुईं थी तो पंजाब के सबसे प्रभावशाली दमदमी टकसाल ने अपना नया जत्थेदार चुना जिसका नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले। भिंडरावाले के जोशीले भाषणों में अजीब का खिंचाव था लेकिन उनकी सोच बहुत कट्टर थीं भिंडरावाले गैर सिख के बारे में अच्छी राय नहीं रखता था और निरंकारियों से उसकी कुछ ऐसी ही रंजिश थी।

1978 में निरंकारियों के हाथों भिंडरावाले के 13 समर्थक मारे गए। इस घटना के बाद भिंडरावाले ने अपने समर्थकों से कह दिया कि जो भी निरंकारी को मौत के घाट उतारेगा, उसे वह सोने से तौल देगा। अलगाववाद का जहर बोने वाले भिंडरावाले के भाषणों के कैसेट पंजाब के गांव-गांव में बांटे गए थे।

मेजर जनरल बराड़ को ऑपरेशन ब्लू स्टार के कमांडर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 1971 की जंग में हिस्सा ले चुके बराड़ ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले मेरठ में 9वीं इनफैन्ट्री डिविजन का नेतृत्व कर रहे थे। एक जून 1984 को बराड़ मेरठ से चंडीगढ़ पहुंचें उनसे कहा गया कि यह ऑपरेशन जल्दी से जल्दी होना है , उन्हें अमृतसर जाने का आदेश मिला ।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के करीब 28 साल बाद रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बराड़ पर जानलेवा हमला भी हुआ था। 30 सितंबर, 2012 को चार सिख नौजवानों ने लंदन की ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट पर उन्हें मारने की कोशिश की। उसवक्त उनकी पत्नी भी साथ थींं । हालांकि, इस हमले में वे बच गए थे ।

रामेश्वर नाथ काव ने 1968 में गुप्तचर एजेंसी रॉ का गठन किया था और 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान रॉ से मुक्तिवाहिनी के छापामारों को ट्रेनिंग दिलाई थी। 1981 में वे श्रीमती गांधी के वरिष्ठ सहायक की हैसियत से सरकार में लौटे और एक तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका निभाने लगे। इससे भी बड़ी बात यह थी कि वे पंजाब समस्या के बारे में श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रमुख सलाहकार थे।

विदेशों में कई खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों के साथ काव के निजी संबंध थें ऑपरेशन सनडाउन के लिए श्रीमती गांधी के इनकार से काव अगर नाखुश थे तो भी उन्होंने इसे जाहिर नहीं किया था। उस आपरेशन को सन डाउन नाम इसलिए दिया गया था कि वो आपरेशन रात में होना था जिसमें नुकसान ज्यादा होता इसलिए इंदिरा गांधी ने वो योजना रद्द कर दी थी।

ऑपरेशन ब्लूस्टार के कुछ हफ्ते पहले ही विदेशी राजधानियों में, खासकर बड़ी सिख आबादी वाले शहरों में तैनात रॉ के प्रमुखों ने काव को सावधान कर दिया था कि उग्रवादियों को निकालने की सैनिक कार्रवाई का बुरा असर होगा।

काव ने खुद विदेशों में मौजूद सिख अलगाववादियों से बात की थी कि वे भिंडरांवाले को स्वर्ण मंदिर खाली करने में राजी कर लें। उन्होंने ऑपरेशन से पहले भरोसा दिलाया था कि इस ऑपरेशन के दौरान कोई मौत नहीं होगी और स्वर्ण मंदिर को कोई नुकसान नहीं होगा। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं और बडी संख्या में लोग मारे गए जिसमें सैनिक भी थे।

-आईएएनएस



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Manoj Dwivedi

Manoj Dwivedi

MJMC, BJMC, B.A in Journalism. Worked with Dainik Jagran, Hindustan. Money Bhaskar (Newsportal), Shukrawar Magazine, Metro Ujala. More Than 12 Years Experience in Journalism.

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