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मोदी बोले- नेहरू नहीं चाहते थे बने सोमनाथ मंदिर, जानिए क्यों है खास

Rishi
Published on: 29 Nov 2017 5:49 PM IST
मोदी बोले- नेहरू नहीं चाहते थे बने सोमनाथ मंदिर, जानिए क्यों है खास
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गांधीनगर : पीएम नरेंद्र मोदी विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए गुजरात में हैं। प्राची में रैली को संबोधित करते हुए पीएम ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधा।

उन्होंने कहा कि उनके परिवार के लोग मंदिर के बनने से खुश नहीं थे। सरदार पटेल नहीं होते तो सोमनाथ मंदिर कभी नहीं बन पाता। आज कुछ लोग सोमनाथ मंदिर को याद कर रहे हैं, आप इतिहास भूल गए हैं क्या? आपके परिवार के लोग, हमारे पहले प्रधानमंत्री मंदिर बनने के प्लान से खुश नहीं थे।

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पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का नाम लेते हुए पीएम ने कहा राजेंद्र प्रसाद मंदिर का उद्घाटन करने आए थे, नेहरू खुश नहीं थे।

आरोपों के इस दौर में मोदी ने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को लपेटते हुए आरोप लगाया कि जब 1980 में मोरबी का बांध टूटा था तो इंदिरा मुंह पर रूमाल रखकर आई थीं।

सोमनाथ मंदिर को भी जानिए

सोमनाथ मंदिर को भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम माना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी है।

हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक है। अत्यंत वैभवशाली होने के कारण कई बार इसे तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं कृष्ण ने देह त्याग किया था।

सोमनाथ मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है। यह तीर्थ पितृ श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।

कहा जाता है कि सर्वप्रथम एक मंदिर ईसा के पूर्व में अस्तित्व में था जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिंध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन 1024 में मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। कहा जाता है कि जब हमला हुआ उस समय 50,000 भक्त मंदिर में पूजा कर रहे थे, सभी का कत्ल कर दिया गया।

इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया।

मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया।

1948 में प्रभासतीर्थ, 'प्रभास पाटण' के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी। यह जूनागढ़ रियासत का मुख्य नगर था। लेकिन बाद में इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया।

स्थानीय लोगों के मुताबिक 1026 में महमूद गजनी ने जो शिवलिंग खंडित किया, वह आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग को खंडित किया गया। बताया जाता है आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन 1026 में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था।

सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1940 को यहां उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है।

सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 19 50 को मंदिर की आधारशिला रखी तथा 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया। 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने पति की स्मृति में उनके नाम से 'दिग्विजय द्वार' बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग है और पूर्व गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है।

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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