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प्रणब दा ने आरएसएस के घर में बड़े कायदे की बात कहीं, नोटिस किया क्या
अंशुमान तिवारी
नागपुर : देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय नागपुर पहुंचकर उन तमाम संभावनाओं-आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया जो उनकी इस यात्रा को लेकर पिछले कई दिनों से उमड़-घुमड़ रही थीं। अपने संबोधन में प्रणब मुखर्जी ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा, जिससे उनके व्यक्तित्व की परंपरागत छवि को कोई आघात पहुंचा हो और उनकी विचारधारा पर कोई आक्षेप आया हो।
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पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी समेत अनेक कांग्रेस नेताओं के उन पूर्वाग्रहों पर भी तुषारापात किया जो उनके संघ मुख्यालय जाने को लेकर थे। संघ मुख्यालय में प्रणब मुखर्जी ने न केवल सबको राष्ट्रभक्ति और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया वरन देश में भेदभाव और नफरत को स्थान न देने की वकालत भी की। उन्होंने यह कहकर राष्ट्रवाद को उसकी मूल अवधारणा के रूप में परिभाषित किया कि संविधान में आस्था ही राष्ट्रवाद है। मुखर्जी को जिस विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था वह उससे एक कदम भी विचलित नहीं हुए। उनका पूरा भाषण राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति पर ही केंद्रित रहा।
नहीं मानी कांग्रेस नेताओं की बात
प्रणब मुखर्जी के संघ मुख्यालय जाने पर हामी भरने के बाद देश की राजनीति में एक भूचाल सा आ गया था। पूर्व वित्तमंत्री पी.चिदम्बरम, कांग्रेस सांसद अहमद पटेल, पार्टी के नेता संदीप दीक्षित ही नहीं बल्कि पूर्व राष्ट्रपति की बेटी और कांग्रेस नेता शर्मिष्ठï मुखर्जी ने कहा कि प्रणब दा के इस दौरे से निश्चित रूप से विवाद खड़ा होगा और इस कारण उन्हें वहां जाने से बचना चाहिए। इस बाबत मुखर्जी को कई वरिष्ठ नेताओं ने पत्र भी लिखे मगर प्रणब दा अपना फैसला पलटने के लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि नागपुर जाकर ही मैं सभी को जवाब दूंगा। प्रणब दा के इस बयान के बाद इस बात को लेकर खूब चर्चाएं हो रही थीं कि आखिर प्रणब दा नागपुर में बोलेंगे क्या।
विविधता को बताया असली ताकत
आखिरकार उन्होंने नागपुर पहुंचकर देश की विविधता से भरी संस्कृति की चर्चा की और कहा कि यही विविधता ही हमारी असली ताकत है। असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीय पहचान धूमिल होती है। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि अगर हम भेदभाव और नफरत करेंगे तो यह हमारी पहचान के लिए खतरा बन जाएगा। उन्होंने कहा कि धर्म कभी भारत की पहचान नहीं हो सकता। संविधान में आस्था ही असली राष्ट्रवाद है। देश के मूल विचार में बहुसंख्यकवाद और सहिष्णुता है। ये हमारी समग्र संस्कृति है जो कहती है कि एक भाषा, एक संस्कृति नहीं बल्कि विविधता ही भारत की ताकत है। देश के 1.3 अरब लोग 122 भाषाएं और 1600 बोलियां बोलते हैं। यहां मुख्य रूप से सात धर्मों के लोग हैं मगर तथ्य, संविधान और पहचान एक ही है और वह है भारतीय। उन्होंने देश के इतिहास की विस्तृत चर्चा की और कहा कि कोई भी हमारी सभ्यता व संस्कृति को नष्ट नहीं कर पाया।
अपनी-अपनी व्याख्या
मजे की बात तो यह है कि मुखर्जी के भाषण के बाद भाजपा व कांग्रेस दोनों ने इसकी व्याख्या अपने-अपने अंदाज में की। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि मुखर्जी का भाषण भाजपा के लिए और विशेष रूप से पीएम मोदी के लिए आंखें खोलने वाला था। उन्होंने पीएम मोदी को संकेत दिया कि उन्हें नफरत व अलगाव की राजनीति खत्म करनी होगी और सबको साथ लेकर चलना होगा। दूसरी ओर भाजपा ने इसकी व्याख्या अपने नजरिये से की। भाजपा ने कहा कि अभी तक कांग्रेस संघ को अछूत मानती रही है। मुखर्जी ने वहां जाकर यह साबित कर दिया है कि संघ के राष्ट्रवाद पर अंगुली नहीं उठाई जा सकती। पूर्व राष्ट्रपति ने यह भी साबित किया कि संघ पर अंगुली उठाना गलत है और उसकी देशभक्ति व कार्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।