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सबरीमाला विवाद: 5 नवंबर को खुलेंगे मंदिर के कपाट, कल से धारा 144 लागू
तिरुवनंतपुरम: केरल में सबरीमाला मंदिर को लेकर विवाद अभी भी बना हुआ है। इस पर अब राजनीति भी तेज हो गई है। इस बीच 5 नवंबर से मंदिर के कपाट पूजा के लिए खुलने जा रहे है। इसे देखते हुए कल से केरल में अगले तीन के लिए धारा 144 लगाई जाएगी।
साथ ही एहितयात के तौर पर पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर किया जाएगा। इसके लिए शनिवार शाम से ही पुलिस के 5000 जवान तैनात कर दिए जाएंगे।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद पिछले महीने महिलाओं (10 से 50 वर्ष की आयु) को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पिछले महीने काफी हिंसक प्रदर्शन हुए थे।
क्या है ये पूरा मामला
केरल के सबरीमाला मंदिर में सदियों से 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं थी। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती थी।
इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। इस वजह से मंदिर में वही बच्चियां और महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं, जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो या फिर खत्म हो चुका हो।
सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कौन है ‘अयप्पा’
पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा।
इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।
ये है सबरीमाला मंदिर से जुड़ा मुख्य विवाद
सुप्रीम कोर्ट ने अब सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश और पूजा करने की अनुमति दे दी है। इससे पहले तक 10 साल से लेकर 50 साल की उम्र वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी।
साल 2006 में मंदिर के मुख्य ज्योतिषी परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा था कि मंदिर में स्थापित अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं और वह इसलिए नाराज हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश किया है।
इसके बाद ही कन्नड़ एक्टर प्रभाकर की पत्नी जयमाला ने दावा किया था कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से अयप्पा नाराज हुए।
1987 में वह अपने पति के साथ जब मंदिर में दर्शन करने गई थीं तो भीड़ की वजह से धक्का लगने के चलते वह गर्भगृह पहुंच गईं और भगवान अयप्पा के चरणों में गिर गईं।
ऐसे सार्वजनिक हुआ था ये मामला
2006 में जयमाला के दावे पर केरल में खूब हंगामा हुआ था। इसके बाद मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने के इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान गया।
महिलाओं ने इसके खिलाफ सड़कों पर उतरकर जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। उनकी मांग थी इस मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को बिना किसी रोक -टोक के प्रवेश करने की अनुमति दी जाए।
दावे पर उठे थे सवाल
अभिनेत्री के दावे के समय पर काफी सवाल भी उठे थे। 27 साल की अभिनेत्री की कबूलनामे का मकसद क्या था? उन्हें पुजारी से फूल कैसे मिले?वह मंदिर में बिना किसी की नजर में आए कैसे घुस गईं? क्या यह उन्नीकृष्णन का मंदिर के दूसरे पुजारियों के खिलाफ किसी साजिश का हिस्सा था?
हालांकि जयमाला ने किसी भी साजिश से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि शायद मुझे इसलिए नहीं रोका गया हो क्योंकि मैं मशहूर अभिनेत्री थी। मुझे नहीं पता था कि वहां महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। जयमाला ने एक साक्षात्कार में कहा था, 21वीं सदी में महिलाएं अपने मासिक धर्म को दवा लेकर आगे बढ़ा सकती है और मंदिरों को नियम बनाने का हक नहीं है। मंदिर में प्रवेश के लिए मन शुद्ध होना चाहिए।
2006 में सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
साल 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की। करीब 10 साल तक ये मामला लटका रहा। बाद में याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत न देने पर जवाब मांगा था।
जिस पर बोर्ड ने कहा था कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और इस वजह से मंदिर में वही बच्चियां और महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं, जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो या फिर खत्म हो चुका हो।
कोर्ट ने माना था मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
11 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक का यह मामला संवैधानिक पीठ को भेजा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा इसलिए क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है और इन अधिकारों के मुताबिक महिलाओं को प्रवेश से रोका नहीं जाना चाहिए।
2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था और जुलाई, 2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की थी।
28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने हटाई रोक
नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख जाहिर किया। कोर्ट ने कहा कि वह सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में है। साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था और जुलाई, 2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की थी।
28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दे दी। कोर्ट ने कहा कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी।
कोर्ट ने कहा कि हमारी संस्कृति में महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है। ऐसे में उन्हें मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता।
सबरीमाला मुद्दे पर खूब हुई थी राजनीति
2006 में मंदिर में प्रवेश की अनुमति से जुड़ी याचिका दायर होने के बाद 2007 में एलडीएफ सरकार ने प्रगतिशील व सकारात्मक नजरिया दिखाया था।
एलडीएफ के रुख से उलट कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बाद में अपना पक्ष बदल दिया था। चुनाव हारने के बाद यूडीएफ सरकार ने कहा था कि वह सबरीमाला में 10 से 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ हैं।
यूडीएफ का तर्क था कि यह परंपरा बीते 1500 साल से चली आ रही है। बीजेपी ने इस मुद्दे को दक्षिण में पैर जमाने के मौके की तरह देखा और बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के महिलाओं के हक में फैसले के विरोध में हजारों बीजेपी कार्यकर्ताओं ने केरल राज्य सचिवालय की ओर मार्च किया। महिला अधिकार संगठनों ने इसे मुद्दा बनाया साथ ही भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने भी सबरीमाला मंदिर जाने की बात कही थी।
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