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सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर पूछा- पूर्व MP-MLA को पेंशन देना क्या करदाता पर बोझ नहीं?
नई दिल्ली: पूर्व सांसदों और विधायकों को आजीवन पेंशन और भत्ते दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह नोटिस यूपी के एक एनजीओ 'लोक प्रहरी' की याचिका पर जारी किया है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की, कि 'पूर्व जनप्रतिनिधियों को पेंशन देना क्या करदाता पर बोझ नहीं है।' जस्टिस जे. चेलामेश्वर और जस्टिस ईएएस अब्दुल नजीर की बेंच ने कहा कि वो इस पूरे मुद्दे को विस्तार से सुनेंगे। मामले की अगली सुनवाई अब चार हफ्ते बाद होगी।
'हमने वो जमाना भी देखा है, जब..'
एनजीओ लोक प्रहरी की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि पूर्व सासंदों और विधायकों को आजीवन पेंशन दी जा रही है जबकि ऐसा कोई नियम नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हमने वो जमाना भी देखा है, जब लंबे वक्त तक सांसद के रूप में काम करने के बाद भी कई नेता की मौत गुरबत में हुई।'
..आखिर सांसद को क्यों मिले पेंशन?
याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि 'यदि एक दिन के लिए भी कोई सांसद बन जाता है, तो वह ना केवल आजीवन पेंशन का हकदार हो जाता है। इतना ही नहीं उसकी पत्नी को भी पेंशन मिलती है। साथ ही वह जीवन भर एक साथी के साथ ट्रेन में मुफ्त यात्रा करने का अधिकारी हो जाता है। जबकि राज्य के राज्यपाल को भी आजीवन पेंशन नहीं दी जाती।'
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रिटायर्ड जजों को नहीं मिलती ये सुविधाएं
एनजीओ के सचिव और पूर्व आईएएस अधिकारी एसएन शुक्ला ने ये भी दलील दी कि 'सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वर्तमान जजों को भी साथी के लिए मुफ्त यात्रा का लाभ नहीं दिया जाता है। चाहे वह आधिकारिक यात्रा पर ही क्यों हों, लेकिन पूर्व सांसदों को यह सुविधा मिलती है।'
जन प्रतिनिधि नहीं तब भी सुविधा क्यों
याचिकाकर्ता ने कहा कि 'यह व्यवस्था आम लोगों पर बोझ है। साथ ही ये राजनीति को और भी लुभावना बना देती है। देखा जाए तो यह खर्च ऐसे लोगों पर किया जाता है जो जनता का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं। इसलिए इस व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए।'