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जब संसद में अपने ही साथी पर बरसे मंत्री, सकते में बैठा रह गया सत्ता पक्ष
गुस्साए शिवसेना सांसदों के बीच से राजनाथ सिंह अनंतगीते को खींचकर अपनी सीट के बगल में ले आए। लेकिन गीते शांत बैठने को तैयार नहीं थे। वे जोर-जोर से केंद्र सरकार व विमानन मंत्री के बयान पर अपनी उत्तेजना को खुलकर प्रकट कर रहे थे।
उमाकांत लखेड़ा
नई दिल्ली: किसी सरकार में कोई मंत्री अगर कैबिनेट के प्रति सामूहिक तौर पर जवाबदेह माना जाता है तो लोकसभा में शिव सेना कोटे के मंत्री अनंत गीते जिस तरह आज अपनी सरकार में सहयोगी मंत्री अशोक गजपति राजू पर सार्वजनिक तौर पर आग बबूला हुए उससे किसी सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी का मसला सदन में तार-तार होते देखा गया।
मंत्री बनाम मंत्री
मामला शिव सेना के सांसद रवींद्र गायकवाड़ द्वारा एयर इंडिया के विमान में 23 मार्च को हुई घटना के बाद विमानन मंत्री की इस दो टूक सफाई को लेकर था कि जो घटना हुई उसके लिए अकेले उन पर ही दोष मढ़ना गलत है। अपनी पार्टी के सांसद गायकवाड़ के प्रति दिल्ली पुलिस द्वारा बिना किसी जांच के एफआईआर दर्ज करने और उन्हें हवाई यात्रा करने से प्रतिबंधित करने को सही ठहराने को लेकर शांत स्वभाव वाले अंनत गीते को पहली बार सदन के भीतर इतने गुस्से में देखा गया।
विमानन मंत्री के दो मिनट के वक्तव्य से नाराज अनंत गीते अपने ही सहयोगी मंत्री के आसन के निकट जाकर उनसे खुलकर उलझते देखे गए। नजारा इतना तनावपूर्ण हो गया था कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह और उसके पहले संसदीय कार्य राज्य मंत्री एसएस अहलूवालिया मंत्री गजपति राजू को बचाने के लिए उनकी सीट पर पहुंचे। अनंत गीते को जब अहलूवालिया मनाने की कोशिश कर रहे थे तो गीते ने उन्हें लगभग धक्का देते हुए अपना रोष जाहिर रखा।
असहज सरकार
अनंत गीते ने अपने सांसद के साथ अपनी ही सरकार के व्यवहार पर क्षोभ प्रकट करते हुए आरोप लगाया कि उनकी पार्टी के सांसद पर जो प्रतिबंध लगाया गया है वह एकतरफा व शर्मनाक कार्रवाई है। इसी बीच गुस्साए शिवसेना सांसदों के बीच से राजनाथ सिंह अनंतगीते को खींचकर अपनी सीट के बगल में ले आए। लेकिन अनंत गीते इस पर शांत बैठने को तैयार नहीं थे। उनका विरोध जारी था वे जोर-जोर से केंद्र सरकार व विमानन मंत्री के बयान पर अपनी पार्टी व खुद की उत्तेजना को खुलकर प्रकट कर रहे थे।
सदन में एक ही सरकार के एक मंत्री द्वारा दूसरे मंत्री पर इस कदर उलझने का नजारा मोदी सरकार में पहली बार देखने को मिला। जाहिर है कि इस अजीबोगरीब घटनाक्रम पर पहली बार मोदी सरकार और उसके सियासी प्रबंधक सकते में थे। लोकसभा में तीन साल में यह भी पहली बार झलका कि कोई सरकार भारी संख्याबल के बावजूद अपने एक आक्रामक सहयोगी दल शिवसेना को लेकर किस तरह से असहज है।