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3 तलाक से मिली आजादी, SC ने कहा- असंवैधानिक, सरकार बनाए कानून

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (22 अगस्त) को तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 18 मई को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

tiwarishalini
Published on: 22 Aug 2017 10:32 AM IST
3 तलाक से मिली आजादी, SC ने कहा- असंवैधानिक, सरकार बनाए कानून
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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (22 अगस्त) को तीन तलाक के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक रोकने के लिए केंद्र सरकार संसद में कानून बनाए। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर फिलहाल 6 महीने की रोक लगाई है। इससे मुस्लिम महिलाओं को एक बार में तीन तलाक से आजादी मिल गई है।

चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि तलाक-ए-बिद्दत संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का हनन नहीं करता। चीफ जस्टिस खेहर ने कहा कि तीन तलाक पर सभी पार्टियां मिलकर फैसला लें। लेकिन मसले से राजनीति को दूर रखें। सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने तीन तलाक पर अपना फैसला सुनाया। 3 जजों, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आरएफ नरीमन ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया।

वहीं चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर इसके पक्ष में थे। पांच जजों की बेंच में चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने सबसे पहले इस पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रक्रिया और भावनाओं से जुड़ा मामला है, इसलिए इसे एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता।

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खेहर ने कहा कि छह महीने तक के लिए कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए तीन तलाक पर तत्काल रोक लगाती है। इस अवधि में देशभर में कहीं भी तीन तलाक मान्य नहीं होगा।

गौरतलब है कि पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 6 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 18 मई को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इस बेंच में सभी धर्मों के जस्टिस शामिल हैं। इनमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कुरियन जोसफ (ईसाई), जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन (पारसी), जस्टिस यूयू ललित (हिंदू) और जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) शामिल हैं।

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बता दें, कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 11 से 18 मई तक सुनवाई चली थी। जिसमें मुस्लिम समुदाय में चल रही प्रथा तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनावई हुई।

इस मुद्दे पर कोर्ट में याचिका दायर करने वालीं सायरा बानो ने फैसला आने से पहले कहा कि मुझे उम्मीद है कि कोर्ट का फैसला मेरे हक में आएगा। जो भी फैसला होगा, हम उसका स्वागत करेंगे।

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आॅल इंडिया शिया पर्सनल बोर्ड के संयोजक ने क्या कहा ?

-आॅल इंडिया शिया पर्सनल बोर्ड के संयोजक मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि बहुत अच्छा फैसला है।

-इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

-सती प्रथा की तरह सख्त कानून बनाकर इसे सरकार को रोकना चाहिए।

-जिससे मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय न हो।

-एक बार में तीन तलाक की प्रथा अब देश से खत्म होनी चाहिए।

क्या कहना है मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली का ?

आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस कानून का हवाला देकर तीन तलाक को असंवैधानिक बताया है, उसी संविधान ने हमें अपना पर्सनल लॉ बनाने का हक दिया है। इसमें दखल नहीं दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला है उस पर आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की 10 सितंबर की बैठक में आगे की रणनीति तय की जाएगी।

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तीन तलाक पर शायरा बानो की लड़ाई

उत्तराखंड के काशीपुर की 35 साल की शायरा बानो ने फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी। शायरा ने तलाक-ए-बिद्दत यानी ‘तिहरे तलाक’और‘हलाला’के चलन की संवैधानिकता और मुस्लिमों में प्रचलित बहु विवाह की प्रथा को भी चुनौती दी। शायरा ने कोर्ट से मांग की थी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव, एक तरफा तलाक और पहली शादी के बावजूद शौहर के दूसरी शादी करने के मुद्दे पर विचार किया जाए।

शायरा की अर्जी में कहा गया कि तीन तलाक भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत भारतीय नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। शायरा की अर्जी के बाद तीन तलाक के खिलाफ कई अन्य याचिकाएं दायर की गईं। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने भी खुद संज्ञान लेते हुए चीफ जस्टिस से आग्रह किया था कि वह स्पेशल बेंच का गठन करें ताकि भेदभाव की शिकार मुस्लिम महिलाओं के मामलों को देखा जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल और नैशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी को जवाब दाखिल करने को कहा था।

शायरा बानो का पति रिजवान इलाहाबाद में रहता है। शायरा उत्तराखंड में अपने माता-पिता के घर इलाज के लिए गई थी तभी 10 अक्टूबर, 2015 को उसे पति का दो पन्ने का तलाकनामा मिला। जिसमें लिखा था कि वह उनसे तलाक ले रहा है।

रिजवान ने लिखा था - ‘शरीयत की रोशनी में यह कहते हुए कि मैं तुम्हें तलाक देता हूं, तुम्हें तलाक देता हूं, तुम्हें तलाक देता हूं, इस तरह तिहरा तलाक देते हुए मैं मुकिर आपको अपनी जैजियत से खारिज करता हूं. आज से आप और मेरे दरमियान बीवी और शौहर का रिश्ता खत्म. आज के बाद आप मेरे लिए हराम और मैं आपके लिए नामहरम हो चुका हूं।’शायरा ने अपने पति से मिलने की कोशिश की लेकिन यह नाकाम रही। शायरा के अनुसार मेरे बच्चों की जिंदगी बर्बाद हो गई।

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आफरीन का भी किस्सा

28 साल की रहमान आफरीन के साथ भी यही हुआ. आफरीन ने एमबीए करने के बाद एक वैवाहिक वेबसाइट के जरिए इंदौर के वकील सैयद असार अली वारसी से 24 अगस्त 2014 में निकाह किया था. मां की मौत के बाद जयपुर अपने मायके आईं आफरीन को 17 जनवरी, 2016 को उसके शौहर का भेजा हुआ स्पीड पोस्ट मिला. उसमें लिखा था कि मैं तुम्हें तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कहता हूं क्योंकि तुम मेरे घरवालों से ज्यादा खुद के घरवालों का ख्याल रखती हो और मुझे शौहर होने का सुख नहीं देती. आफरीन ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है।

(भारत में लगभग 18 करोड़ मुसलमान रहते हैं। उनकी शादी और तलाक के मामले मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक तय होते हैं, जो जाहिर तौर पर शरिया कानून पर आधारित होते हैं।)

शायरा बानो ने संविधान में नागरिकों को दिए गए मूलभूत अधिकारों अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, लिंग के आधार पर किसी नागरिक से कोई भेदभाव न किया जाए) और अनुच्छेद 21 (जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार) और अनुच्छेद 25 को आधार बनाया था।

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