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तस्लीमा बोलीं- हिंदू सहित अन्य धर्मों पर लिखने से नहीं होती दिक्कत, इस्लाम पर जारी होता है फतवा
जयपुर: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सोमवार (23 जनवरी) को लेखिका तस्लीमा नसरीन मंच पर पहुंची। सत्र को संबोधित करते हुए असहिष्णुता ( इनटॉलरेंस) के सवाल पर तस्लीमा ने कहा कि 'केवल सेक्युलर लोगों की हत्या होना इनटॉलरेंस नहीं है। सभी तरह के अपराध इस श्रेणी में आते हैं। इसे रोका जाना चाहिए। दुनिया में कहां ऐसा नहीं होता। महिलाओं के खिलाफ अपराध भी इनटॉलरेंस है।'
तस्लीमा नसरीन ने कहा, जब कभी भी वह महिलाओं पर अपराध के मुद्दे पर हिंदू, बौद्ध, सिख और ईसाई धर्म की आलोचना करती हैं तो कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन इस्लाम की आलोचना करते ही उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगती हैं। अगर वे मेरी बात को गलत मानते हैं, तो इसके लिए तथ्य पेश करें। लेकिन वे ऐसा नहीं करते। जो कोर्इ भी इस्लाम की आलोचना करता है कट्टरपंथी उसे मारना चाहते हैं।'
यह देश सेक्युलर है
तस्लीमा ने आगे कहा, 'मैं अभिव्यक्ति की आजादी में विश्वास करती हूं। मैं धर्म के खिलाफ लिखती हूं। लेकिन यह देश सेक्युलर है। सेक्युलरिज्म का मतलब यह है कि मुस्लिम कट्टरपंथी फतवा जारी कर सके? मुस्लिम वोटों के लिए सेक्युलर लेखकों को देश से बाहर कर दिया जाता है। और जो लोग लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते, फतवा जारी करते हैं उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।'
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फतवा जारी करने वाला ममता का करीबी
बांग्लादेशी लेखिका नसरीन ने कहा, जिस व्यक्ति ने मेरे सिर काटने वाले को मुंहमांगी रकम देने का ऐलान किया था वह बंगाल की पूर्व सरकार के मुख्यमंत्री का भी दोस्त था। अब ममता बनर्जी का भी अच्छा दोस्त है।
यूनिफार्म सिविल कोड का किया समर्थन
अपने संबोधन में तस्लीमा ने कहा, पश्चिम बंगाल के पूर्व सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उनकी किताब को इसलिए प्रतिबंधित किया था कि इससे मुस्लिम नाराज हो सकते हैं। जबकि किसी भी मुस्लिम ने मेरी किताब पर प्रतिबंध की मांग नहीं की थी। किताब को पढ़ने के बाद कुछ लेखक भी नाराज हो गए थे।' इस दौरान तस्लीमा ने भारत में यूनिफार्म सिविल कोड लागू किए जाने का समर्थन किया।
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बांग्ला बुद्धिजीवियों पर उठाए सवाल
तस्लीमा ने समाज के बुद्धिजीवियों पर भी सवाल उठाए। बोलीं, 'कोलकाता को प्रगतिशील शहर माना जाता है। वहां के बुद्धिजीवी लेखकों ने मेरी किताब को प्रतिबंधित करने की मांग की। ऐसा उन्होंने केवल इसलिए किया क्योंकि उन्हें मेरा तरीका पसंद नहीं आया। मैंने अपनी आत्मकथा में जो कुछ लिखा उसे मैंने महसूस किया था। जब सरकार ने मुझे कोलकाता से बाहर जाने का विचार रखा तो उन बुद्धिजीवियों ने भी इसका समर्थन किया।'
भारत घर जैसा लगता है
भारत को पसंद करने के सवाल पर तस्लीमा बोलीं, 'यदि मैं रह सकती तो मैं अपने देश बांग्लादेश में रहना चाहती हूं। इसके अलावा भारत ही एकमात्र विकल्प है। यहां मैं बाहरी महसूस नहीं करती। मैं बंगाली में लिखती हूं जो कि भारत की बड़ी भाषाओं में से एक हैं। यहां मुझे घर जैसा लगता है।'