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देश में शिक्षा के बेहतर होने के दावे खोखले, बुरे हाल पर विश्व बैंक चिंतित
लखनऊ: केंद्र और राज्य सरकारें प्राथमिक शिक्षा में सुधार के जो भी दावे करे, लेकिन भारत उन 12 देशों की सूची में दूसरे नंबर पर है, जहां दूसरी क्लास के छात्र एक छोटे से पाठ का एक शब्द भी नहीं पढ़ पाते। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, कि 12 देशों की इस लिस्ट में मलावी पहले स्थान पर है और भारत दूसरे स्थान पर।
'वर्ल्ड डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2018: लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशन्स प्रॉमिस' के मुताबिक, ग्रामीण भारत में तीसरी क्लास के तीन चौथाई बच्चे दो अंकों के घटाने वाले सवाल तक हल नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा पांचवीं कक्षा के आधे छात्र भी ऐसा नहीं कर पाते हैं।
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दी पढ़ाई के संकट की चेतावनी
वर्ल्ड बैंक ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में ग्लोबल एजुकेशन में पढ़ाई के संकट की चेतावनी दी है। उसने कहा, कि इन देशों में लाखों युवा छात्रों को बाद में जीवन-यापन के कम अवसर मिलते हैं, क्योंकि उनके प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल उन्हें जीवन में सफल बनाने के लिए शिक्षा देने में फेल हो रहे हैं।
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देश से गरीबी मिटाना आसान नहीं
रिपोर्ट में कहा गया है, कि बिना ज्ञान के शिक्षा देने से देश में गरीबी मिटाना और नए अवसर पैदा करना आसान नहीं है। यहां तक कि स्कूल में कई सालों बाद भी लाखों बच्चे पढ़-लिख नहीं पाते या गणित का आसान-सा सवाल हल नहीं कर पाते।
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संकट नैतिक और आर्थिक
ज्ञान का यह संकट नैतिक और आर्थिक है। जब शिक्षा अच्छी तरह दी जाती है, तो यह युवा लोगों से रोजगार, बेहतर आय, अच्छे स्वास्थ्य और बिना गरीबी के जीवन का वादा करती है। समुदायों के लिए शिक्षा खोज की खातिर प्रेरित करती है, संस्थानों को मजबूत करती है और सामाजिक सामंजस्य बढ़ाती है। ये फायदे शिक्षा पर निर्भर करते हैं और बिना ज्ञान के शिक्षा देना अवसर को बर्बाद करना है।
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चिंताजनक स्थिति
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, साल 2016 में ग्रामीण भारत में पांचवीं क्लास के केवल आधे बच्चे ही दूसरी क्लास के पाठ्यक्रम के स्तर की किताब अच्छे से पढ़ सकते हैं, जिसमें उनकी स्थानीय भाषा में बोले जाने वाले बेहद सरल वाक्य शामिल हैं।
अच्छे प्रदर्शन वाले भी नहीं दे पाए जवाब
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2010 में भारत के आंध्र प्रदेश में पांचवीं क्लास के वह छात्र पहली क्लास के सवाल का भी सही जवाब नहीं दे पाए, जिनका एक्जाम में प्रदर्शन अच्छा रहा था। यहां तक कि पांचवी क्लास के औसत छात्रों के संबंध में भी यह संभावना 50 फीसदी ही थी।
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इस रिपोर्ट में पढ़ाई के गंभीर संकट को हल करने के लिए विकसित देशों से विकासशील देशों की मदद करने की अपील की गई है। उनसे इसके लिए ठोस नीतिगत कदम उठाने की सिफारिश भी की गई है।