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15 August 2023: क्या थी चन्द्रशेखर आज़ाद के संघर्ष की कहानी, जानिए कैसे वो आज़ाद जिए और आज़ाद ही मरे

15 August 2023: आज हम चन्द्रशेखर आज़ाद के संघर्ष की कहानी आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे उन्होंने देश की आज़ादी की ये लड़ाई लड़ी और देश पर अपने प्राणों को न्यौछावर करने से एक पल भी वो नहीं हिचकिचाए।

Shweta Shrivastava
Published on: 10 Aug 2023 7:20 AM IST (Updated on: 10 Aug 2023 7:21 AM IST)
15 August 2023: क्या थी चन्द्रशेखर आज़ाद के संघर्ष की कहानी, जानिए कैसे वो आज़ाद जिए और आज़ाद ही मरे
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15 August 2023 (Image Credit-Social Media)

15 August 2023: चन्द्रशेखर आज़ाद एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी उग्र देशभक्ति की विचारधारा और अदम्य साहस ने उनकी पीढ़ी के ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लोगों को भी काफी प्रभावित किया। जिसने उस समय के कई लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश करने के लिए प्रेरित भी किया। वो महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के गुरु थे, और भगत सिंह के साथ उन्हें भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। आज हम चन्द्रशेखर आज़ाद के संघर्ष की कहानी आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे उन्होंने देश की आज़ादी की ये लड़ाई लड़ी और देश पर अपने प्राणों को न्यौछावर करने से एक पल भी वो नहीं हिचकिचाए।

चन्द्रशेखर आज़ाद के संघर्ष की कहानी

चन्द्रशेखर आज़ाद उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के एक भारतीय क्रांतिकारी थे। उनका मानना ​​था कि राष्ट्र के लिए लड़ना ही उनका धर्म है। उन्होंने कहा कि सैनिक कभी हथियार नहीं छोड़ता। वो काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वायसराय की ट्रेन को उड़ाने के प्रयास (1926) और लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए लाहौर में सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या (1928) में शामिल थे। उन्होंने 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' का गठन किया। वो भगत सिंह, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों के आदर्श थे।

चन्द्रशेखर आज़ाद का प्रारंभिक जीवन

चन्द्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव में हुआ था। उनके माता-पिता पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी थे। पंडित सीताराम तिवारी अलीराजपुर (वर्तमान मध्य प्रदेश में स्थित) की तत्कालीन संपत्ति में सेवारत थे वहीँ चन्द्रशेखर आज़ाद का बचपन भाबरा गाँव में बीता था। अपनी माँ जगरानी देवी के आग्रह पर चन्द्रशेखर आज़ाद संस्कृत की पढ़ाई के लिए काशी विद्यापीठ, बनारस चले गये।

15 साल की उम्र में गए जेल

1919 में अमृतसर में जलियांवाला बाग नरसंहार से चन्द्रशेखर आज़ाद बहुत परेशान थे। 1921 में, जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन चलाया, तो उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें पहली सजा पंद्रह साल की उम्र में मिली। क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होते हुए उन्हें पकड़ लिया गया। जब मजिस्ट्रेट ने उनसे उनका नाम पूछा तो उन्होंने कहा "आजाद" (अर्थात् स्वतंत्र)। इसपर उन्हें पन्द्रह कोड़ों की सज़ा सुनाई गई। कोड़े की हर मार के साथ युवा चन्द्रशेखर चिल्लाते थे "भारत माता की जय!" तभी से चन्द्रशेखर ने आज़ाद की उपाधि धारण की और चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम से जाने गये। उन्होंने कसम खाई कि वो ब्रिटिश पुलिस द्वारा कभी गिरफ्तार नहीं किये जायेंगे और स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में ही इस दुनिया से विदा लेंगे।

तब चन्द्रशेखर आज़ाद अधिक आक्रामक और क्रांतिकारी आदर्शों की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने किसी भी तरह से पूर्ण स्वतंत्रता के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया। आज़ाद और उनके हमवतन ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाते थे जो आम लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाइयों के लिए जाने जाते थे।

आज़ाद जिए और आज़ाद ही मरे

आजाद ब्रिटिश पुलिस के लिए एक टेरर की तरह थे। वो अंग्रेज़ों की हिट लिस्ट में थे और ब्रिटिश पुलिस उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहती थी। 27 फरवरी, 1931 को आजाद ने अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद में अपने दो साथियों से मुलाकात की। लेकिन उन्हें एक मुखबिर ने धोखा दिया था जिसने ब्रिटिश पुलिस को सूचना दी थी। पुलिस ने पार्क को घेर लिया और आज़ाद को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। आज़ाद अकेले ही वीरतापूर्वक लड़े और तीन पुलिसकर्मियों को मार डाला। लेकिन खुद को घिरा हुआ पाकर और भागने का कोई रास्ता न देखकर उन्होंने खुद को गोली मार ली। इस प्रकार उन्होंने जीवित न पकड़े जाने की अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। वो आज़ाद जिए और आज़ाद ही मरे।

आज़ाद केवल 25 वर्ष तक जीवित रहे, लेकिन उन्होंने हजारों भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

Shweta Shrivastava

Shweta Shrivastava

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