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बर्फ़ के होते हैं 421 नाम, इससे जुड़ी हकीकत और चौंकाने वाली दिलचस्प बातें
मौसम सर्दियों का और बर्फ की सफेद चादर या बर्फ की फुहारे बर्फ़ को लेकर आप की तमाम कल्पनाएं और इससे जुड़ी हकीकत चौकाने वाली और हैरान करने वाली है।अगर कोई ये कहे कि बर्फ को हम लोग 421 अलग अलग नामों से पुकार सकते हैं। कहा जाता है कि उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले बर्फ़ के आदिवासी इनुइट लोगों ने बर्फ़ के 50 नाम रखे हुए हैं।
नई दिल्ली: मौसम सर्दियों का और बर्फ की सफेद चादर या बर्फ की फुहारे बर्फ़ को लेकर आप की तमाम कल्पनाएं और इससे जुड़ी हकीकत चौकाने वाली और हैरान करने वाली है।अगर कोई ये कहे कि बर्फ को हम लोग 421 अलग अलग नामों से पुकार सकते हैं। कहा जाता है कि उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले बर्फ़ के आदिवासी इनुइट लोगों ने बर्फ़ के 50 नाम रखे हुए हैं। कुछ लोग इसे कोरी कल्पना कहते हैं,तो कोई इसे सटीक सत्य बताते हैं। पर स्कॉटलैंड में तो रिसर्च में ये बात सामने आई है कि बर्फ़ को 421 तरह से बुलाया जाता है। तो ये और चौकाने वाली बात है।
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लेकिन वैज्ञानिक रिसर्च से यह पता चलता है कि इसके आर-पार रोशनी के गुज़रने की वजह से ही बर्फ़ सफ़ेद दिखती है। बर्फ़ कई बार प्रदूषण, धुएं और हरी काई का रंग भी धर लेती है। हमने बर्फ़ को नारंगी से लेकर काले रंग में भी देखा है।नासा के तमाम मिशन ने इस बात के संकेत दिए थे कि मंगल ग्रह के उत्तरी इलाक़ों में गर्मियों के दिनों में बर्फ़ जमती है। हमें ये तो पक्के तौर पर पता है कि मंगल पर बादल हैं और ज़मीन के भीतर बर्फ़ भी है। मंगल ग्रह के दक्षिणी ध्रुव पर भी कार्बन डाई ऑक्साइड से बनी हुई बर्फ़ मिली है।
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मौसम का तापमान और हवा का रूख कैसा है इस पर तरह-तरह के हिमखंड आकार तय होता है। ये बात हवा के तापमान पर निर्भर करती है। हिम खंडों पर रिसर्च से ये बात सामने आई है कि जब तापमान -2 डिग्री सेल्सियस होता है, तो बर्फ़ जमती है। इससे भी कम तापमान यानी माइनस 5 डिग्री सेल्सियस होने पर एकदम सपाट क्रिस्टल बनते हैं। तापमान में और बदलाव होने पर जब हिमपात होता है, तो ये क्रिस्टल रोएंदार दिखने लगते हैं।
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विज्ञान के ब्लॉग कंपाउंड इंटेरेस्ट के संस्थापक एंडी ब्रनिंग ने 35 अलग-अलग प्रकार के स्नोफ़्लेक यानी बर्फ़ के टुकड़ों का वर्णन किया है। इसके अलावा भी कई तरह के हिमखंड देखने को मिलते हैं। वो बड़े घनाकर टुकड़ों से लेकर पंखे जैसे पतले आकार तक में मिलते हैं।जैसे ही बर्फ़ गिरती है, तो ये वातावरण में मौजूद ध्वनि को सोख लेती है।यानी बर्फ़ गिरने से आस-पास का माहौल शांत हो जाता है। तेज़ आवाज़ें खुसर-पुसर में तब्दील हो जाती हैं।जब बर्फ़ पिघल कर फिर से जमती है, तो इसमें क़ैद आवाज़ आज़ाद हो कर दूर तक फ़ैल जाती है।
अगर आप बर्फ़बारी के बीच ज़्यादा वक्त बिताते हैं, तो आप आर्कटिक हिस्टीरिया नाम की बीमारी के शिकार हो सकते हैं। उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले इनुइट लोग अक्सर इसके शिकार हो जाते हैं।
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बर्फ़ में 90-95 प्रतिशत तक हवा क़ैद होती है। इसका मतलब ये है कि ये गर्मी को रोक कर रखती है। यही वजह है कि बर्फ़ीले इलाक़ों में बहुत से जानवर बर्फ़ के भीतर गहराई तक खुदाई कर के अपने छुपने के ठिकाने बनाते हैं। ध्रुवों पर बनाए जाने वाले इग्लू या बर्फ़ की कुटिया भी इसी वजह से लोगों को गर्म रखने में मददगार होती है। ये बाहर के मौसम के मुक़ाबले अंदर 100 डिग्री तक ज़्यादा गर्म हो सकती है।