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Prerak Prasang : प्रेरक प्रसंग/ अनुभव की कंघी

Prerak Prasang : अनुभव की कंघी एक आदर्श गहरे संवेदनशीलता का प्रतीक है जो हमें अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है। यह कहानी हमें एक व्यक्ति के अनुभव के माध्यम से सीखने की महत्वपूर्णता बताती है। इस कथा में, एक व्यक्ति को अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण अनुभव होता है जो उसे आत्म-समझ, प्रारंभिक संघर्षों, या अन्य सामान्यतः व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से प्राप्त होता है।

Newstrack
Published on: 23 May 2023 2:22 PM IST (Updated on: 23 May 2023 2:31 PM IST)
Prerak Prasang : प्रेरक प्रसंग/ अनुभव की कंघी
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Inspirational Story (social media)

Prerak Prasang : रामधन नाम का एक पुराना व्यपारी था जो अपनी व्यापारी समझ के कारण दोनों हाथो से कमा रहा था । उसको कोई भी टक्कर नहीं दे सकता था। वो दूर-दूर से अनाज लाकर उसे शहर में बेचता था उसे बहुत सा लाभ होता था । वो अपनी इस कामयाबी से बहुत खुश था । इसलिये उसने सोचा व्यापार बढ़ाना चाहिये और उसने पड़ौसी राज्य में जाकर व्यापार करने की सोची।

दुसरे राज्य जाने के रास्ते का मानचित्र देखा गया जिसमे साफ-साफ था कि रास्ते में एक बहुत बड़ा मरुस्थल हैं । खबरों के अनुसार उस स्थान पर कई लुटेरे भी हैं । लेकिन बूढा व्यापारी कई सपने देख चुका था । उस पर दुसरे राज्य में जाकर धन कमाने की इच्छा प्रबल थी । उसने अपने कई किसान साथियों को लेकर प्रस्थान करने की ठान ली । बैलगाड़ियाँ तैयार की और उस पर अनाज लादा। इतना सारा माल था जैसे कोई राजा की शाही सवारी हो।

बूढ़े राम धन की टोली में कई लोग थे जिसमे जवान युवक भी थे और वृद्ध अनुभवी लोग,जो बरसो से राम धन के साथ काम कर रहे थे। जवानों के अनुसार अगर इस टोली का नेतृत्व कोई नव युवक करता तो अच्छा होता क्योंकि यह वृद्ध रामधन तो धीरे-धीरे जायेगा और पता नही उस मरुस्थल में क्या-क्या देखना पड़ेगा।

तब कुछ नौ जवानो ने मिलकर अपनी अलग टोली बना ली और स्वयम का माल ले जाकर दूसरे राज्य में जाकर व्यापार करने की ठानी। रामधन को उसके चहेते लोगों ने इस बात की सूचना दी। तब राम धन ने कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं दिखाई उसने कहा भाई सबको अपना फैसला लेने का हक़ हैं । अगर वो मेरे इस काम को छोड़ अपना शुरू करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं । और भी जो उनके साथ जाना चाहता हो जा सकता हैं ।


अब दो अलग व्यापारियों की टोली बन चुकी थी जिसमे एक का नेतृत्व वृद्ध रामधन कर रहे थे और दूसरे का नेतृत्व नव युवक गणपत कर रहे थे । दोनों की टोली में वृद्ध एवम नौ जवान दोनों सवार थे।

सफ़र शुरू हुआ । रामधन और गणपत अपनी अपनी टोली लेकर चल पड़े । थोड़ी दूर सब साथ –साथ ही चल रहे थे कि जवानो की टोली तेजी से आगे निकल पड़ी और रामधन और उनके साथी पीछे रह गये। रामधन की टोली के नौजवान इस धीमी गति से बिलकुल खुश नहीं थे और बार-बार रामधन को कोस रहे थे,कहते कि वो नौ जवानो की टोली तो कब की नगर की सीमा लाँघ चुकी होगी और कुछ ही दिनों में मरुस्थल भी पार कर लेगी। और हम सभी इस बूढ़े के कारण भूखे मर जायेंगे।

धीरे-धीरे रामधन की टोली नगर की सीमा पार करके मरुस्थल के समीप पहुँच जाती हैं। तब रामधन सभी से कहते हैं यह मरुस्थल बहुत लंबा हैं और इसमें दूर दूर तक पानी की एक बूंद भी नहीं मिलेगी, इसलिये जितना हो सके पानी भर लो। और सबसे अहम् यह मरुस्थल लुटेरे और डाकुओं से भरा हुआ हैं इसलिये हमें यहाँ का सफ़र बिना रुके करना होगा। साथ ही हर समय चौकन्ना रहना होगा।

उन्हें मरुस्थल के पहले तक बहुत से पानी के गड्ढे मिल जाते हैं जिससे वे बहुत सारा पानी संग्रह कर लेते हैं। तब उन में से एक पूछता हैं कि इस रास्ते में पहले से ही इतने पानी के गड्ढे हैं,हमें एक भी गड्ढा तैयार नहीं करना पड़ा। तब रामधन मूंछो पर ताव देकर बोलते हैं इसलिए तो मैंने नव जवानों की उस टोली को आगे जाने दिया। यह सभी उन लोगों ने खुद के लिए तैयार किया होगा जिसका लाभ हम सभी को मिल रहा हैं। यह सुनकर कर टोली के विरोधी साथी खिजवा जाते हैं | और अन्य, रामधन के अनुभव की प्रशंसा करने लगते हैं । सभी रामधन के कहे अनुसार बंदोबस्त करके और आराम करके आगे बढ़ते हैं ।


आगे बढ़ते हुए राम धन सभी को आगाह कर देता हैं कि अब हम सभी मरुस्थल में प्रवेश करने वाले हैं । जहाँ ना तो पानी मिलेगा, ना खाने को फल और ना ही ठहरने का स्थान और यह बहुत लम्बा भी हैं । हमें कई दिन भी लग सकते हैं । सभी रामधन की बात में हामी मिलाते हुए उसके पीछे हो लेते हैं ।

अब वे सभी मरुस्थल में प्रवेश कर चुके थे । नवनीत जहाँ बहुत ज्यादा गर्मी थी जैसे अलाव लिये चल रहे हो। आगे चलते-चलते उन्हें सामने से कुछ लोग आते दिखाई देते हैं । वे सभी रामधन को प्रणाम करते हैं और हाल चाल पूछते हैं ।.उन में से एक कहता हैं आप सभी व्यापारी लगते हो, काफी दूर से चले आ रहे हो, अगर कोई सेवा का अवसर देंगे तो हम सभी तत्पर हैं। उसकी बाते सुन रामधन हाथ जोड़कर कह देता हैं कि भाई हम सभी भले चंगे हैं, तुम्हारा धन्यवाद जो तुम सभी ने इतना सोचा । और वे अपने साथियों को लेकर आगे बढ़ जाते हैं । आगे बढ़ते ही टोली के कुछ नव युवक फिर से रामधन को कौसने लगते हैं कि जब वे लोग हमारी सहायता कर रहे हैं तो इस वृद्ध रामधन को क्या परेशानी हैं ?

कुछ दूर चलने के बाद फिर से कुछ लोग सामने से आते दिखाई देते हैं जिनके वस्त्र गिले थे और वे रामधन और उसके साथियों को कहते हैं कि आप सभी राहगीर लगते हो और इस मरुस्थल के सफर से थके लग रहे हो । अगर आप चाहो तो हम आपको पास के एक जंगल में ले चलते हैं । जहाँ बहुत पानी और खाने को फल हैं । साथ ही अभी वहाँ पर तेज बारिश भी हो रही हैं । उसी में हम सभी भीग गये थे । अगर आप सभी चाहे तो अपना सारा पानी फेक कर जंगल से नया पानी भर ले और पेट भर खाकर आराम कर ले । लेकिन रामधन साफ़ ना बोल कर अपने साथियों से जल्दी चलने को कह देते हैं ।

अब टोली के कई नव जवानों को रामधन पर बहुत गुस्सा आता हैं और वे उसके समीप आकर अपना सारा गुस्सा निकाल देते हैं और पूछते हैं कि क्यूँ वे उन भले लोगों की बात नहीं सुन रहे और क्यूँ हम सभी पर जुल्म कर रहे हैं। तब रामधन मुस्कुराते हुए कहते हैं कि वे सभी लुटेरे हैं और हमसे अपना पानी फिकवा कर हमें निसहाय करके लूट लेना चाहते हैं और हमें यही मरने को छोड़ देना चाहते हैं । तब वे नव युवक गुस्से में दांत पिसते हुये कहते हैं कि सेठ जी तुम्हे ऐसा क्यूँ लगता हैं ? तब रामधन कहते हैं कि तुम खुद देखो, इस मरुस्थल में कितनी गर्मी हैं, क्या यहाँ आसपास कोई जंगल हो भी सकता हैं ,यहाँ की भूमि इतनी सूखी हैं कि दूर दूर तक बारिश ना होने का संकेत देती हैं। यहाँ एक परिंदे का घौसला तक नहीं तो फल फुल कैसे हो सकते हैं । और जरा निगाह उठाकर ऊपर देखो दूर-दूर तक कोई बारिश के बादल नहीं हैं, नवनीत ना ही हवा में बारिश की ठंडक हैं, ना ही गीली मिटटी की खुशबु,तो कैसे उन लोगों की बातों पर यकीन किया जा सकता हैं ? मेरी बात मानो कुछ भी हो जाये अपना पानी मत फेंकना और ना ही कहीं भी रुकना।

कुछ देर आगे चलने के बाद उन्हें रास्ते में कई नरकंकाल और टूटी फूटी बैलगाड़ी मिलती हैं । वे सभी कंकाल गणपत की टोली के लोगो के थे । उन में से एक भी नहीं बचा था । उनकी ऐसी दशा देख सभी रोने लगते हैं क्यूंकि वे सभी उन्ही के साथी थे । तब रामधन कहते हैं कि जरुर इन लोगों ने तुम्हारे जैसे ही इन लुटेरों को अपना साथी समझा होगा और इसका परिणाम यह हुआ, आज उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। रामधन सभी को ढाढस बंधाते हुये कहते हैं हम सभी को भी यहाँ से जल्दी निकलना होगा क्यूंकि वे सभी लुटेरे अभी भी हमारे पीछे हैं । प्रार्थना करो कि हम सभी सही सलामत यहाँ से निकल जाये ।
शिक्षा/
कहते हैं कि अनुभव की कंघी जब काम आती हैं जब सर पर कोई बाल नहीं बचता अर्थात अनुभव उम्र बीतने और जीवन जीने के बाद ही मिलता हैं । अनुभव कभी भी पूर्वजों की जागीर में नहीं मिलता। जैसे इस कहानी में नव जवानो में जोश तो बहुत था। लेकिन अनुभव की कंघी नहीं थी जो कि रामधन के पास थी जिसका उसने सही समय पर इस्तेमाल किया और विपत्ति से सभी को निकाल कर ले गया। शिक्षा यही हैं कि किसी काम को करने के लिये जोश के साथ अनुभव होना भी अत्यंत आवश्यक हैं ।



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