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Atal Bihari Vajpayee News: भारत के इतिहास के पहले नेता जिनका था विपक्ष भी कायल

Atal Bihari Vajpayee Bio (1924–2018): अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे। पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए। फिर दूसरी बार 1998 से 1999 तक 13 महीनों के लिए। फिर अंतिम बार 1999 से 2004 तक पूर्ण कार्यकाल के लिए।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 25 Dec 2024 9:06 AM IST (Updated on: 25 Dec 2024 9:06 AM IST)
Atal Bihari Vajpayee Biography Wiki in Hindi
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Atal Bihari Vajpayee Biography Wiki in Hindi 

Atal Bihari Vajpayee Bio in Hindi: अटल बिहारी वाजपेयी, भारतीय राजनीति के एक ऐसे महानायक थे जिन्होंने अपनी सोच, कार्यशैली और व्यक्तित्व से भारतीय लोकतंत्र को एक नई दिशा दी। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे। बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेताओं में शामिल हुए। अटल जी न केवल एक कुशल राजनेता बल्कि एक अद्वितीय कवि, विचारक और वक्ता भी थे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (Atal Bihari Vajpayee Ka Jivan Parichay (25 Dec 1924–16 Aug 2018)

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक शिक्षक और कवि थे। अटल जी ने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातक किया।


बाद में कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की। उनकी पढ़ाई के दौरान ही उनकी रुचि साहित्य और राजनीति में विकसित हुई।

राजनीतिक करियर का आरंभ (Atal Bihari Vajpayee Political Career)

अटल जी का राजनीतिक जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ाव के साथ शुरू हुआ।


1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद वे भारतीय जनसंघ में शामिल हुए, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में उभरी।


उनकी वाणी और वक्तृत्व कौशल ने उन्हें जल्दी ही एक लोकप्रिय नेता बना दिया। 1957 में वे पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए।

Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: अजातशत्रु थे हमारे ‘अटल जी’

सबसे बड़े कार्य और उपलब्धियां (Atal Bihari Vajpayee Achivements)

1. प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल

अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे। पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए। फिर दूसरी बार 1998 से 1999 तक 13 महीनों के लिए। फिर अंतिम बार 1999 से 2004 तक पूर्ण कार्यकाल के लिए। उनका कार्यकाल कई ऐतिहासिक निर्णयों और सुधारों के लिए जाना जाता है-

पोखरण परमाणु परीक्षण (1998): वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने पोखरण-II परमाणु परीक्षण किया, जिसने भारत को वैश्विक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया। इस कदम ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की स्थिति को मजबूत किया।


स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना: अटल जी के शासनकाल में इस महत्वाकांक्षी सड़क परियोजना की शुरुआत हुई, जो देश के चार प्रमुख महानगरों - दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ती है। यह भारत के बुनियादी ढांचे को बदलने वाला कदम था।

अर्थव्यवस्था के सुधार: 1991 के उदारीकरण के बाद, अटल जी ने आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाया और देश में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया। उन्होंने विनिवेश, निजीकरण और उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।


लाहौर बस यात्रा: वाजपेयी ने 1999 में पाकिस्तान के साथ शांति स्थापित करने के प्रयास में लाहौर यात्रा की। यह एक साहसिक कदम था जिसने भारत-पाक संबंधों में नई दिशा देने की कोशिश की। हालांकि, बाद में करगिल युद्ध ने इस प्रक्रिया को बाधित कर दिया।


2. कवि और साहित्यकार के रूप में योगदान

अटल जी का साहित्य और कविता से भी गहरा लगाव था। उनकी कविताएं उनके विचारों और भावनाओं का प्रतिबिंब हैं। उनकी कविताएं प्रेरणा, संघर्ष और आशा का संदेश देती हैं और आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएं इस प्रकार हैं:


"गीत नया गाता हूँ"

"हरिवंश का सपना"

"मौत से ठन गई"

विवाद और आलोचनाएं

अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन और करियर में कई विवाद भी आए (Atal Bihari Vajpayee Controversy)

गुजरात दंगे (2002): उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हुए। इसे लेकर उनकी काफी आलोचना हुई। हालांकि, उन्होंने सार्वजनिक रूप से तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से ‘राजधर्म’ निभाने का आग्रह किया था।

पाकिस्तान के साथ संबंध: लाहौर बस यात्रा और करगिल युद्ध के कारण उन्हें दोनों पक्षों से आलोचना झेलनी पड़ी। एक तरफ, कुछ ने उन्हें पाकिस्तान के प्रति ‘बहुत नरम’ बताया, तो दूसरी ओर, कुछ ने उनकी शांति वार्ता को ‘असफल’ कहा।


अर्थव्यवस्था की नीतियां: विपक्ष ने उनकी आर्थिक नीतियों को गरीब-विरोधी और निजीकरण समर्थक कहकर आलोचना की।

विपक्ष की राय और छवि

अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे विपक्षी नेताओं के बीच भी अत्यंत सम्मानित थे। कांग्रेसी नेता सोनिया गांधी ने उन्हें ‘भारत का महान नेता’ कहा था। वामपंथी नेताओं ने भी उनके नेतृत्व कौशल की प्रशंसा की। वे सभी पार्टियों के लिए ‘सर्वमान्य नेता’ थे।

अंतरराष्ट्रीय छवि

अटल जी की विदेश नीति ने भारत को वैश्विक मंच पर एक मजबूत स्थान दिलाया। उनकी दूरदर्शिता और साहसिक निर्णयों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति को मजबूती दी।


पोखरण परमाणु परीक्षण के बावजूद, उन्होंने अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे। उनकी भाषण शैली और शांत स्वभाव ने उन्हें वैश्विक नेताओं के बीच लोकप्रिय बनाया।

अटल जी के अनकहे किस्से (Atal Bihari Vajpayee Untold Story)

सरल स्वभाव: वाजपेयी जी अपनी सरलता और हास्यप्रियता के लिए जाने जाते थे। एक बार लोकसभा में उन्होंने कहा, "मैं पार्टी का मुखिया हूं, लेकिन सरकार में मेरी कोई नहीं सुनता।"

चाय पर चर्चा: वाजपेयी जी को चाय बहुत पसंद थी। कहते हैं कि उन्होंने कई बार विपक्षी नेताओं को चाय पर बुलाकर बड़े राजनीतिक विवाद सुलझाए।

साहसिक निर्णय: पोखरण परीक्षण के समय उन्होंने अपनी कैबिनेट के कुछ सदस्यों को भी अंतिम समय तक इसकी जानकारी नहीं दी थी। यह उनका साहस और रणनीतिक कौशल दर्शाता है।

भारत की राजनीतिक और सामाजिक यात्रा में कई ऐतिहासिक घटनाएँ और निर्णय महत्वपूर्ण रहे हैं, जो देश की दिशा और विकास को प्रभावित करने वाले रहे हैं। निम्नलिखित 10 फैसलों को विस्तार से समझाया गया है, जो भारत के समग्र विकास और उसके राजनीतिक-सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अहम भूमिका निभाते हैं।

1. भारत को जोड़ने की योजना

भारत की विविधता को देखते हुए, भारतीय शासन ने हमेशा इस तथ्य को स्वीकार किया कि देश को जोड़ने की योजनाएँ आवश्यक हैं। भारत में विभिन्न भाषाएँ, संस्कृतियाँ और धर्म हैं, जो कभी-कभी एकता की राह में रुकावट बन सकते हैं। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कई योजनाएँ बनाई गईं।


इनमें से एक महत्वपूर्ण योजना है "राष्ट्रीय एकता परिषद" का गठन और "सड़क, रेल और हवाई मार्गों का विस्तार"। इसके अलावा, संविधान में समावेशी नीति अपनाते हुए प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्रदान करने का प्रयास किया गया। इस प्रकार की योजनाओं ने भारत को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

2. निजीकरण को बढ़ावा-विनिवेश की शुरुआत

1990 के दशक की शुरुआत में भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक संकट का सामना किया गया। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय सरकार ने निजीकरण और विनिवेश की दिशा में कदम उठाए। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के नेतृत्व में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण और विदेशी निवेश को आकर्षित करना शामिल था।


इस नीति के अंतर्गत कई सरकारी कंपनियों को निजी कंपनियों को बेच दिया गया, जिससे अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और विकास की गति तेज हुई। हालांकि, इसके कुछ आलोचक भी थे जो इसे सामाजिक असमानताओं को बढ़ाने वाला मानते थे।

3. संचार क्रांति का दूसरा चरण

भारत में संचार क्रांति का पहला चरण 1990 के दशक में शुरू हुआ था। जब मोबाइल फोन और इंटरनेट की पहुँच देश में बढ़ी। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए, 2000 के दशक में संचार क्रांति का दूसरा चरण देखा गया, जिसमें टेलीफोन, इंटरनेट और ब्रॉडबैंड की पहुँच बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंची। इसके परिणामस्वरूप, सूचना और संचार तकनीक (ICT) के क्षेत्र में भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई। डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं ने देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और अन्य क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन आए।

4. सर्व शिक्षा अभियान

भारत में शिक्षा का अधिकार हमेशा एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा है, खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में। इस समस्या के समाधान के लिए, भारतीय सरकार ने 2001 में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की शुरुआत की। इसका उद्देश्य सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार देना था।


इसके तहत, बच्चों के लिए स्कूलों का निर्माण, शिक्षकों की भर्ती और शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए गए। इस अभियान ने देश में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के साथ-साथ प्रत्येक बच्चे को शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल किया।

5. पोखरण का परीक्षण

भारत ने 1998 में पोखरण के रेगिस्तान में परमाणु परीक्षण किए, जो विश्व में एक बड़ा संदेश था। यह परीक्षण भारत के परमाणु शक्ति के रूप में एक महत्वपूर्ण कदम था। भारत ने इसे "स्मiling Buddha" नामक पहले परमाणु परीक्षण के बाद किया था।इसके परिणामस्वरूप देश को अपनी सुरक्षा और स्वतंत्रता के प्रति विश्वास में वृद्धि हुई। हालांकि, इस परीक्षण ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ कुछ आर्थिक प्रतिबंधों को जन्म दिया।लेकिन यह भी देश की संप्रभुता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।

6. लाहौर-आगरा समिट और करगिल-कंधार की नाकामी

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को सुधारने की कोशिश में लाहौर और आगरा समिट आयोजित की गईं। 1999 में लाहौर समिट के बाद, दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने की उम्मीदें बढ़ी थीं। लेकिन 1999 में करगिल युद्ध ने इसे नाकाम कर दिया। इसके बाद, कंधार हाइजैकिंग घटना ने भारत-पाकिस्तान के संबंधों में और तनाव पैदा किया। इस समय को लेकर भारत की नीति में कई बदलाव आए, और दोनों देशों के रिश्तों में सतत संघर्ष बना रहा।

7. पोटा क़ानून

‘पोटा’ (Prevention of Terrorism Act) एक ऐसा कानून था, जिसे 2001 में भारत सरकार ने आतंकवाद से निपटने के लिए लागू किया था। यह क़ानून आतंकवादी गतिविधियों पर कड़ी कार्रवाई करने और आतंकवादियों को पकड़ने के लिए अधिक शक्तियाँ प्रदान करता था।


हालांकि, इस क़ानून के लागू होने पर इसे मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप भी झेलना पड़ा। विपक्ष ने इसे तानाशाही के रूप में देखा। 2004 में इस क़ानून को निरस्त कर दिया गया। लेकिन यह एक महत्वपूर्ण फैसला था जिसने भारत की आतंकवाद के प्रति नीति को प्रभावित किया।

8. संविधान समीक्षा आयोग का गठन

भारत के संविधान को समय-समय पर अद्यतन करने की आवश्यकता महसूस की गई, ताकि यह देश की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप हो सके। 2000 में, भारतीय सरकार ने संविधान समीक्षा आयोग का गठन किया, जिसे न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में स्थापित किया गया। इस आयोग ने संविधान में सुधारों के लिए सुझाव दिए, जैसे कि केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का पुनर्वितरण, न्यायपालिका में सुधार और राष्ट्रपति की शक्तियों में बदलाव। हालांकि, इन सुझावों को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया, लेकिन यह आयोग संविधान की प्रासंगिकता बनाए रखने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण था।

9. जातिवार जनगणना पर रोक

भारत में जातिवाद एक संवेदनशील और जटिल विषय रहा है। 2011 में, भारत सरकार ने जातिवार जनगणना के आयोजन की घोषणा की थी, जिससे यह जानने का प्रयास था कि विभिन्न जातियों का देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में कितना योगदान है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कई विवाद उत्पन्न हुए और इसे संवैधानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से संवेदनशील माना गया। इसके परिणामस्वरूप, जातिवार जनगणना पर रोक लगा दी गई और इस मुद्दे पर चर्चा और असहमति का दौर जारी रहा।

10. राजधर्म का पालन

‘राजधर्म’ वह नीति है जिसे भारत के शासकों को पालन करना चाहिए, जिसमें निष्पक्षता, धर्मनिरपेक्षता और न्यायसंगत शासन की भावना निहित है। यह शब्द भारतीय संविधान और राजनीति में महत्वपूर्ण है। इसका पालन भारतीय नेताओं पर लागू होता है। जब भी किसी सरकार पर यह आरोप लगता है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से नहीं कर रही, तो राजधर्म का पालन करने की बात की जाती है। यह न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में नैतिकता और जिम्मेदारी की ओर भी संकेत करता है।

ये 10 फैसले भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाएँ और निर्णय रहे हैं, जिन्होंने देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दिशा को प्रभावित किया। इन फैसलों ने भारतीय समाज को एक नए दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता जताई और विकास के विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव लाया।


2004 में राजनीति से संन्यास लेने के बाद भी अटल जी का प्रभाव भारतीय राजनीति पर बना रहा। 2015 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया। 16 अगस्त, 2018 को उनका निधन हो गया। लेकिन उनकी विरासत और योगदान आज भी भारतीय राजनीति और समाज में प्रेरणा का स्रोत हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी न केवल एक राजनेता थे, बल्कि वे एक विचारक, कवि और देशभक्त भी थे। उनका जीवन संघर्ष, सफलता और सेवा का प्रतीक है। उनकी दूरदर्शिता, नेतृत्व और मानवीय दृष्टिकोण ने उन्हें भारतीय राजनीति का ‘अटल’ स्तंभ बना दिया। उनका व्यक्तित्व और उनके विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा

प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।



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