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Baisakhi 2024: बैसाखी का इतिहास और महत्त्व क्या है, क्या हैं इसके पारम्परिक नियम

Baisakhi 2024: सिखों के प्रमुख त्योहारों में से एक बैसाखी आज यानि 13 अप्रैल को मनाई जा रही है। आइये जानते हैं इसका इतिहास और महत्त्व।

Shweta Srivastava
Published on: 13 April 2024 6:00 AM GMT (Updated on: 13 April 2024 6:00 AM GMT)
Baisakhi 2024
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Baisakhi 2024 (Image Credit-Social Media)

Baisakhi 2024: सिखों के प्रमुख त्योहारों में से एक बैसाखी, जिसे वैसाखी के नाम से भी जाना जाता है, पंजाब और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण फसल उत्सव है। जबकि बैसाखी पंजाब में बड़े पैमाने पर मनाया जाने वाला उत्सव है, ये सिख कैलेंडर वर्ष की शुरुआत का भी प्रतीक है। साथ ही पंजाब में हिंदू और सिख दोनों के लिए ये एक महत्वपूर्ण उत्सव है। ये हर साल 13 या 14 अप्रैल को होता है, जो पंजाबी किसानों के लिए फसल के मौसम की शुरुआत के साथ-साथ पारंपरिक बिक्रम कैलेंडर में नए साल का प्रतीक भी है।

बैसाखी का इतिहास और महत्त्व (Baisakhi 2024 History and Significance)

इस दिन लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनकर, लोक नृत्य करके और गीत गाकर इस विशेष दिन को मनाते हैं। वहीँ सिखों का ये बैसाखी उत्सव शानदार दावतों और पारंपरिक व्यंजनों की विविध श्रृंखला के बिना अधूरा है। ऐसे में कई पारम्परिक पकवान इस दिन बनाये जाते हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल बैसाखी शनिवार, 13 अप्रैल को है। आपको बता दें कि वैशाखी संक्रांति का क्षण रात 09:15 बजे होगा।

गौरतलब है कि बैसाखी का त्योहार ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। वहीँ कहा जाता है कि इस दिन 1699 में, सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने पंजाब के आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ (शुद्ध लोगों का समाज) का गठन किया था। उन्होंने अत्याचार और अन्याय से लड़ने के लिए समर्पित सैनिकों के समुदाय खालसा की स्थापना के लिए बैसाखी को चुना। उन्होंने ऊंची और निचली जातियों के बीच का भेद ख़त्म किया और कहा कि सभी मनुष्य समान हैं। इसके साथ ही सिख धर्म में गुरु परंपरा को अंततः समाप्त कर दिया गया और गुरु ग्रंथ साहिब को सिख धर्म का शाश्वत मार्गदर्शक माना गया।

वैसाखी पंजाब क्षेत्र में आस्था की परवाह किए बिना सभी पंजाबियों द्वारा मनाया जाने वाला एक ऐतिहासिक फसल उत्सव है। वैसाखी पंजाबियों, विशेषकर सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन होता है।

ये पवित्र त्योहार नव वर्ष की शुरुआत का भी प्रतीक है, जिसे किसान पारंपरिक रूप से फसल के मौसम की कड़ी मेहनत के बाद मनाते हैं। अपने पापों का प्रायश्चित करने और मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के लिए, लोग पवित्र गंगा नदी में स्नान करते हैं। बैसाखी फसल के मौसम और खालसा पंथ की स्थापना की याद में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उत्सव है। ये एक साथ सभी के इकट्ठा होने, प्रार्थना करने और प्यार और खुशी के साथ जश्न मनाने का भी समय है।

बैसाखी के दिन, लोग जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं और पारंपरिक बैसाखी जुलूस में शामिल होने से पहले प्रार्थना करने के लिए स्थानीय गुरुद्वारे (सिख मंदिर) जाते हैं। पंज प्यारे (पांच प्यारे) परेड का नेतृत्व करते हैं, जिसमें संगीत, गायन और लोक नृत्य शामिल होता है, साथ ही व्यक्ति प्रतिभागियों को भोजन और मिठाइयां पेश करते हैं।

पारंपरिक पंजाबी भोजन जैसे कढ़ी, मीठे पीले चावल, केसर फिरनी, कड़ा प्रसाद और अन्य इसे भव्य रूप से मनाने के लिए तैयार किए जाते हैं।

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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