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Best Motivational Story Hindi: आपका जीवन बदल देगी ये कहानी
Best Motivational Story Hindi: इस बार भी बिना डुबकी लगाए वापस निकल आए और फिर किनारे पर बैठ गए। तभी एक युवा संन्यासी ने आकर उनसे कहा कि आपको गुरुदेव ने बुलवाया है।
Best Motivational Story Hindi: एक पारिवारिक बड़े भाई पंडित हरभजन थे ,वे प्रारब्ध के कारण कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो गए। प्रातः मुंह अंधेरे गांव से निकल पड़े। इनके जाने की जानकारी किसी को नहीं थी। पूरा दिन खोजबीन की गई परंतु उनका कहीं कोई पता नहीं लगा। लगभग 3 माह तक उनकी खोजबीन की गई, परंतु निराशा ही हाथ लगी। गांव के बुजुर्गों तथा परिवारजनों ने मिलकर उन्हें मृत मान लिया और मृतक के निमित्त जो कर्म निर्धारित हैं उनकी तैयारी शुरू कर दी गई। तेरहवी के दिन एक हवन किया गया और ब्रह्मभोज शुरू कर दिया गया।
तभी एकाएक (हरभजन पंडित )मुख्य द्वार पर प्रकट हो गए। एक दो आदमी ही साहस जुटा पाए उनके पास जाने का। भैया कहां थे तुम ? इस तरह कहां और क्यों चले गए ? किसी ने कुछ भला बुरा तो नहीं कह दिया ? थोड़ी देर तक बड़ा विचित्र सा वातावरण बन गया। उन्होंने बताया कि किसी ने उनसे कुछ भी बुरा भला नहीं बोला। वे स्वयं ही अपने इस नारकीय जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे, तो बिना बताए उन्होंने आत्महत्या करने का इरादा कर लिया और पास के रेलवे स्टेशन पर इस काम के लिए प्रातः निकल गए। परंतु रेलगाड़ी से कटने का साहस नहीं जुटा पाए और दूसरी गाड़ी से हरिद्वार चले गए।
हरिद्वार जाकर काफी दिनों तक धर्मशाला में रहकर, मंदिरों में जाकर ,प्रभु से उन्होंने अपनी व्यथा निवेदन की और फिर गंगा में डूब कर अपनी जीवन लीला समाप्त करने का मन बना लिया। एक दिन एकांत सा जानकर गंगा में अंतिम प्रवेश का साहस किया, परंतु घर परिवार की याद आ गई और बिना स्नान किए बाहर निकल आए। कुछ देर किनारे पर बैठकर मनन किया कि यहां से लौटकर तो जाना ही नहीं है। फिर दुखी मन से गंगा में प्रवेश कर गए। इस बार कुछ और गहरे जल में चले गए ,परंतु गतिमान जल की हिलोरे जब वक्ष तक पहुंची तो मोह जागृत हो गया एवं गांव के लोग याद आने लगे कि एक बार और गांव हो आऊँ ।
इस बार भी बिना डुबकी लगाए वापस निकल आए, पुनः किनारे पर बैठ गए। तभी एक युवा संन्यासी ने आकर उनसे कहा कि आपको गुरुदेव ने बुलवाया है।
सन्यासी की बात सुनकर उन्हें हैरानी हुई कि यहां मुझे कौन जानता है? वह बिना कुछ बोले सन्यासी के पीछे पीछे चल पड़े,, कुछ दूरी पर ही पेड़ों के झुरमुट में एक छोटा सा किंतु मनोहर आश्रम था, वही एक कुर्सी नुमा आसन पर एक ओजस्वी वयोवृद्ध साधु विराजमान थे। उन्हें (हरभजन जी को) देखकर साधु बड़े स्नेह से मुस्कुराए और अपने पास बैठा कर बोले-मैं तुम्हीं को देख रहा हूं , तभी तुम्हें बुलाया है। हरभजन ,जिंदगी से ऊब गए हो क्या ?बिना भोले शंकर की इच्छा के जीवन त्याग ना चाहते हो?
अनजान साधु के मुंह से अपना नाम और उद्देश सुनकर हरभजन विस्मित थे। साधु ने फिर कुरेदा-नाम तो हर भजन (शिव का भजन करने वाला) परंतु काम कैसा घिनौना? हरभजन रो पड़े और बोले-इस नारकीय जीवन से छुटकारा पाना चाहता था। मां गंगा की गोद में समा जाना चाहता था। न जाने आपने क्यों मुझे बुला भेजा? साधु फिर बोले,पिछले जन्मों के कर्मों को अब तक इस रूप में भोग रहे हो और आत्महत्या-जैसा घिनौना कर्म करके अगले जन्म के लिए भी बुरा कर रहे हो-ना ,ना, ऐसा मत करना।
प्रारब्ध तो भोगना ही पड़ेगा। तुम्हारा जीवन अब बहुत अधिक शेष नहीं है, जब तक जीवन है, भगवान शंकर का ध्यान करते रहो, उन्हीं का नाम जपते रहो, तो शीघ्र ही तुम्हें इस जन्म से छुटकारा मिलेगा।
उन्होंने बताया कि साधु के शब्दों का मुझ पर न जाने कैसा जादू हुआ कि मैंने अपने घर लौटने का मन बना लिया। कुछ दिन उसी आश्रम में रहने के बाद साधु की चरण वंदना एवं स्वीकृति के बाद में अपने घर की ओर चला आया।
अपनी तेरहवी के बारे में जब उन्होंने जाना तो विचलित नहीं हुए। सभी लोगों को आश्वस्त किया कि उन्हें किसी से भी किसी प्रकार की शिकायत नहीं है और वह भगवान शिव की यथाशक्ति आराधना में लग गए ।उनके रोग में कुछ सुधार भी लोगों ने देखा ।और इस घटना के लगभग 2 माह बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया । धन्य है अनजाने साधु। और धन्य है भगवान शिव की भक्ति।
( लेखिका प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं ।)