Bhagavad Gita Gyan Hindi: श्रीमद्भगवद्गीता - प्रकृति की प्रतीति होती है क्रियाशील

Bhagavad Gita Gyan Hindi: विवेक के कारण स्त्री, पुत्र, धन, मान, बड़ाई आदि की प्राप्ति दीखती तो है, पर वास्तव में इनकी अप्राप्ति ही है।

Sankata Prasad Dwived
Published on: 8 Nov 2024 1:45 AM GMT (Updated on: 8 Nov 2024 1:45 AM GMT)
Bhagavad Gita Gyan Hindi
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Bhagavad Gita Gyan Hindi: जिसमें क्रिया नहीं है,वह नित्य प्राप्त है और जिसमें क्रिया है, वह कभी किसी को प्राप्त नहीं हुआ, प्राप्त है नहीं, प्राप्त होगा नहीं तथा प्राप्त हो सकता नहीं।तात्पर्य है कि क्रियाशील प्रकृति की प्रतीति तो होती है,पर प्राप्ति नहीं होती। सहज निवृत्ति की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?

अविवेक के कारण स्त्री, पुत्र, धन, मान, बड़ाई आदि की प्राप्ति दीखती तो है, पर वास्तव में इनकी अप्राप्ति ही है। कारण कि ये पहले भी अप्राप्त थे, पीछे भी अप्राप्त हो जायँगे तथा वर्तमान में भी ये हमारे से निरन्तर वियुक्त हो रहे हैं।

अतः इनकी निरन्तर निवृत्ति { सम्बन्ध-विच्छेद } है, प्राप्ति नहीं है।

तत्त्व की प्राप्ति भी स्वतःसिद्ध है और प्रकृति की निवृत्ति भी स्वतः- सिद्ध है ।

तत्त्व की प्राप्ति का नाम भी ‘योग’ है-

समत्वं योग उच्यते।

{ गीता २ | ४८ }

अर्थात् सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में रमते हुए सिर्फ़ कर्म करना ही योग कहलाता है।

और प्रकृति की निवृत्ति का नाम भी ‘योग’ है-

दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्।

{ गीता ६ | २३ }

अर्थात् जिसमें दुःखों के संयोग का ही वियोग है, उसी को 'योग' नाम से जानना चाहिये।

( वह योग जिस ध्यान योग का लक्ष्य है,)

उस ध्यान योग का अभ्यास न उकताये हुए चित्तसे निश्चय पूर्वक करना चाहिये।

इस प्रकार विवेक को प्रधानता देकर, अपनी विवेक शक्ति का उपयोग करके सहज निवृत्ति की निवृत्ति और स्वतः प्राप्ति की प्राप्ति स्वीकार करना करण निरपेक्ष साधन है |

( लेखक प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं ।)

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