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Bhagwat Geeta Gyan Hindi: भगवान श्रीकृष्ण दुष्कर्म करनेवालों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं?
Bhagwat Geeta Gyan Hindi: भगवान के अवतार का मुख्य कारण - धर्म की स्थापना है। धर्म की स्थापना के लिए सज्जनों की रक्षा जरूरी है ।
Bhagwat Geeta Gyan Hindi: भगवान श्रीकृष्ण भगवत् गीता के चौथे अध्याय के आठवें श्लोक में कहते हैं -
- परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
- धर्मसंस्थापनार्थय संभावामि युगे युगे।।
सरलार्थ - साधु पुरुषों (सज्जनों) का उद्धार करने के लिए एवं दुष्कर्म (पाप) कर्म करनेवालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में प्रकट होता हूं।
भगवान के अवतार का मुख्य कारण - धर्म की स्थापना है। धर्म की स्थापना के लिए सज्जनों की रक्षा जरूरी है ।
लेकिन केवल सज्जनों की रक्षा करने से धर्म की स्थापना नहीं होती। इसका दूसरा पहलू भी जरूरी होता है , जिसे भगवान ने " विनाशाय च दुष्कृताम् " के माध्यम से घोषित किया है। भगवान का भजन न करनेवाले एवं भगवान का आश्रय नहीं लेनेवाले मूढ़ , नराधम , जिनका ज्ञान माया के द्वारा हरा जा चुका है तथा आसुरी-भाव का आश्रय लेने वाले इन चार प्रकार के लोगों का विनाश भी जरूरी है , तभी धर्म की स्थापना हो सकती है।
इसे एक दृष्टांत से समझें। एक माली अपनी फुलवारी को सुंदर बनाए रखने के लिए आकर्षक , रंगीन एवं सुगंधित पुष्पों वाले पौधों की रोपाई और सिंचाई करता है।साथ-ही-साथ फुलवारी में अवांछित पौधों (झाड़-झंखाड़) को उखाड़ते भी रहता है , ताकि फुलवारी साफ-सुथरा बना रहे। यह दोनों कार्य एक साथ माली करता रहता है।
ठीक इसी प्रकार भगवान भी समाज को सुचारूरूप से चलाने के लिए सुकृतियों के संरक्षण के साथ-साथ दुष्कृतियों का विनाश भी करते रहते हैं।
भगवत् गीता के १६वें अध्याय में भगवान इसे और भी स्पष्ट करते हुए कहते हैं -
- तानहं द्विषत: क्रूरानसंसारेषु नराधमान्।
- क्षिपाम्यजस्मशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।
- आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
- मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्।।
अर्थ - उन द्वेष करनेवाले पापचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूं। हे अर्जुन ! वे मूढ़ मुझको न प्राप्त होकर जन्म-जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं , फिर उससे भी अति नीच गति को प्राप्त होते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की इसी वाणी का अवलंबन विश्व की समस्त न्यायपालिकाएं करती हैं। दुष्कर्म करने वालों को न्यायाधीश कारावास का दंड देते हैं तथा जघन्य दुष्कर्म करने पर अधमाधम व्यक्ति को मृत्यु-दंड भी देते हैं।
अतः "दुष्कृती" की श्रेणी में न जाकर स्वयं को "सुकृती" की श्रेणी में रखें - प्रभु ऐसा संदेश मानव-मात्र को दे रहे हैं।