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Bhagwat Geeta Quotes: श्री कृष्ण कहते हैं मनुष्य को अपने चंचल और अस्थिर मन को वश में रखना चाहिए
Bhagwat Geeta Quotes : भगवान् श्री कृष्ण द्वारा बताई ज्ञान की बातें आज भी मनुष्य के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी सालों पहले थीं। आइये एक नज़र डालते हैं भगवत गीता कोट्स पर।
Bhagwat Geeta Quotes: भगवान् श्री कृष्ण ने भगवत गीता में अर्जुन को ज्ञान की कई बातें बताईं जो हर मनुष्य के लिए जानना और समझना ज़रूरी है। आज हम आपके लिए भगवत गीता के उसी अथाह सागर से कुछ बूँदें लेकर आये हैं जो आपको भवसागर से पार करेगी और आपके जीवन में खुशियां और सफलता लेकर आएगी। आइये एक नज़र डालते हैं भगवत गीता कोट्स पर।
भगवत गीता कोट्स (Bhagwat Geeta Quotes)
तुम्हें कर्म करने का अधिकार है लेकिन कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। इसलिए कर्मफल के प्रति आसक्त हुए बिना अपना कर्म करें।
जिस प्रकार पानी में तैरती नांव को प्रचंड वायु दूर बहा ले जाती है। उसी प्रकार इंद्रियों का वेग भी मनुष्य की बुद्धि को हर लेता है।
न तो कर्म से विमुख होकर कोई कर्म के फल से छुटकारा पा सकता है और न ही केवल सन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
जो लोग ध्यान का दिखावा करते हैं जबकि वास्तव में वे मन में इंद्रियभोग का चिंतन करते रहते हैं। वह सबसे बड़े धूर्त हैं।
कर्म ना करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है क्योंकि कर्म के बिना तो शरीर निर्वाह भी नहीं हो सकता।
हे अर्जुन! जब भी और जहां भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती हैं तब तब मैं इस धरती पर अवतार लेता हूं।
भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूं।
जिस भी भाव से सारे लोग मेरी शरण में आते हैं उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूं।
जो व्यक्ति अपने कर्म फल के प्रति अनासक्त हैं और जो अपने कर्तव्य का पालन करता है वही असली सन्यासी और योगी हैं।
मनुष्य अपने मन का इस्तेमाल, अपनी प्रगति में करना चाहिए, ना कि अपने को नीचे गिराने में। क्योंकि मन आपका मित्र भी बन सकता है और शत्रु भी।
जिसने अपने मन को जीत लिया। उसके लिए वो सर्वश्रेष्ठ मित्र बन जाएगा लेकिन जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बन जाएगा।
हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है या पर्याप्त नहीं सोता है, उसके योगी बनने की कोई संभावना नहीं है।
मनुष्य को अपने चंचल और अस्थिर मन को वश में रखना चाहिए।
वास्तविक योगी समस्त जीवो में मुझको और मुझ में समस्त जीवो को देखता है।
जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझ में देखता है उसके लिए ना मैं कभी अदृश्य होता हूं और ना वह मेरे लिए कभी अदृश्य होता है।
हे अर्जुन! शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस जिस भाव का स्मरण करता है। वह उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त होता है।
यदि कोई प्रेम तथा भक्ति पूर्वक मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं।
ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है, ध्यान से भी श्रेष्ठ है कर्म फलों का परित्याग।
जो सुख-दुख में, भय तथा चिंता में समभाव रहता है वह मुझे अत्यंत प्रिय है।
हे अर्जुन! निर्भयता, आत्म शुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान का अनुशीलन, दान, आत्म संयम, यज्ञ परायणता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्य, क्रोध विहीनता, त्याग, शांति, समस्त जीवो पर दया, लोभ विहीनता, संकल्प, तेज, क्षमा, पवित्रता, ईर्ष्या तथा सम्मान की अभिलाषा से मुक्ति,- यह सारे दिव्य गुण हैं, जो देवतुल्य पुरुषों में पाए जाते हैं।
अहंकार, घमंड, अभिमान, क्रोध, कठोरता तथा अज्ञान यह आसुरी स्वभाव वालों के गुण हैं।
नरक के तीन द्वार है-काम, क्रोध और लोभ। प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को भी त्याग देना चाहिए, क्योंकि इनसे आत्मा का पतन होता है।
मनुष्य को सात्विक भोजन करना चाहिए, यह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है।
समस्त प्रकार के धर्म का परित्याग करो और मेरी शरण में चले आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। डरो मत।
मनुष्य को परिणाम की चिंता किए बगैर निस्वार्थ और निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
अपने जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए। न हीं भाग्य को दोष देना चाहिए।