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Bharat Ke Rashtrapati Ke Bodyguard: बेहद चौकन्ने और शार्प शूटर होते हैं भारत के राष्ट्रपति के अंगरक्षक, जानिए इनकी खूबियां

Bharat Ke Rashtrapati Ke Bodyguard: बेहद चौकन्ने और शार्प शूटर होते हैं भारत के राष्ट्रपति के अंगरक्षक, घोड़ों से होता है इनका गहरा नाता, जानिए इनकी खूबियां।

Jyotsna Singh
Published on: 28 Jan 2025 2:23 PM IST
Bharat Ke Rashtrapati Ke Bodyguard History
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Bharat Ke Rashtrapati Ke Bodyguard History 

Bharat Ke Rashtrapati Ke Bodyguard History: देश को समर्पित आयोजनों के दौरान राष्ट्रपति के साथ कदमताल मिलाते अंगरक्षकों का डीलडौल और उनका रौब देखते ही बनता है। चौकन्नी निगाहों के साथ अस्त्र से लैस ये अंगरक्षक घुड़सवारी में भी माहिर होते हैं। ये बहुत ही कठिन परीक्षाओं को पास कर यहां तक पहुंचने में सफल होते हैं। भारत के राष्ट्रपति के साथ मौजूद रहने वाले इन अंगरक्षकों को सामान्य तौर पर प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड कहा जाता है।हर साल गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस इन अवसरों पर दिल्ली के कर्तव्य पथ पर राष्ट्रपति द्वारा ही ध्वजारोहण कार्यक्रम संपन्न किया जाता है। राष्ट्रपति के अंगरक्षक भारतीय सेना में एक प्रतिष्ठित रेजिमेंट है, जिसका इतिहास बहुत समृद्ध है। यह भारत की तीनों सेना के अध्यक्ष यानी राष्ट्रपति की सुरक्षा करते हुए भारत की ताकत, अनुशासन और समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं। आपने हमेशा गणतंत्र दिवस के दिन, भारत के राष्ट्रपति के साथ अपने हमेशा उनके अंगरक्षकों को अपनी पारंपरिक वर्दी में पीछे खड़े देखा होगा।

प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड जिन्हें राष्ट्रपति के अंगरक्षक भी कहा जाता है, उनका इतिहास 250 वर्षों से भी पुराना है। राष्ट्रपति अंगरक्षक (प्रेसीडेंट बाडीगार्ड) यानी पीबीजी की स्थापना और इस रेजिमेंट की बहादुरी की कहानी में घोड़ों के साथ अटूट संबंध का एक असाधारण इतिहास है। राष्ट्रपति अंगरक्षक भारतीय सेना की वरिष्ठतम रेजिमेंट है। वर्ष 1773 में बंगाल के तत्कालीन गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने बनारस के राजा चेत सिंह द्वारा भेंट किए गए 50 घोड़ों से इसकी शुरुआत की। आइए जानते हैं राष्ट्रपति अंगरक्षक से जुड़े इतिहास के बारे में

बनारस के राजा चेत सिंह से जुड़ा है इसका इतिहास

President's Bodyguards (Image Credit-Social Media)

1773 में का भारतीय सेना में पीबीजी का गठन हुआ था और यह सबसे पुरानी और विशिष्ट घुड़सवार रेजिमेंट है। हालांकि, आजकल राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड्स केवल राष्ट्रीय समारोहों तक ही सीमित हो गए हैं। राष्ट्रपति के अंगरक्षक बल की स्थापना 1773 में बनारस के राजा चेत सिंह ने 50 घोडे़ और 50 सैनिक प्रदान करके की थी। 1947 के बाद, इस रेजिमेंट को दो भागों में बांट दिया गया था, जिसमें से आधे घोड़े और सैनिक भारत के गवर्नर जनरल के अंगरक्षक बन गए, जिन्हें राष्ट्रपति भवन में तैनात किया गया। शेष को पाकिस्तान भेज दिया गया था।

साल 1950 में इस रेजिमेंट को आधिकारिक तौर पर पीबीजी

President's Bodyguards (Image Credit-Social Media)


के रूप में नामित किया गया और आजतक इस रेजिमेंट ने अपनी विरासत को जारी रखा है। पीबीजी का पहला कर्तव्य भारत के राष्ट्रपति को सुरक्षा प्रदान करना है। वे सार्वजनिक कार्यक्रमों, आधिकारिक समारोहों और गणतंत्र दिवस की परेड के दौरान राष्ट्रपति की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं।

राष्ट्रपति के अंगरक्षकों में ये होती हैं खूबियां

राष्ट्रपति के अंगरक्षकों में शामिल हर सैनिक अपने खास सैन्य प्रशिक्षण के साथ ही बेहतरीन टैंक मैन, हॉर्समैन और पैराट्रूपर्स होता है। ये जवान कद में काफी लंबे, तगड़े और शरीर से काफी मजबूत और गठीली काठी के होते हैं। यही वजह है कि इनका व्यक्तित्व काफी रौबदार होता है। पदक और बैज से सजी हुई रेड और गोल्डन रंग की वर्दी इन्हें और भी अधिक आकर्षक बनाती है। स्वतंत्र दिवस या गणतंत्र दिवस के मौके पर ये जवान अपनी पारंपरिक वर्दी में लोगों के बीच खास आकर्षण का केंद्र होते हैं। इन खास मौकों पर ये प्रशिक्षित घोड़ों पर सवार होते हैं।

इस तरह होता है इनका चुनाव

President's Bodyguards (Image Credit-Social Media)

राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात पीबीजी के चुनाव की प्रक्रिया से गुजरना भी कोई आसान काम नहीं होता। इसमें शामिल होने के लिए सेलेक्शन प्रोसेस काफी कठिन होता है। पीबीजी यूनिट सेना की खास यूनिट जो राष्ट्रपति भवन में हमेशा मौजूद रहती है, इस प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स यूनिट में जाट, सिख और राजपूतों को हमेशा से प्राथमिकता दी जाती रही है। ये खासकर राजस्थान, हरियाणा और पंजाब से जुड़े होते हैं। इस यूनिट में शामिल होने के लिए लंबाई 6 फीट से ज्यादा मांगी जाती है। इस यूनिट में 4 ऑफिसर, 11 जेसीओ और 161 जवान होते हैं। प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स यूनिट में शामिल होने के लिए पहले जवानों को दो साल की कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। वे पूरे दो साल के प्रशिक्षण के बाद प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स यूनिट का हिस्सा बनने वाले जवान कमांडेंट के आगे अपनी तलवार सौंपते हैं और जिसकी तलवार को कमांडेंट छू लेता है, उसकी एंट्री हो जाती है। तलवार छूने का मतलब है कि अब से जवान का हथियार और उसकी जान समर्पित है। ये जवान पैराट्रूपिंग में माहिर होते हैं और वह बिना लगाम थामे 50 किलोमीटर की घुड़सवारी करने में अभ्यस्त होते हैं।

कई खास मौकों पर खरे उतरे हैं प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स

प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स रेजिमेंट को घुड़सवारी खेलों और पोलो में बेहतरीन प्रदर्शन करने पर दो अर्जुन पुरस्कार मिल चुके हैं।इसके अलावा प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स ने केवल राष्ट्रपति की सुरक्षा नहीं की, बल्कि आजादी के बाद के ऑपरेशनल सर्विस में भी शामिल हुए। 1962 में चीन-भारत संघर्ष के दौरान चुशूल में तैनात हुए। 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान ऑपरेशन अब्लेज में गदरा रोड पर तैनात थे।

घोड़ों से जुड़ा है प्रेसीडेंट बॉडीगार्ड्स का खास कनेक्शन

President's Bodyguards (Image Credit-Social Media)

गणतंत्र दिवस परेड, राष्ट्रपति के संसद को संबोधन, नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण तथा विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों के स्वागत में राष्ट्रपति अंगरक्षक सेरेमोनियल गार्ड की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पीबीजी के जवान भारतीय सेना के प्रशिक्षित सैनिक होते हैं और सभी सैन्य भूमिकाओं में भी समान रूप से सक्षम होते हैं। पीबीजी दुनिया में अनूठी रेजिमेंट होने का गौरव रखते हैं। पीबीजी की स्थापना की 250 वर्ष से भी अधिक समय हो चुका है। पीबीजी अपने लिए सर्वश्रेष्ठ घोड़ों का चयन सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) तथा हेमपुर (उत्तराखंड) में स्थित रिमाउंट ट्रेनिंग स्कूल और डिपो से करता है। इन घोड़ों का चयन कई मानकों पर होता है, जैसे परेड के घोड़ों की लंबाई न्यूनतम 157.5 सेमी. या 15 हाथ, रंग केवल भूरा (लालिमायुक्त भूरा) या गहरा भूरा हो। 500 किलोग्राम वजन के ये घोड़े लगभग 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं। यह रोचक तथ्य है कि भारतीय सेना में सिर्फ पीबीजी के घोड़ों को ही पूर्ण अयाल यानी लंबे बाल रखने की अनुमति है। चयन के बाद सभी घोड़ों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। घोड़े स्वभाव से बड़े संवेदनशील होते हैं। इसलिए प्रशिक्षण शुरू करने से पहले घोड़े और घुड़सवार में दोस्ती और विश्वास होना बहुत जरूरी है। इसके लिए घुड़सवार घोड़े के साथ लंबा समय बिताते हैं ताकि वे उसके स्वभाव को अच्छी तरह से समझ सकें। इस दोस्ती के बाद ही घोड़ा अपने सवार के निर्देश लेना सीखता है। पीबीजी जवानों द्वारा घोड़ों को प्रशिक्षण दिए जाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है।

घोड़े के साथ पीबीजी परेड ग्राउंड में होती है इनकी ट्रेनिंग

President's Bodyguards (Image Credit-Social Media)

सुबह के चार बजे घुड़सवार अपने घोड़े के साथ पीबीजी परेड ग्राउंड में ट्रेनिंग करते हैं। जहां प्रशिक्षण के तहत घोड़ों को एक सीध में परेड करना, तेज चलना और दौड़ना, विभिन्न करतब दिखाना और लंबे समय तक खड़े रहना सिखाया जाता है। भीड़ और हंगामे के लिए घोड़ों को तैयार करने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। अभ्यास के दौरान परेड मार्ग पर पटाखे फोड़े जाते हैं, ड्रम बजाया जाता है, कुछ देर के लिए लाउडस्पीकर पर संगीत बजाया जाता है। युवा घोड़ों को प्रशिक्षित करने के लिए उन्हें अनुभवी घोड़ों के बगल में रखा जाता है ताकि वे उनके नेतृत्व का पालन कर सकें। संकेत मानने पर उन्हें अनाज, गाजर और गुड़ जैसी उनकी पसंदीदा चीजों का उपहार दिया जाता है और पीठ थपथपाकर शाबाशी भी दी जाती है।

पीबीजी के सैनिकों और घोड़ों के बीच कायम हो जाता है एक विशेष रिश्ता

लगातार लंबे प्रशिक्षण के साथ पीबीजी के सैनिकों और घोड़ों के बीच एक विशेष बंधन कायम हो जाता है। यह बहुत ही भावनात्मक रिश्ता होता है। ये सैनिक किसी पारिवारिक सदस्य की भांति घोड़ों के स्वभाव और पसंद-नापसंद से वाकिफ हो जाते हैं। उन्हें घोड़ों को लेकर इस बात की जानकारी होती है कि कौन से घोड़े आपसे में मित्र हैं और किन दो घोड़ों की आपस में नहीं बनती। घोड़ों की आपसी ट्यूनिंग को समझते हुए उन्हें परेड में एक रखा जाता है। सिर्फ यही नहीं इनमें से यदि कोई घोड़ा बीमार हो जाता है तो उसकी बेहतरीन तरीके से से स्वास्थ का लाभ रखते हुए इन घोड़ों के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना भी करते हैं। इन घोड़ों की चिकित्सा और स्वास्थ से जुड़ी देखभाल पीबीजी से संबद्ध 44 सैन्य पशु चिकित्सा अस्पताल द्वारा की जाती है।

President's Bodyguards (Image Credit-Social Media)

ये घोड़े पोलो में भी होते हैं माहिर

पीबीजी की टोली में शामिल घोड़े पोलो में भी माहिर होते हैं। राष्ट्रपति भवन परेड ग्राउंड में हर साल ‘राष्ट्रपति पोलो कप प्रदर्शनी मैच’ का आयोजन किया जाता है जिसमें पीबीजी समेत पोलो की कई टीमें भाग लेती हैं। विजेता टीम को स्वयं राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जाता है।वहीं सेरेमोनियल कार्यक्रमों में इनकी खास भूमिका देखी जा सकती है। महात्मा गांधी की हत्या के बाद, उनकी अंतिम यात्रा की बिड़ला हाउस से राजघाट तक एस्कार्ट की जिम्मेदारी भी राष्ट्रपति अंगरक्षक को दी गई थी। इस दौरान घुड़सवार महात्मा गांधी के पार्थिव शरीर की यात्रा का हजारों लोगों की भीड़ के बीच नेतृत्व कर रहे थे।

अब तक तोहफे में मिल चुके हैं कई नस्ली घोड़े

बीते समय में भारतीय राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अन्य देशों से उपहार के रूप में कई ऊंची नस्लों के घोड़े भी मिल चुके हैं। इन घोड़ों की देखभाल पीबीजी द्वारा ही की जिम्मेदारी होती है। वर्ष 1980 में आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम फ्रेजर ने राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को उपहार में पोडार्गे नामक अरब स्टालियन घोड़ा भेंट किया था। 15 हाथ से अधिक लंबा पोडार्गे पीबीजी के सभी मानकों पर उत्तीर्ण हुआ और आगे चलकर ग्रे रेजिमेंटल ट्रंपेटर का माउंट बन गया। वर्ष 1982 में सऊदी अरब के राजा ने अरबी नस्ल के घोड़ों की जोड़ी नादरा और नबरास तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भेंट किए थे, जो बाद में राष्ट्रपति की विशेष अंगरक्षक टीम पीबीजी में शामिल कर लिए गए थे।पीबीजी के पास वर्तमान में लगभग 100 घोड़े हैं। कुछ चुनकर लाए गए तो कुछ तोहफे में मिले।इनको मुख्य तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा गया है- परेड ट्रूपर्स, पोलो पोनी और कोच हार्सेज (प्रेसिडेंशियल बग्गी ले जाने वाले घोड़े)। पीबीजी के लिए घोड़े रिमाउंट वेटरनरी कार्प्स से आते हैं, जो उनके ब्रीडिंग और ट्रेनिंग के लिए जिम्मेदार होते हैं। यह, दुनिया में पशुपालन की सबसे बड़ी संस्थाओं में से एक है, जो आवश्यकता के आधार पर सेना की विभिन्न इकाइयों को घोड़े आवंटित करती है।



Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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