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Lata Mangeshkar Life History: लता मंगेशकर जिनके गीत ने पंडित नेहरू को भी रोने पर विवश कर दिया, आइए जानते हैं स्वर कोकिला के जीवन को

Lata Mangeshkar Ji Ki Kahanai: आज भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर की तीसरी पुण्यतिथि है। इस मौके पर जानते हैं उनके बारे में खास बातें।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 6 Feb 2025 12:07 PM IST
Bharat Ki Famous Singer Lata Mangeshkar Life History
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Bharat Ki Famous Singer Lata Mangeshkar Life History

Bharat Ki Famous Singer Lata Mangeshkar Life History: भारतीय संगीत जगत (Indian Music World) में यदि किसी एक आवाज़ ने सात दशकों तक श्रोताओं के दिलों पर राज किया, तो वह थी लता मंगेशकर की आवाज़। उन्हें ‘स्वर कोकिला’ (Swar Kokila) कहा जाता था, और उनकी मधुर आवाज ने न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व में संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया। लता मंगेशकर का जीवन संगीत की साधना और समर्पण का अनुपम उदाहरण है।

लता मंगेशकर के बारे में (Lata Mangeshkar Biography In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता, पंडित दीनानाथ मंगेशकर, एक प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायक और नाट्य कलाकार थे। उनकी माता, शेवांति मंगेशकर, एक सरल और संस्कारी गृहिणी थीं। लता जी अपने माता-पिता की पहली संतान थीं और उनके बाद उनके चार और भाई-बहन हुए- आशा भोंसले, उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर, और हृदयनाथ मंगेशकर।

बचपन में उनका नाम हेमा रखा गया था, लेकिन बाद में उनके पिता ने उनका नाम लता कर दिया। माबचपन से ही लता जी का रुझान संगीत की ओर था। उनके पिता ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी। मात्र पाँच वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपने पिता के संगीत नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया था। लेकिन उनकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ तब आया जब 1942 में उनके पिता का असमय निधन हो गया। उस समय लता जी मात्र 13 वर्ष की थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई थी, और इस कारण उन्होंने फिल्मों में पार्श्वगायन शुरू किया। उन्होंने मराठी फिल्मों में छोटे-मोटे अभिनय और गायन से करियर की शुरुआत की और पहली बार पहिली मंगला गौर फिल्म में गाने के लिए 300 रुपये मिले

संगीत करियर की शुरुआत (Lata Mangeshkar Music Career)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लता मंगेशकर ने 1942 में पहली बार मराठी फिल्म "कीति हसाल" में गाना गाया था, लेकिन यह गाना फिल्म में शामिल नहीं किया गया। उनका पहला आधिकारिक गाना 1942 में ही मराठी फिल्म "पहली मंगला-गौर" के लिए था, जिसका शीर्षक था "नाचू या गडे, खेलू सारी मणि हौस भारी"।

इसके बाद लता जी ने हिंदी फिल्मों में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष किया। शुरुआती दिनों में उन्हें नूरजहाँ और शमशाद बेगम जैसी गायिकाओं की छाया में रहना पड़ा। लता जी के संघर्ष के दिनों में उनकी पतली आवाज़ को लेकर कई म्यूजिक डायरेक्टर्स ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया, लेकिन आएगा आने वाला (1949) गाने के बाद उनकी पहचान बन गई। खासतौर पर नूरजहां के पाकिस्तान चले जाने के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लता जी की आवाज़ का जादू छाने लगा। संगीतकार गुलाम हैदर उनके गॉडफादर माने जाते हैं, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें पहला बड़ा ब्रेक दिलाया।

बहन के लिए कुर्बान की स्कूल की पढ़ाई लता दीदी अपने भाई-बहनों से बहुत प्यार करती थीं। बहन आशा भोसले के लिए उन्होंने पढ़ाई तक त्याग दी थी। दरअसल, लता दीदी और आशा भोसले एक ही स्कूल में पढ़ने जा रही थीं। स्कूल में पढ़ने के लिए दोनों की अलग अलग फीस देनी थी। घर की हालत ठीक नहीं थी जिसकी वजह से लता दीदी ने अपना नाम कटवा लिया। वो सिर्फ 2 दिन ही स्कूल जा पाई थीं।

स्वर्णिम युग और प्रसिद्धि

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1950 और 1960 के दशक लता मंगेशकर के करियर के स्वर्णिम युग माने जाते हैं। इस दौरान उन्होंने शंकर-जयकिशन, एस.डी. बर्मन, मदन मोहन, नौशाद, रोशन, सलिल चौधरी, और सी. रामचंद्र जैसे महान संगीतकारों के साथ काम किया।

उनके कुछ यादगार गीत इस प्रकार हैं:

"प्यार किया तो डरना क्या" (मुगल-ए-आज़म, 1960)

"अजी रूठ कर अब कहाँ जाइएगा" (आरज़ू, 1965)

"मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे" (मुगल-ए-आज़म, 1960)

"लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो ना हो" (वो कौन थी, 1964)

"ए मेरे वतन के लोगों" (1963, विशेष रूप से नेहरू जी के लिए गाया गया)

लता जी की आवाज़ इतनी सुरीली और भावनाओं से भरी होती थी कि वह सीधे दिलों को छू जाती थी।

1970-1990: नए प्रयोग और उन्नति

इस दौर में लता मंगेशकर ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन, और बप्पी लहरी जैसे संगीतकारों के साथ काम किया। इस समय में उन्होंने कई नए प्रयोग किए और युवा पीढ़ी के संगीतकारों के साथ भी तालमेल बैठाया।

उनके कुछ प्रमुख गीत:

"सुन साहिबा सुन" (राम तेरी गंगा मैली, 1985)

"आज फिर जीने की तमन्ना है" (गाइड, 1965)

"दिल तो पागल है" (दिल तो पागल है, 1997)

"तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं" (आंधी, 1975)

लता जी की आवाज़ में वही मधुरता और भावनात्मक गहराई बनी रही।

2000 के बाद का दौर

2000 के दशक में लता मंगेशकर ने धीरे-धीरे पार्श्वगायन से दूरी बनानी शुरू कर दी। उन्होंने केवल चुनिंदा गीत गाए। 2001 में, उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" प्रदान किया गया। यह भारतीय संगीत जगत के लिए गौरव का क्षण था।

लता मंगेशकर ने 2004 में अपनी आखिरी हिंदी फिल्म "वीर-ज़ारा" के लिए गाना गाया। इसके बाद उन्होंने केवल भक्ति गीत और विशेष अवसरों के लिए ही गाने गाए।

लता मंगेशकर से जुड़ी अनकही बातें (Lata Mangeshkar Interesting Facts In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1- लता मंगेशकर को 1959 में पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला, लेकिन उन्होंने इसे लेने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें ट्रॉफी का डिज़ाइन पसंद नहीं था। बाद में उनके कहने पर ट्रॉफी को ढककर दिया गया। 1973 में उन्हें पहला नेशनल अवॉर्ड भी मिला। अपने करियर के दौरान उन्होंने 50,000 से अधिक गाने गाए और गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में उनका नाम दर्ज हुआ।

2- लता दीदी ने कई गाने गाए, लेकिन कभी भी उन्होंने खुद का गाना ना फिल्मी पर्दे पर देखा और ना ही सुना। उनका मानना था कि वो सुनने के बाद खुद के गाए गाने में कमी निकाल देंगी।

3- लता जी को सादगी बेहद पसंद थी। वे अधिकतर सफेद साड़ी पहनती थीं, जो उनकी पहचान बन गई। हालांकि, उन्हें हमेशा इस बात का मलाल रहा कि वे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण शास्त्रीय गायिका नहीं बन पाईं। उन्होंने सिंगर्स के रॉयल्टी अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी, जिससे उनकी मोहम्मद रफी से अनबन हो गई थी।

4- उनके जीवन में कई दिलचस्प घटनाएं हुईं। जब वे 33 साल की थीं, तब किसी ने उन्हें ज़हर देने की कोशिश की थी, जिससे वे तीन महीने तक बिस्तर पर रहीं। उस समय मजरूह सुल्तानपुरी ने उनका हौसला बढ़ाया। 1963 में जब उन्होंने ए मेरे वतन के लोगों गाया, तो पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए। एक और रोचक घटना तब हुई जब दिलीप कुमार ने उनकी उर्दू उच्चारण की आलोचना की, जिसके बाद उन्होंने उर्दू भाषा को गंभीरता से सीखा।

5- लता मंगेशकर की आवाज़ में वह दर्द था, जिसने हर सुनने वाले को भावुक कर दिया, यहां तक कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी अपने आंसू नहीं रोक पाए। यह घटना 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद की है, जब देशभर में हताशा का माहौल था। ऐसे कठिन समय में 26 जनवरी 1963 को लता जी से अनुरोध किया गया कि वे "ए मेरे वतन के लोगों" गीत को अपनी आवाज़ दें। समय कम था, लेकिन उन्होंने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया।

6- फ्लाइट में सफर के दौरान ही उन्होंने टेप रिकॉर्डर पर गाने को बार-बार सुनकर अभ्यास किया। जब उन्होंने इसे अपने मधुर स्वर में प्रस्तुत किया, तो कार्यक्रम में मौजूद हर व्यक्ति की आंखें नम हो गईं। पंडित नेहरू भी गहराई से प्रभावित हुए।

7- गाना समाप्त होने के बाद महबूब खान लता जी के पास आए और कहा, "लता, पंडित जी तुम्हें बुला रहे हैं।" इसके बाद लता जी की मुलाकात पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और अन्य वरिष्ठ नेताओं से हुई।

8- भावुक पंडित नेहरू ने लता जी से कहा, "बेटी, तुमने आज मुझे रुला दिया। मैं घर जा रहा हूं, तुम भी साथ आओ और मेरे साथ चाय पियो।" लता जी उनके साथ चली गईं और एक कोने में बैठ गईं। तभी इंदिरा गांधी उनके पास आईं और मुस्कुराते हुए बोलीं, "मुझे आपको दो लोगों से मिलवाना है, जो आपके सच्चे प्रशंसक हैं और आपसे मिलने के लिए उत्सुक हैं।" फिर वे अपने बेटों, राजीव और संजय गांधी के साथ लौटीं और कहा, "ये दोनों आपके बहुत बड़े फैन हैं!"

9- 1974 में लता मंगेशकर रॉयल अल्बर्ट हॉल, लंदन में परफॉर्म करने वाली पहली भारतीय महिला सिंगर बनीं। उनके पिता ने भविष्यवाणी की थी कि वे कभी शादी नहीं करेंगी, और यह सच भी हुआ।

10- सिंगिंग के अलावा लता दीदी ने समाज सेवा का भी काम किया। 1989 में लता दीदी ने लता मंगेशकर फाउंडेशन की शुरुआत की थी। इस फाउंडेशन के जरिए वो पुणे में अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के नाम पर अस्पताल बनवाया था, जो 6 एकड़ में फैला हुआ है।

लता मंगेशकर के नाम पर भी नागपुर, महाराष्ट्र में एक अस्पताल है। इसकी स्थापना 1991 में की गई थी। लता मंगेशकर सिर्फ एक गायिका नहीं, बल्कि भारतीय संगीत की आत्मा थीं। उनकी आवाज़ आने वाली कई पीढ़ियों तक अमर रहेगी।

जनवरी 2022 में लता मंगेशकर को कोरोना संक्रमण हुआ, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ गई। उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद 6 फरवरी 2022 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन पर पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश-विदेश की तमाम हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

लता मंगेशकर का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ शिवाजी पार्क, मुंबई में किया गया। उनकी स्मृति में कई संगीत समारोह आयोजित किए गए, और उनकी विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा रहा है।

लता मंगेशकर केवल एक गायिका नहीं, बल्कि भारतीय संगीत का एक अभिन्न हिस्सा थीं। उनकी सुरीली आवाज़ ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया और उनका योगदान अमर रहेगा। उनकी गायकी की विरासत हमेशा जीवंत बनी रहेगी और आने वाले समय में भी लोग उनके गीतों को उतनी ही श्रद्धा और प्रेम से सुनते रहेंगे।

लता जी ने हमें सिखाया कि समर्पण, मेहनत और सच्चे लगाव से कोई भी व्यक्ति सफलता के शिखर तक पहुंच सकता है। वे हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी। ‘स्वर कोकिला’ को श्रद्धांजलि!

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Shreya

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