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Mahan Krantikari Mahila: नीरा आर्या, एक क्रांतिकारी महिला की अनसुनी कहानी, जिसने देश के लिए अपने पति की हत्या कर दी

Mahan Krantikari Mahila Neera Arya: नीरा का जीवन तब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचा जब उनकी शादी ब्रिटिश भारतीय सेना के अधिकारी एस.एस. सूद से हुई। यह विवाह शुरू में दो विपरीत विचारधाराओं वाले व्यक्तियों का मिलन प्रतीत होता था।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 24 Jan 2025 4:10 PM IST
Bharat Ki Mahan Krantikari Mahila Jasoos Neera Arya Life Story History
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Bharat Ki Mahan Krantikari Mahila Jasoos Neera Arya Life Story History 

Krantikari Mahila Neera Arya Life Story: नीरा आर्या, एक ऐसा नाम जो साहस, बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों में से एक है। उनकी कहानी असाधारण बहादुरी, अडिग संकल्प और भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की कहानी है। नीरा आर्या, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वह महान नायिका थीं, जिन्होंने कम उम्र में आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजीमेंट में सिपाही के रूप में शामिल होकर अपने साहस और बलिदान से इतिहास रच दिया। उन्हें अंग्रेजों की जासूसी का काम सौंपा गया था। निर्देश था कि यदि अंग्रेजों की पकड़ में आ जाएं, तो बिना संकोच खुद को गोली मारकर शहीद हो जाएं। वे हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली और अन्य भारतीय भाषाओं की जानकार थीं।

नीरा आर्या का जन्म 5 मार्च,1902 को आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में एक संपन्न परिवार में हुआ था। हालांकि वे एक समृद्ध परिवार में पैदा हुई थीं, उनका पालन-पोषण देशभक्ति और न्याय की भावना के साथ हुआ, जिसे उनके माता-पिता ने उनके भीतर डाला। उनके पिता, एक धनी व्यापारी, स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखते थे, जो उनके बचपन के दौरान पूरे भारत में गति पकड़ रहा था।

कम उम्र से ही, नीरा ने एक स्वतंत्र और निर्भीक आत्मा के संकेत दिखाए। वे पढ़ाई में उत्कृष्ट थीं। इतिहास, साहित्य और राजनीति में गहरी रुचि रखती थीं। उनकी शिक्षा ने उन्हें ब्रिटिश शासन की दमनकारी प्रकृति के बारे में व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया। अपने आसपास हो रहे अन्याय और शोषण को देखकर, वे स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने के लिए दृढ़ संकल्पित हो गईं।

विवाह और जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़

नीरा का जीवन तब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचा जब उनकी शादी ब्रिटिश भारतीय सेना के अधिकारी एस.एस. सूद से हुई। यह विवाह शुरू में दो विपरीत विचारधाराओं वाले व्यक्तियों का मिलन प्रतीत होता था। लेकिन जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि भारत की स्वतंत्रता के प्रति नीरा की अडिग प्रतिबद्धता उनके रिश्ते में दरार पैदा करेगी। उनके पति, जो ब्रिटिश प्रशासन के प्रति वफादार थे, उनके क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने का विरोध करते थे।


1940 के दशक में, जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ एक शक्तिशाली बल बन गई, तब नीरा का जीवन एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ गया। स्वतंत्रता के प्रति उनका जुनून उन्हें आईएनए की ओर खींच ले गया, जहां उन्होंने ब्रिटिश नियंत्रण को अस्थिर करने के उद्देश्य से विभिन्न अभियानों में सक्रिय रूप से भाग लिया। उनके पति के बार-बार मना करने के बावजूद, वे अपनी मान्यताओं पर अडिग रहीं।

भारतीय राष्ट्रीय सेना में भूमिका

नीरा आर्या का आईएनए से जुड़ना उनके जीवन का एक परिवर्तनकारी चरण था। वे रानी झांसी रेजिमेंट, जो कि सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित एक महिला-केन्द्रित इकाई थी, में शामिल होने वाली कुछ महिलाओं में से एक थीं। इस रेजिमेंट का नाम रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा गया था, जो वीरता और प्रतिरोध का प्रतीक थीं। इसका उद्देश्य महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए सशक्त बनाना था।

आईएनए के सदस्य के रूप में, नीरा ने युद्ध कौशल, जासूसी और गुरिल्ला युद्ध में कठोर प्रशिक्षण लिया। उन्होंने कई गुप्त अभियानों में भाग लिया, अक्सर अपनी जान जोखिम में डालकर खुफिया जानकारी जुटाई और ब्रिटिश सैन्य प्रयासों को कमजोर किया। उनकी बहादुरी और समर्पण ने उनके साथियों और वरिष्ठ अधिकारियों, जिनमें खुद सुभाष चंद्र बोस भी शामिल थे, का सम्मान अर्जित किया।


नीरा आर्या के पति श्रीकांत जयरंजन दास ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर थे और अंग्रेजों के प्रति पूर्ण वफादार थे। अंग्रेजों ने उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हत्या का जिम्मा सौंपा। जयरंजन दास एक गुप्त मिशन पर नेताजी के पास पहुंचे और उन्हें मारने की कोशिश करने लगे।

वह घटना जिसने उनकी विरासत को परिभाषित किया

नीरा आर्या के जीवन का सबसे परिभाषित क्षण वह था, जब उन पर अपने पति की हत्या का आरोप लगाया गया। ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, नीरा के पति एस.एस. सूद ने उनके आईएनए के साथ जुड़ाव को उजागर करने की धमकी दी थी। एक कठिन स्थिति में, जहां उन्हें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य और अपने पति के प्रति वफादारी के बीच चयन करना था, नीरा ने देश को चुना। जब नीरा आर्या ने अपने पति को नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर हमला करने की कोशिश करते देखा, तो उन्होंने तुरंत निर्णय लिया। उन्होंने अपनी संगीन से अपने पति श्रीकांत जयरंजन दास के पेट में वार कर उनकी हत्या कर दी और नेताजी की जान बचा ली। उनकी इस वीरता और बलिदान से नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी दंग रह गए।


एस.एस. सूद की मृत्यु के आसपास की परिस्थितियां अब भी रहस्य में हैं, जिनके बारे में परस्पर विरोधी कथाएं हैं। कुछ विवरण बताते हैं कि नीरा ने आत्मरक्षा में अपने पति को चाकू मार दिया, जबकि अन्य दावा करते हैं कि यह आईएनए के रहस्यों की रक्षा के लिए एक सोचा-समझा कदम था। जो भी हो, इस घटना ने नीरा की प्रतिष्ठा को एक ऐसे क्रांतिकारी के रूप में स्थापित कर दिया जो अपने राष्ट्र के लिए अंतिम बलिदान देने को तैयार थी।

कैद और संघर्ष

अपने पति की मृत्यु के बाद, नीरा को ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया और जेल में गंभीर यातनाएं दी गईं। अमानवीय परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने आईएनए की गतिविधियों के बारे में कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया। उनकी दृढ़ता और अपने साथियों के साथ विश्वासघात न करने की उनकी प्रतिबद्धता उनके अटूट साहस का प्रमाण बन गई।


नीरा ने कई साल जेल में बिताए, जहां उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाओं का सामना करना पड़ा। उनकी कैद ने ब्रिटिश दमनकारी तरीकों को उजागर किया और यह भी दिखाया कि नीरा जैसे क्रांतिकारी स्वतंत्रता के लिए किस हद तक जाने को तैयार थे।

स्वतंत्रता के बाद का जीवन

1947 में भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की।लेकिन नीरा आर्या के लिए औपनिवेशिक शासन के अंत ने न तो व्यक्तिगत खुशी लाई और न ही मान्यता। अन्य कई स्वतंत्रता सेनानियों की तरह, उन्हें इतिहास के पन्नों में काफी हद तक भुला दिया गया। उन्होंने हैदराबाद में एक शांत और साधारण जीवन जिया, सार्वजनिक दृष्टि से दूर अपने अतीत के घावों के साथ संघर्ष किया।

अपने बलिदानों के बावजूद, नीरा को सरकार से बहुत कम मान्यता या समर्थन मिला। उन्होंने अपने जीवन के बाद के वर्षों में अपने अनुभवों को लोगों को सुनाया, यह उम्मीद करते हुए कि उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी।1947 में भारत की आजादी के बाद नीरा आर्या को रिहा कर दिया गया।लेकिन उनका जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। उन्होंने हैदराबाद में फूल बेचकर अपना जीवनयापन किया। 26 जुलाई, 1998 को चारमीनार के पास एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। लेकिन एक ऐसी विरासत छोड़ गईं जिसे कहीं अधिक पहचान की आवश्यकता थी।


नीरा आर्या का जीवन उन अनगिनत गुमनाम नायकों की याद दिलाता है जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया। उनकी कहानी बलिदान, दृढ़ता और न्याय और समानता के लिए लड़ाई की भावना को दर्शाती है। आईएनए और रानी झांसी रेजिमेंट की सदस्य के रूप में, उन्होंने सामाजिक मानदंडों को तोड़ा और दिखाया कि महिलाएं स्वतंत्रता संग्राम में समान भागीदार हो सकती हैं।

हाल के वर्षों में, नीरा की विरासत को पुनर्जीवित करने और यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए गए हैं कि उनके योगदान को भुलाया न जाए। स्कूल, संस्थान और संगठन उनकी कहानी को अपने पाठ्यक्रम और कार्यक्रमों में शामिल करने लगे हैं, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को उजागर किया जा सके।


नीरा आर्या की यात्रा दृढ़ विश्वास और उन लोगों की अजेय भावना का प्रमाण है जो अन्याय का विरोध करने का साहस करते हैं। उनके बलिदान और भारत की स्वतंत्रता के लिए योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी कहानी को याद करके और सम्मानित करके, हम न केवल उनके साहस को श्रद्धांजलि देते हैं बल्कि स्वतंत्रता, समानता और न्याय के उन आदर्शों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी पुनः सुनिश्चित करते हैं, जिनके लिए उन्होंने इतनी निष्ठा से संघर्ष किया।



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