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Bhopal Ke Akhiri Shashak: नवाब हमीदुल्लाह खान, भोपाल रियासत के अंतिम शासक का जीवन परिचय
Nawab Hamidullah Khan Wikipedia: नवाब हमीदुल्लाह खान भोपाल रियासत के आखिरी शासक थे। उनके वंशजों में प्रसिद्ध क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी और अभिनेता सैफ अली खान शामिल हैं। आइए जानें उनके जीवन के बारे में।
Bhopal Ke Antim Shasak Nawab Hamidullah Khan: नवाब हमीदुल्लाह खान का जन्म 9 सितंबर 1894 को भोपाल रियासत (Bhopal Riyasat) में हुआ था। वे नवाब सुल्तान जहाँ बेगम के पुत्र थे, जो स्वयं एक शक्तिशाली और दूरदर्शी शासिका थीं। हमीदुल्लाह खान का पालन-पोषण शाही माहौल में हुआ और उन्हें प्रशासन, राजनीति और सैन्य विषयों की गहरी शिक्षा दी गई। वे भोपाल की तत्कालीन शासिका सुल्तान जहां बेगम (Sultan Jahan Begum) के पुत्र थे। प्रारंभिक शिक्षा मोहम्मद एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना) से प्राप्त की और 1905 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। 1915 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की।
1912 में, जब उनकी माता नवाब सुल्तान जहाँ बेगम का निधन हुआ, तो हमीदुल्लाह खान भोपाल के नवाब (Bhopal Nawab) बने। वे अपने प्रशासनिक कौशल और रणनीतिक दूरदृष्टि के लिए जाने जाते थे। उनके शासनकाल के दौरान भोपाल ने कई आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति देखी। उन्होंने अपनी सरकार में शिक्षा, चिकित्सा और बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया।
ब्रिटिश सरकार के साथ संबंध (Hamidullah Khan And British Government Relation)
नवाब हमीदुल्लाह खान ब्रिटिश सरकार के वफादार माने जाते थे। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश नीतियों के समर्थक थे और द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार को सैन्य सहयोग भी दिया। वे भारतीय राज्यों के चैंबर ऑफ प्रिंसेस (राजाओं की परिषद) के सदस्य थे और 1944-1947 तक उसके चांसलर भी रहे। हालाँकि, उन्होंने स्वतंत्र भारत के साथ भोपाल के विलय को लेकर आरंभ में विरोध किया, लेकिन अंततः 1 जून 1949 को भोपाल का भारत में आधिकारिक रूप से विलय हुआ।
प्रशासनिक योगदान और राजनैतिक सक्रियता
हमीदुल्लाह खान 1944 से 1947 तक चैंबर ऑफ प्रिंसेस (Chamber of Princes) के चांसलर थे। उस समय भारत में तीन प्रमुख पक्ष थे- ब्रिटिश सरकार, राजनीतिक दल और रियासतें। इन तीनों के बीच तालमेल स्थापित करने में नवाब हमीदुल्लाह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने लंदन के गोलमेज सम्मेलन में प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया और लॉर्ड माउंटबेटन से उनके घनिष्ठ संबंध थे।
हमीदुल्लाह खान 1944 में पायलट बन गए और उनके पास कमर्शियल लाइसेंस था। उनका निजी विमान था, जिसे वे भोपाल से चिकलोद तक उड़ाते थे। उन्होंने चिकलोद कोठी को फार्महाउस में तब्दील किया। वे दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी और इटली के खिलाफ दो मोर्चों पर लड़े थे।
हमीदुल्लाह खान पोलो के उत्कृष्ट खिलाड़ी थे और दिल्ली, कोलकाता, मुंबई में आयोजित प्रतियोगिताओं में अक्सर विजेता रहते थे। वे 1930 से 1935 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के चांसलर भी रहे।
भारत में विलय को लेकर विरोध
ऐसा कहा जाता है कि नवाब हमीदुल्लाह भारत में भोपाल रियासत के विलय के पक्ष में नहीं थे। वे मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) के करीबी थे। इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार, जब अंग्रेज भारत छोड़ने वाले थे, तो 1946 में नवाब ने एक ब्रिटिश अधिकारी को पत्र लिखकर अपनी रियासत को लेकर चिंता जताई।
15 अगस्त 1947 तक सभी रियासतों को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने थे, लेकिन नवाब हमीदुल्लाह ने 10 दिन की अतिरिक्त मोहलत मांगी। अंततः 26 अगस्त 1947 को उन्होंने भारत में विलय की घोषणा की, लेकिन वह स्वतंत्र राज्य की मांग के लिए प्रयासरत रहे। कहा जाता है कि दो साल तक भोपाल में तिरंगा फहराने की अनुमति नहीं दी गई। बाद में, सरदार पटेल ने हस्तक्षेप किया और 1 जून 1949 को भोपाल रियासत को औपचारिक रूप से भारत में मिला दिया गया।
नवाब हमीदुल्लाह की दो बेटियां थीं- आबिदा सुल्तान और साजिदा सुल्तान। आबिदा सुल्तान 1950 में पाकिस्तान चली गईं, जबकि उनकी छोटी बेटी साजिदा सुल्तान ने इफ्तिखार अली खान पटौदी से विवाह किया। 1960 में हमीदुल्लाह खान के निधन के बाद साजिदा सुल्तान उनकी उत्तराधिकारी बनीं। उनके वंशजों में प्रसिद्ध क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी और अभिनेता सैफ अली खान शामिल हैं।
नवाब हमीदुल्लाह खान एक कुशल शासक, राजनयिक और खिलाड़ी थे। उनकी राजनीतिक सक्रियता, प्रशासनिक कौशल और खेलों में रुचि उन्हें एक बहुआयामी व्यक्तित्व बनाती है। उनकी विरासत आज भी भोपाल की संस्कृति और इतिहास में देखी जा सकती है।
सांस्कृतिक एवं विरासत योगदान
आज भी भोपाल में उनकी बनाई गई कई विरासत संरचनाएँ और संस्थान मौजूद हैं:-
गौहर महल और शौकत महल, जो उनकी वास्तुकला में रूचि को दर्शाते हैं।
भोपाल स्टेट लाइब्रेरी, जो आज भी शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण केंद्र है।
मस्जिदें और धार्मिक स्थल, जैसे कि ताजुल मस्जिद, जो एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है।
भारतीय समाज में योगदान
नवाब हमीदुल्लाह खान केवल भोपाल तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी योगदान दिया।
भारत के संविधान निर्माण में सहयोग - उन्होंने भारतीय संविधान सभा में योगदान दिया और भारतीय गणराज्य की संरचना में अपनी राय दी।
राष्ट्रीय खेलों को बढ़ावा - वे पोलो और घुड़सवारी के बड़े समर्थक थे और उन्होंने इन खेलों को भोपाल में बढ़ावा दिया।
सामाजिक सुधार - उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर विशेष ध्यान दिया, जिससे भोपाल और मध्य प्रदेश में सामाजिक सुधार हुए।
भोपाल और मध्य प्रदेश में योगदान
नवाब हमीदुल्लाह खान ने भोपाल और मध्य प्रदेश के विकास में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उनके शासनकाल में कई प्रतिष्ठित इमारतें और संस्थान स्थापित किए गए, जिनमें प्रमुख हैं:-
हमीदिया अस्पताल - यह अस्पताल आज भी भोपाल के प्रमुख चिकित्सा केंद्रों में से एक है।
सैफिया कॉलेज - शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने इस कॉलेज की स्थापना की।
मिंटो हॉल - जिसे अब एक प्रतिष्ठित सम्मेलन केंद्र के रूप में उपयोग किया जाता है।
भोपाल स्टेट रेलवे - उन्होंने रेलवे के विस्तार और आधारभूत संरचना के विकास में योगदान दिया।
लाल परेड ग्राउंड - जिसे सैन्य प्रशिक्षण और सार्वजनिक आयोजनों के लिए विकसित किया गया।
तालाबों और जल प्रबंधन - उन्होंने भोपाल की जल आपूर्ति को बेहतर बनाने के लिए कई तालाबों और जल प्रबंधन योजनाओं को लागू किया।
सुल्तान जहां बेगम ने हमीदुल्लाह को नवाब बनाने के लिए इंग्लैंड जाकर किंग जॉर्ज पंचम से पैरवी की, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें भोपाल का नवाब बनाया गया। उनका शासनकाल 1926 में शुरू हुआ और उन्होंने 1949 तक भोपाल रियासत पर शासन किया।
4 फरवरी, 2002 को, नवाब हमीदुल्लाह खान का निधन हो गया। वे भोपाल के अंतिम शासक थे, जिन्होंने न केवल अपने शासनकाल में बल्कि स्वतंत्र भारत में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें सम्मानपूर्वक याद किया जाता है और उनकी विरासत आज भी भोपाल के इतिहास में जीवंत बनी हुई है।
नवाब हमीदुल्लाह खान का जीवन भोपाल के ऐतिहासिक और राजनीतिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। उनके कार्यों और निर्णयों ने भोपाल के भविष्य को प्रभावित किया और वे इतिहास में एक सम्माननीय शासक के रूप में जाने जाते रहेंगे। उनकी बनाई गई संरचनाएँ, संस्थाएँ और प्रशासनिक नीतियाँ आज भी भोपाल की संस्कृति और इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।